उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कभी नहीं सोचा था कि वह राजनीति में आएंगे। वो अखाड़े में कुश्ती किया करते थे। लेकिन परिस्थितयां ऐसी बनीं कि वह विधायक, सांसद और उत्तर प्रदेश के सीएम की कुर्सी तक पहुंचे। केंद्रीय मंत्री बनने का मौका भी मिला। एक मौका ऐसा भी आया था जब सियासी गलियारों में चर्चा थी कि प्रधानमंत्री के लिए मुलायम के नाम पर मुहर लग गई थी। हालांकि वे पीएम बनते-बनते रह गए।
सियासी गलियारों में कहा जाता है कि साल 1996 में पीएम पद के लिए मुलायम के नाम पर करीब-करीब मुहर लग गई थी। तमाम सहयोगी दल भी तैयार थे। शपथ ग्रहण की तारीख और समय तक भी तय हो चुका था। लेकिन मुलायम पीएम नहीं बन पाए थे।
साल 2014 में चुनाव प्रचार के दौरान ‘न्यूज़18 यूपी’ से बात करते हुए खुद मुलायम सिंह ने ये किस्सा सुनाया था। मुलायम से सवाल पूछा गया था, ‘जैसे ही प्रधानमंत्री पद का नाम आता है आप पीछे हट जाते हैं। आपको मानने में क्या गुरेज़ है?’ इसके जवाब में मुलायम सिंह यादव मुस्कुराने लगते हैं और थोड़ा पीछे की घटना सुनाते हैं।
पीएम नहीं बनने पर नहीं कोई दुख: मुलायम कहते हैं, ‘एक घटना हो चुकी है। हम लगभग प्रधानमंत्री बन चुके थे, तय हो गया कि सुबह आठ बजे शपथ होनी है। बाद में मामला पूरा बिगड़ गया। मैंने तो इसमें कोई बुरा नहीं माना। क्या मैं निराश हुआ हूं? क्या आपको अंदाजा है कि हमारे घर पर कितनी भीड़ थी? हजारों समर्थक और सारी दुनिया की प्रेस हमारे घर पर पहुंच गई थी। मुझे तो कभी दुख भी नहीं हुआ कि प्रधानमंत्री नहीं बन सका।’
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मुलायम कहते हैं, ‘इसके बाद और भी बड़ा काम हुआ। अब वो नेता तो जिंदा भी नहीं हैं। मेरे पीछे फैसला कर लिया। इसमें ज्योति बसु और फारूक अब्दुल्ला समेत कई नेता थे कि अगर मुलायम प्रधानमंत्री बने तो डिप्टी पीएम हम बनेंगे। सब तय हो गया और हमें कोई पता नहीं। इन्होंने हमें धोखा नहीं दिया बल्कि खुद धोखा खा गए। इन नेताओं का आधार ही खत्म हो गया। हमें तो अब कोई प्रधानमंत्री बनने की इच्छा भी नहीं रही है।’
बता दें, 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरने के बाद कांग्रेस के सहयोग से युनाइटेड फ्रंट की सरकार बनी थी और एच डी देवगौड़ा देश के प्रधानमंत्री बने थे। इस फ्रंट में जनता दल, समाजवादी पार्टी और डीएमके जैसी 13 पार्टियां शामिल थीं। इस सरकार में मुलायम सिंह यादव को भी अहम मंत्रालय दिया गया था। वह देश के रक्षा मंत्री बने थे। हालांकि ये सरकार लंबे समय तक नहीं चल सकी थी।
सियासी गलियारों में अक्सर इस बात की चर्चा होती है कि देवगौड़ा के नाम पर मुहर लगने से पहले मुलायम का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सामने आया था। बताया जाता है कि लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने उनके नाम पर सहमति नहीं दी थी, जिसकी वजह से मुलायम पीएम बनते-बनते रह गए थे।