पीलीभीत से बीजेपी सांसद वरुण गांधी का राजनीतिक रिश्ता दो दशक से भी ज्यादा पुराना हो चुका है। 1999 में चुनाव प्रचार के दौरान मां मेनका गांधी द्वारा पीलीभीत से उनका राजनीतिक परिचय कराया गया था। तब वरुण बीजेपी में नहीं थे। उन्होंने 2004 में भाजपा की सदस्यता ली और उस साल के चुनाव में प्रचार भी किया। 40 क्षेत्रों में उन्होंने प्रचार किया था।
वरुण ने अक्तूबर, 2005 में बीबीसी के हार्ड टॉक नाम के शो में स्टीफन सैकर को अपनी राजनीतिक संबद्धता के पीछे के कारण बताए थे। साथ ही, उन्होंने अपने पिता का भी बचाव किया था। उन्होंने कहा था कि उनके पिता संजय गांधी उन लोगों में से थे जिन्होंने मारुति उद्योग की शुरुआत कर देश में नए सिरे से औद्योगिकीकरण को आगे बढ़ाया और आपातकाल के बाद जनता पार्टी की सरकार को सत्ता से बाहर कर कांग्रेस की वापसी में मदद करवाई।
बता दें कि आपातकाल के संबंध में संंजय गांधी पर कई आरोप लगते रहे हैं और यह भी कहा जाता है कि उस दौर में पर्दे के पीछे से सत्ता संजय ही चलाते थे और सारी मनमानियों के पीछे वही थे।
वरुण ने पीलीभीत में अपनी जमीन काफी मजबूत की और जब 2009 में मेनका गांधी की जगह उनको टिकट दिया गया तो वह 419539 वोट पाकर जीते। उनकी जीत का अंतर 281501 था। उस चुनाव में गांधी परिवार के किसी सदस्य की यह सबसे बड़ी जीत थी।
साल 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान वरुण पर आचार संहिता उल्लंघन और भड़काऊ भाषण देने का भी आरोप लगा था। इसमें 2013 में उन्हें दोषमुक्त कर दिया गया था।
बाद में वरुण गांधी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि अगर उन्हें 2009 के भाषण के मामले में दोषमुक्त कर दिया गया था तो आरोप लगाने वालों को इसमें माफी मांगनी चाहिए।
इस मामले में प्रियंका गांधी ने भी प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने कहा था, ‘आपको एक गलतफहमी हो रही है कि हमारे परिवार के सदस्य चुनाव लड़ रहे हैं। वो हमारे परिवार के जरूर हैं। मेरे भाई हैं वो। लेकिन गलत रास्ते पर चल पड़े हैं। जब परिवार का कोई छोटा सदस्य सही रास्ता नहीं चुनता तो घर के बड़े लोग उसे सिखाते हैं और समझाते हैं कि ऐसा नहीं करना। मैं यही अपेक्षा आपसे करती हूं। आप लोग मेरे भाई को सही रास्ता दिखाएंगे और वो वापस उस रास्ते पर नहीं जाएंगे।’