रतन टाटा का बचपन एक साधारण बच्चे की तरह रहा है। उनकी दादी चाहती थीं कि वह अन्य बच्चों के साथ मिलें इसलिए उन्होंने रतन का एडमिशन कंपेनियन स्कूल में करवा दिया था। इस स्कूल में उन्होंने 9वीं तक की पढ़ाई की और अन्य सुविधाएं न होने की वजह से उन्हें दूसरे स्कूल में भेज दिया गया। वह कैथेड्रल एंड जॉन केनन स्कूल में आ गए। इस स्कूल में देश के जानी-पहचानी शख्यिसतों के बच्चे पढ़ा करते थे।

पीटर केसी (Peter Casey) ने अपनी हालिया किताब ‘द स्टोरी ऑफ टाटा: 1868 टू 2021’ में रतन टाटा से जुड़ा किस्सा शेयर किया है। तमाम सुख-सुविधाएं होने के बाद भी रतन टाटा मुंबई में एक साधारण से घर में रहा करते थे और ऐसा ही अभी भी है। वह स्कूल में कई तरह की चीजों में भाग लिया करते थे, उन्होंने ये स्वीकार भी किया था कि वह काफी शर्मीले थे। रतन ने अपने स्कूल के दिनों को याद करते हुए कहा था कि मैं बहुत सारे लोगों को संबोधित करने में बहुत डरता था।

गणित के टीचर: वह कहते हैं, ‘आमतौर स्कूल में सार्वजनिक रूप से बोलने वाले केवल वे लोग थे जो सभा में उपदेश पढ़ा करते थे और जो डिबेट में हिस्सा ले रहे थे। मैं इन लोगों में से कोई भी नहीं था। साथ ही मैं किसी एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में भी हिस्सा नहीं लेता था। यही वजह रही कि मैं कैथेड्रल कल्चर नहीं सीख पाया और ये मेरा ही नुकसान था। इस दौरान मुझे तो लगता था कि ग्रेजुएट भी नहीं हो पाउंगा।’

एनडीटीवी पर प्रकाशित पीटर केसी (Peter Casey) की किताब के एक अंश के मुताबिक- रतन बताते हैं, ‘कैथेड्रल एक उलझे हुए बैग की तरह था। मुझे अपने गणित के टीचर याद हैं। उन्हें और मुझे लगता था कि मैं तो स्कूल भी पास नहीं कर पाऊंगा। हालांकि मैं स्कूल तो पास करने में कामयाब ही रहा था।’

रॉल्स रॉयस से जाते थे स्कूल: रतन टाटा ने बताया था कि उनकी दादी के पास एक पुरानी और बहुत बड़ी-सी रॉल्स रॉयस थी। दादी अक्सर उन्हें स्कूल से लाने और भेजने के लिए वही कार भेज देती थी। इस कार में बैठते हुए दोनों भाइयों को बहुत शर्म आती थी। यही वजह थी कि उन्होंने अपनी दादी के ड्राइवर को इस बात के लिए राजी कर लिया था कि वह उन्हें थोड़ा स्कूल से पहले ही छोड़ दिया करेंगे। कई बार तो इस कार से बचने के लिए वह पैदल ही घर आ जाया करते थे।