समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों में डायबिटीज और मोटापे संबंधी बीमारियों का खतरा ज्यादा रहता है। साथ ही साथ उनका जीवन भी उन बच्चों के मुकाबले छोटा होता है जो पर्याप्त प्रसवकाल पूरा करके जन्म लेते हैं। ‘अमेरिकन जर्नल ऑफ ऑब्स्ट्रेटिक्स एंड जाइनेकोलोजी’ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रसव के 37-39 हफ्तों के बीच में जन्म लेने वाले बच्चों में 39 हफ्तों के बाद जन्म लेने वाले बच्चों के मुकाबले मोटापे संबंधी बीमारियों से ग्रसित होने का खतरा ज्यादा रहता है। शोध में 18 साल की उम्र तक के उन बच्चों को शामिल किया गया था जो कि अस्पताल में भर्ती थे।

शोध से जुड़े एक रिसर्चर बताते हैं कि इस शोध के दौरान हमने पाया कि अस्पताल में भर्ती 18 साल की उम्र तक के उन बच्चों में एंडोक्रीन और मेटाबोलिक संबंधी बीमारियां सामान्य हैं जिन्होंने समय से पहले जन्म लिया था। शोधकर्ताओं का कहना है कि जल्दी जन्म लेने वाले बच्चों में न बच्चों के मुकाबले मोटापे की समस्या काफी अधिक मात्रा में देखी गई है जो गर्भ में पूरा समय बिताकर जन्म लेते हैं। 5 साल से ऊपर की उम्र के ऐसे बच्चे जो समयपूर्व पैदा हुए उनमें टाइप-1 डायबिटीज की समस्या भी देखी गई थी।

शोध के अनुसार समय से पहले होने वाले प्रसव में हाइ ब्लडप्रेशर संबंधी विकारों और मधुमेह के चलते थोड़ी जटिलता आ ही जाती है। ऐसे मामलों में ज्यादातर डिलीवरी सीजेरियन होती है। सीजेरियन डिलीवरी से होने वाले बच्चों में अक्सर वजन की कमी देखी गई है। शोध से जुड़े रिसर्चर डॉ. शीनर बताते हैं कि समयपूर्व होने वाले प्रसव से पैदा होने वाले बच्चे अक्सर कम वजनी होते हैं। अधिकतर बार उनका वजन 2.5 किलोग्राम तक होता है। शीनर ने बताया कि यह बीमारी अन्य कई तरह की दुर्बलताओं और बीमारियों की संभावना को काफी बढ़ा देता है, जिसकी वजह से बच्चे के स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक असर पड़ता है। इसकी वजह से बच्चे का जीवनकाल छोटा भी हो जाता है और वह तमाम प्रकार की बीमारियों से परेशान रहता है।