विनोद कुमार यादव

आर्थिक समृद्धि की अपेक्षा व्यक्ति की खुशी उसके भावनात्मक बदलाव पर अधिक निर्भर करती है। तमाम भौतिक संसाधन और ऐश्वर्य न होने के बावजूद अगर व्यक्ति के मन में शांति है, अपनी दिनचर्या के प्रति रचनात्मक दृष्टिकोण और सकारात्मक सोच है तो उसका जीवन खुशियों से परिपूर्ण है।

पिछले कई वर्षों से शिक्षाशास्त्री, मनोवैज्ञानिक और समाजशास्त्री दोहरा रहे हैं कि हमारी शिक्षा-प्रणाली बहुत मशीनी होती जा रही है। अंक केंद्रित मूल्यांकन पद्धति ने विद्यार्थियों को गहरे दबाव में डाल दिया है, जिससे उनकी सहजता नष्ट हो रही है। वे बेहद चिड़चिड़े और अवसादग्रस्त होते जा रहे हैं। इस बात की तस्दीक कई शोधों और अध्ययनों के जरिए हुई है।

कुछ अरसा पहले शिक्षा मंत्रालय ने संसद में पेश एक रिपोर्ट में कहा कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली की वजह से ग्यारह से सत्रह वर्ष आयु-वर्ग के किशोर हताशा और उच्च मानसिक तनाव से ग्रस्त हैं। बहरहाल, युवा वर्ग में तेजी से फैल रही इन मानसिक व्याधियों से मुक्ति के लिए दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (डीटीयू) ने ‘हैप्पीनेस आफ साइंस’ में पीएचडी प्रोग्राम शुरू किया है।

फिलहाल इसकी शुरुआत संस्थान में एक प्रायोगिक परियोजना के तौर पर की गई है। गौरतलब है कि विश्व खुशहाली सूचकांक यानी ‘वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स’ रिपोर्ट-2023 के मुताबिक 137 देशों की सूची में भारत एक सौ पच्चीसवें स्थान पर है। यानी दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के बावजूद, खुशहाली के मामले में हम 124 देशों से पिछड़े हुए हैं।

आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा कहते हैं कि ‘हर व्यक्ति अपने जीवन में खुशी चाहता है, मनुष्य जीवन का मकसद ही खुश रहना है। पर रोजमर्रा की भागदौड़ में हम अपने लिए एक घंटा भी नहीं निकाल पाते। आखिरकार खुशी के अहसास से वंचित ही रह जाते हैं।’ दलाई लामा का कहना है कि मन की शांति और खुशी सिक्के के दो पहलू हैं, यानी एक-दूसरे के पूरक हैं। उनका यह भी मानना है कि जब हम दूसरों की खुशी के लिए अपनी शर्तें बदल देते हैं तो हमारे मन में शांति और हृदय में खुशी स्वाभाविक रूप से उपजती है।

सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ‘एप्पल’ का विशाल साम्राज्य स्थापित करने वाले स्टीव जाब्स ने आखिरी दिनों में मृत्यु शैया पर कहा था, ‘पूरी जिंदगी इस बेशुमार दौलत को अर्जित करने के लिए मैंने कड़ी मेहनत की, व्यापार जगत की नई बुलंदियों को छुआ, किंतु खुद को संतुष्ट करने के लिए यानी अपने लिए समय निकालना जरूरी नहीं समझा। आज मौत के इतना करीब पहुंचकर वे सारी उपलब्धियां फीकी लग रही हैं। जिंदगी के आखिरी क्षणों में मैं लोगों को यही संदेश देना चाहता हूं कि जीवन को भरपूर आनंद से जीना चाहते हो तो हर पल खुद से प्यार करो और उन सामाजिक कार्यों में सदैव सलंग्न रहो, जिनको करने से आपको आंतरिक खुशी मिलती हो।’

खुशी का संबंध इससे नहीं है कि हमारे पास प्रचुर मात्रा में भौतिक संसाधन हैं या अथाह धन-संपदा है। बल्कि खुशी एक आंतरिक अवस्था है, यानी खुशी का सीधा संबंध हृदयचक्र से है। विभिन्न परिस्थतियों में या तो हम अति-उत्साहित नजर आते हैं या फिर उदास हो जाते हैं। खुशी की अनुभूति के लिए तमाम भावनात्मक परिस्थतियों के प्रति द्रष्टा भाव का बारंबार अभ्यास बेहद जरूरी है।

इसके लिए सचेतनता सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और कारगर गतिविधि है। सचेतनता पूरी तरह ध्यान तो नहीं, किंतु ‘ध्यान’ के करीब की एक सहज प्रक्रिया है। इसका संबंध किसी भी धर्म, संप्रदाय, जाति या वर्ग से नहीं है। यह मन-मस्तिष्क को बेचैन करने वाले असंख्य विचारों को शांत करने का अभ्यास है।

जब व्यक्ति का हृदय प्रफुल्लित होता है तो उसकी तरंगें मन के माध्यम से बाहर की ओर परावर्तित होने लगती हैं। असल में खुशी एक भावनात्मक अवस्था है, जिसका स्रोत हर व्यक्ति के भीतर मौजूद है। आर्थिक समृद्धि की अपेक्षा व्यक्ति की खुशी उसके भावनात्मक बदलाव पर अधिक निर्भर करती है। तमाम भौतिक संसाधन और ऐश्वर्य न होने के बावजूद अगर व्यक्ति के मन में शांति है, अपनी दिनचर्या के प्रति रचनात्मक दृष्टिकोण और सकारात्मक सोच है तो उसका जीवन खुशियों से परिपूर्ण है।

गौरतलब है कि हर साल सयुंक्त राष्ट्र की ओर से जारी की जाने वाली ‘वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स’ रिपोर्ट में भी अमीरी और भौतिक सुविधाओं का आकलन खुशी के संदर्भ में नहीं किया जाता। हाल ही में जारी यूएन की खुशहाली सूचकांक रिपोर्ट में, जिसमें दुनिया के 137 देशों को शामिल किया गया। कोरोना महामारी की दुश्वारियों के बावजूद लगातार छठी बार उत्तरी यूरोप के देश फिनलैंड को विश्व का सबसे खुशहाल देश चुना गया।

मनोविश्लेषकों की राय है कि हमारे देश में लोग पारस्परिक व्यवहार में पारदर्शिता के बजाय बौद्धिक चतुराई का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं, फलस्वरूप आंतरिक खुशी के अहसास से वंचित रह जाते हैं। इसके उलट फिनलैंड के निवासी आपसी व्यवहार में ईमानदारी बरतते हैं। फिनलैंड के लोगों की खुशी शांति, संतोष और सामाजिक सुरक्षा पर आधारित है। यहां के लोगों का क्षमाशीलता में अटूट विश्वास है। असल में क्षमाशीलता ऐसा सद्गुण है, जिसके व्यावहारिक प्रयोग से हृदय में दीर्घकालिक खुशी का अहसास होता है।

जरूरी नहीं कि अरबपतियों से भरा देश खुशहाली से परिपूर्ण हो। विश्व के महाबली समझे जाने वाले अमेरिका का स्तर भी खुशहाली के लिहाज से अच्छा नहीं है। इस सूची में वह पंद्रहवें पायदान पर है। वहां सिर्फ आर्थिक विकास पर ध्यान दिया जाता है। वास्तव में खुशहाली मापने के लिए आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा, पारस्परिक सहयोग और सहृदयता, शिक्षा की गुणवत्ता, मानसिक स्वास्थ्य, सामुदायिक सौहार्द, कर्तव्यनिष्ठा तथा पर्यावरण संरक्षण जैसे कारकों पर विशेष ध्यान दिया जाना बहुत जरूरी है।

विश्व में ‘खुशहाली दिवस’ का आगाज सर्वप्रथम भूटान द्वारा किया गया। भूटान दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जिसने जीडीपी के पीछे भागती-दौड़ती दुनिया को बताया कि खुशहाली का पैमाना ‘सकल घरेलू उत्पाद’ नहीं, बल्कि ‘सकल राष्ट्रीय खुशहाली’ है। खुशी को आत्मसात करने में भूटान के नागरिकों ने मिसाल कायम की है।

वे यथार्थवादी और मिलनसार हैं, वे बड़ी कामयाबी हासिल करने की एवज में छोटी-छोटी खुशियों के पड़ावों को नजरअंदाज नहीं करते। भूटान के लोगों का विश्वास है कि जो दूसरों के प्रति सदैव करुणा और मंगल-मैत्री का भाव रखते हैं, उनका हृदय क्षोभ और विषाद से मुक्त रहता है। यहां के लोग आत्मीयता और प्रेम को वरीयता देते हैं। अतीत पर पश्चाताप और भविष्य का भय छोड़कर वर्तमान का आनंद लेना ही भूटानवासियों के जीवन का मूलमंत्र है।

कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और ‘वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट’ के सह-संपादक जान हैलीवेल का कहना है कि किसी भी देश के नागरिकों के पारस्परिक विश्वास, उदारवादी सोच और मददगार स्वभाव का खुशहाली से सीधा संबंध है। फिनलैंड और भूटान के लोगों में ये तमाम गुण अन्य देशों की बनिस्पत ज्यादा मिलते हैं।

फिनलैंड की यूनिवर्सिटी आफ हेलसिंकी के मनोवैज्ञानिक भी इस बात से सहमत हैं कि खुशहाली के लिए आपसी भरोसा, दूसरे के हितों को तरजीह देना और उदारता सबसे अहम है। दिलचस्प बात यह है कि फिनलैंड में आप्रवासी और अजनबी भी उतने ही भरोसेमंद हो जाते हैं, जितने कि वहां के मूल निवासी।

खुशी एक भावदशा है, जिसका स्रोत हर व्यक्ति के भीतर है। हम खुश रहना इसलिए भूल गए हैं, क्योंकि अपनी खुशी को दूसरे पर निर्भर कर दिया है। मसूरी-नैनीताल में घूमने, पांचसितारा होटल में भोजन करने, महंगी गाड़ी होने के बाद भी रात को सुकून भरी नींद नहीं आती। अगर धन-दौलत, शानौ-शौकत का तामझाम न होने के बावजूद अगर आपके पास शांति भरी आरामदायक नींद है, सुबह उठते ही उत्साह और उमंग भरी दिनचर्या है, विवेकशील और रचनात्मक नजरिया है, बेहतरीन सामाजिक संबंध है, पड़ोसियों का प्यार है तो आपसे खुशनुमा जीवन किसका हो सकता है।