उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू की गिनती सियासत के मंझे खिलाड़ियों में होती है। वे 70 के दशक में आरएसएस से जुड़े, तब छात्र थे। फिर धीरे-धीरे सियासत की सीढ़ियां चढ़ते गए और भारतीय जनता पार्टी में अपना खास मुकाम बनाया। देश के दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद यानी उपराष्ट्रपति बनने से पहले वह मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं।
मूल रूप से आंध्र प्रदेश के नेल्लोर के रहने वाले वेंकैया नायडू का जन्म 1 जुलाई 1949 को हुआ। वे जब 15 महीने के थे तभी उनकी मां का निधन हो गया था। नानी-नानी ने उनका पालन पोषण किया। टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ एक बातचीत में नायडू ने कहा कि ‘मैं अपनी मां को तो नहीं देख पाया, लेकिन जब मेरी बेटी दीपा का जन्म हुआ, तो मैंने अपनी मां की सूरत उसमें देखी। कई लोग उन्हें कहते हैं कि उनकी बेटी बिल्कुल उनकी मां की तरह दिखती है। इसलिए वे अपनी बेटी के रूप में हमेशा कल्पना करते हैं कि उनकी मां कैसी रही होंगी।’
वेंकैया नायडू की पत्नी का नाम एम. ऊषा है। उनके दो बच्चे हैं, एक बेटा और एक बेटी। बकौल नायडू वे दोनों बच्चों से बेहद प्रेम करते हैं। लेकिन बेटी के प्रति उनका लगाव थोड़ा अधिक है। उनकी बेटी एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। नायडू कहते हैं कि उन्हें अपनी बेटी पर बहुत गर्व महसूस होता है।
वे कहते हैं, ‘मुझे लगता है उसका काम मुझसे बहुत ज्यादा है, क्योंकि मैंने जो भी किया उसके बदले में मैं विधायक, सांसद और मंत्री बना, लेकिन वह बदले में कुछ भी उम्मीद किए बिना बहुत अच्छा काम कर रही है। यह सच में सराहनीय है।’
उपराष्ट्रपति नायडू को अपने गृह क्षेत्र नेल्लोर के पारंपरिक और देशज व्यंजन खूब पसंद है। वे कहते हैं कि मैंने दुनियाभर में तमाम देशों की यात्रा की है। कई व्यंजनों का स्वाद चखा है, लेकिन सबसे ज्यादा स्वादिष्ट खाना नेल्लोर का ही लगता है। यहां की पचाडालु (चटनी), कांडी पचड़ी, नुवुलु पचड़ी, तोमा- से पचड़ी, गोंगुरा पचड़ी का ज़ायका निराला है।
फिल्में देखने का भी शौक: वेंकैया नायडू को फिल्में देखने का भी शौक है। वे कुछ पुरानी फिल्में अपने लैपटॉप में रखते हैं, ताकि अपनी विमान यात्राओं के दौरान उन्हें देख सकें। वे कहते हैं कि एक वक्त ऐसा था जब एनटीआर की कोई फिल्म नहीं छोड़ते थे।
उन्हें पोते-पोती के साथ समय बिताना काफी पसन्द है। वे कहते हैं जब उनके बच्चे छोटे थे तो वे उनके साथ नहीं रह पाते थे, क्योंकि उस समय वे अपने राजनीतिक जीवन में काफी व्यस्थ थे, लेकिन अब जब भी उन्हें मौका मिलता है बच्चों को वक्त जरूर देते हैं।