जीवन रक्षक प्रणाली (life support system) की जरूरत किसी भी मरीज को तब पड़ती है जब उसके शरीर के महत्वपूर्ण अंग जैसे फेफड़े, ब्रेन और दिल जैसे अंग काम करना बंद कर देते हैं। फेफड़ों संबन्धी परेशानियां जैसे निमोनिया, नशीली दवाओं का सेवन, रक्त के थक्के और गंभीर फेफड़ों की चोट या बीमारी जैसे सीओपीडी आदि में लाइफ सपोर्ट सिस्टम की जरूरत पड़ सकती है।

हम में से कई लोग वेंटिलेटर को एक आर्टिफिशियल सांस से सम्बंधित उपकरण के रूप में जानते हैं। जब व्यक्ति प्राकृतिक रूप से सांस नहीं ले पाता है तो उस समय वेंटिलेटर की मदद से उसे सांस लेने में मदद की जाती हैं। जब से कोविड -19 महामारी आई है तब से वेंटिलेटर से हर कोई वाकिफ हो गया। अब यह एक घरेलू नाम बन गया है। आपने वेंटिलेटर का खुद उपयोग किया होगा या किसी करीबी परिवार के सदस्य को इसका उपयोग करते देखा है, या आपने कभी वेंटिलेटर भी नहीं देखा है, इन सबके बावजूद आपको यह जानना और समझना महत्वपूर्ण है कि वेंटिलेटर कैसे काम करता है, वेंटिलेटर कितने प्रकार का होता है और इसमें क्या अंतर होता है।

वेंटिलेटर कैसे काम करता है

जनसत्ता डॉट कॉम से बातचीत में मैक्स वेंटिलेटर के फाउंडर और सीईओ अशोक पटेल ने बताया कि आम तौर पर एक वेंटिलेटर एक ट्यूब के जरिये या बिना कसाव के क्लोज-फिट और सील मास्क के माध्यम से मरीज के फेफड़ों में ऑक्सीजन की सप्लाई करता है। पहले ट्यूब या तो मुंह या नाक के माध्यम से या गर्दन में सर्जरी करने से बने छेद के माध्यम से लगायी जाती है और फिर विंडपाइप में डाली जाता है। इसके बाद चेहरे पर एक मास्क लगाया जाता है। इसके बाद नाक, मुंह या हेलमेट डिवाइस के जरिये वेंटिलेशन की प्रक्रिया शुरू होती है।

वेंटिलेटर के प्रकार

अशोक पटेल के मुताबिक वर्तमान समय में आज बाजार में मरीज की जरूरत और देखभाल करने वाले की मेडिकल सलाह के आधार पर विभिन्न प्रकार के वेंटिलेटर उपलब्ध हैं। फेफड़े या सांस से संबंधी बीमारी की गंभीरता और उस स्थान पर जहां मरीज को इलाज के लिए लेटने और आराम करने की सलाह दी जाती है, के आधार पर, कुछ प्रकार के वेंटिलेटर जैसे कि आईसीयू वेंटिलेटर, होमकेयर वेंटिलेटर, इमरजेंसी और ट्रांसपोर्ट वेंटिलेटर, और एनेस्थीसिया वेंटिलेटर इस समय चलन में हैं।

आईसीयू वेंटिलेटर

इस तरह का वेंटिलेटर ज्यादतर आईसीयू में इस्तेमाल किया जाता है इसलिए इसे आईसीयू वेंटिलेटर कहते हैं। यह सबसे एडवांस और क्रिटिकल केयर वेंटिलेटर होता है। यह हॉस्पिटल के आईसीयू डिपार्टमेंट में इस्तेमाल होता है। इसे हेल्थ फैसिलिटी द्वारा मैनेज किया जाता है और इसका इस्तेमाल तब किया जाता है जब मरीज की हालत बहुत ज्यादा ख़राब होती है। इस तरह के आईसीयू वेंटिलेटर में वॉल्यूम असिस्ट/कंट्रोल से लेकर प्रेशर-असिस्ट/कंट्रोल, प्रेशर सपोर्ट वेंटिलेशन, वॉल्यूम सिंक्रोनाइज्ड इंटरमिटेंट मैंडेटरी वेंटिलेशन (SIMV) और प्रेशर SIMV मोड की सुविधा रहती है।

वॉल्यूम कंट्रोल ऑक्सीजन वाली हवा की मात्रा को पहले से ही निर्धारित और नियंत्रित करने की सहूलियत देता है। हवा की यह मात्रा हर बार सांस लेने पर फेफड़ों तक पहुंचती है। प्रेशर कंट्रोल मोड सबसे ज्यादा सांस के दबाव और अंत-श्वसन दबाव को पहले से निर्धारित करके वायुमार्ग के दबाव को नियंत्रित करने की सुविधा देता है। इसलिए वॉल्यूम कंट्रोल हर सांस में टाइडल वॉल्यूम की गारंटीटीड सप्लाई में मदद करता है। प्रेशर कंट्रोल मरीज के साथ बेहतर तालमेल को सक्षम बनाता है।

हमें यह याद रखने की जरुरत है कि एक समय में केवल एक चीज को ही कंट्रोल करना संभव है। लेकिन आईसीयू वेंटिलेटर डबल कंट्रोल (वॉल्यूम और प्रेशर) की सुविधा देता है। इस तरह का वेंटिलेटर मरीज द्वारा ली जा रही सांस की मात्रा और सांस के दबाव को नियंत्रित करता है। इसके अलावा आईसीयू वेंटिलेटर में सेटिंग्स मेनू, क्रिटिकल स्टैण्डर्ड के लिए समर्पित बटन, लंबे समय तक चलने वाले FiO2 सेंसर, और बड़े TFT डिस्प्ले, सांस की दर मापने की सुविधा, पीप इंस्पिरेटरी प्रेशर या PIP सहित निगरानी, एक्स्हेल्ड टाइडल वोल्यूम और कंट्रोल मेकेनिज्म होता है। इसमें एक सुरक्षित लॉक और अलार्म सिस्टम भी होता है।

होमकेयर वेंटिलेटर

जैसा कि नाम से पता चल रहा है कि यह एक ऐसा मैकेनिकल वेंटिलेटर हैं जिसे घरों में में मरीजों की सांस से सम्बंधित जरूरतों को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसका इस्तेमाल करना मुश्किल भी है और आसान भी है। आसान इसलिए क्योंकि अगर इन वेंटिलेटर को चलाने में कोई सदस्य माहिर है तो उसके लिए यह बहुत आसान है। जिन होमकेयर वेंटिलेटर में एक यूजर्स के अनुकूल इंटरफेस होता है, उन्हें चलाना आसान होता है। इन्हें चलाना मुश्किल इसलिए होता है क्योंकि इस तरह के वेंटिलेटर में भी ICU वेंटिलेटर जैसे फंक्शन होते हैं। अगर मरीज को शार्ट टर्म के लिए सांस लेने में दिक्कत होती है तो उसके लिए इस तरह का वेंटिलेटर उपयुक्त होता है। साथ ही इस तरह के होमकेयर वेंटिलेटर के रखरखाव की लागत कम होती है। गर्दन में रीढ़ की हड्डी में चोट या सीओपीडी की बीमारी से पीड़ित मरीजों को अक्सर होमकेयर वेंटिलेटर पर रखा जाता है।

इमरजेंसी और ट्रांसपोर्ट वेंटिलेटर्स

जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि इस तरह के वेंटिलेटर इमरजेंसी स्थितियों में या जब मरीज को एक जगह से दूसरे जगह पर शिफ्ट किया जाता है तब इस्तेमाल किया जाता है। मरीज की हालत के आधार पर इस तरह के वेंटिलेटर को जल्दी तैयार किया जाता है। इस तरह के वेंटिलेटर सेल्फ-कन्टेन्ड, कॉम्पैक्ट और मजबूत वेंटिलेटर होते हैं। इन्हे इस तरह से बनाया जाता है कि ये सबसे कठिन मौसम और कठिन परिस्थितियों में अच्छे से काम कर सकें। कभी-कभी इस तरह के वेंटिलेटर का उपयोग मरीजों की पोस्ट-ऑपरेटिव एनेस्थेटिक केयर के लिए भी किया जाता है। आज के समय में ये वेंटिलेटर इतने एडवांस हो गए हैं कि ये मॉडर्न आईसीयू वेंटिलेटर की तरफ काम करते हैं।

एनेस्थीसिया वेंटिलेटर

ये वेंटिलेटर आमतौर पर उन मरीजों के लिए उपयोग किए जाते हैं जो सर्जिकल प्रक्रिया से गुजर रहे होते हैं या सर्जरी के बाद की रिकवरी के दौरान उन्हें सांस लेने में मदद चाहिए होती है। हालांकि इस तरह के वेंटिलेटर में वेंटिलेटरी सेटिंग्स और निगरानी की सुविधा ज्यादा नहीं होती है। एनेस्थीसिया वेंटिलेटर आईसीयू वेंटिलेटर में मौजूद सभी सुविधाओं को सपोर्ट नहीं करता है। आमतौर पर आईसीयू वेंटिलेटर में वॉल्यूम-कंट्रोल और प्रेशर-कंट्रोल मोड होता हैं। हालांकि पारंपरिक तरीकों के अलावा आधुनिक एनेस्थीसिया वेंटिलेटर आज वेंटिलेशन के नए मोड्स भी पेश करते हैं जैसे की सिंक्रनाइज़ इंटरमिटेंट मैंडेटरी वेंटिलेशन और प्रेशर सपोर्ट वेंटिलेशन।

इसलिए काम के तरीके, जगह और मरीज की हालत की गंभीरता के आधार पर अलग-अलग वेंटिलेटर होते हैं। हालाँकि, यह भी याद रखना चाहिए कि इनमें से अधिकांश वेंटिलेटर में कई सारी क्वालिटी होती हैं। स्वाभाविक रूप से किसी भी सांस से सम्बंधित समस्या का सामना करने पर चाहे फिर समस्या हल्की हो या गंभीर, पीड़ित व्यक्ति को वेंटिलेटर का सहारा लेना चाहिए।