Akhilesh Yadav: 2007 में सपा के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद अखिलेश यादव जी तोड़ मेहनत में जुट गए। अखिलेश ने समाजवादी पार्टी का प्रचार युवाओं के बीच करना शुरू किया। ब्लैकबेरी मोबाइल वाला लड़का युवाओं के बीच जा पहुंचा। साइकिल चलाई, 2012 का चुनाव जीता और सपा के भीतर कुछ लोगों की नाराजगी के बाद भी यूपी का सीएम बन गया या फिर यूं कहें बना दिया गया।

इस पूरी राजनीतिक उठापटक के सूत्रधार थे अखिलेश के दूसरे चाचा राम गोपाल यादव। जी हां, कम से कम लेखिका प्रिया सहगल की किताब ‘द कंटेंडर्स’ को पढ़कर तो ऐसा ही लगता है। रामगोपाल के उस ब्रह्मास्त्र ने ना सिर्फ सीएम पद के लिए मुलायम की दावेदारी वापस कराई, बल्कि नेताजी के बाद स्वयं को पार्टी का मुखिया मानकर चल रहे शिवपाल को भी किनारे लगा दिया।

कैसे माने थे मुलायम: अपनी पुस्तक ‘द कंटेंडर्स’ में प्रिया सहगल लिखती हैं कि “अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने में सबसे बड़ा हाथ राम गोपाल यादव का है। मुलायम सिंह यादव ने 2012 के चुनावों के बाद कहा था कि वो चौथी बार मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। लेकिन रामगोपाल यादव ने उन्हें समझाते हुए कहा था कि सपा की राजनीति रिकॉर्ड बनने की नहीं है। पार्टी को युवा अनुभव की जरूरत है। .जिसके बाद मुलायम मान गए।”

मुलायम के बाद शिवपाल की बारी: नेताजी मान गए थे, मगर चाचा जी यानि शिवपाल की तरफ से खतरा अभी टला नहीं था। राम गोपाल को शक था कि खुद को सपा का स्वाभाविक नंबर दो मानने वाले शिवपाल यादव और उनके समर्थक, नेताजी के पीछे हटने की सूरत में, सीएम पद के लिए शिवपाल के नाम की दावेदारी कर सकते हैं। प्रिया सहगल लिखती हैं कि ऐसी सूरत से निपटने के लिए राम गोपाल यादव ने पॉलिटिकल सर्जिकल स्ट्राइक की योजना बनाई। जिसकी भनक किसी को कानों कान नहीं हुई।

किताब में लिखा गया है कि “इसके बार राम गोपाल यादव ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी में किसी को खास तौर पर शिवपाल को कोई मौका ना देते हुए माइक से ऐलान किया कि अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाने के लिए आजम खान साहब अखिलेश के नाम का प्रस्ताव रखेंगे। आजम ने प्रस्ताव रखा और पहले से तय लोगों ने उनका समर्थन कर दिया। जिसके बाद अखिलेश को मुख्यमंत्री मान लिया गया।”

जब नेताजी अध्यक्ष से बन गए संरक्षक: अपनी पुस्तक द कंटेंडर्स में प्रिया सहगल लिखती हैं कि “जैसे अखिलेश को सीएम बनाया गया था, उसी तरह बाद में समाजवादी पार्टी के कानून निर्माता रामगोपाल यादव ने एक अधिवेशन में अखिलेश को सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित करा लिया और मुलायम सिंह यादव संरक्षक हो गए। इसके साथ ही सपा की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को दिल में संजोए शिवपाल यादव अलग थलग होकर रह गए।”