पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की आखिरी किताब ‘द प्रेसिडेंशियल ईयर्स’ बाजार में आ गई है। इसमें उन्होंने नोटबंदी से लेकर कांग्रेस नेतृत्व और इसकी कार्यप्रणाली जैसे तमाम मुद्दों पर सवाल उठाए हैं। साथ ही कई चौंकाने वाले दावे भी किए हैं। मुखर्जी के मानें तो अगर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू मान गए होते तो पड़ोसी मुल्क नेपाल भारत का हिस्सा होता। हालांकि नेहरू ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।

प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब में दावा किया है कि नेपाल भारत का हिस्सा बनना चाहता था और इसके लिए नेपाल के तत्कालीन राजा त्रिभुवन बीर विक्रम ने बाकायदा तब के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को प्रस्ताव भी भेजा था। लेकिन नेहरू नहीं माने और उन्होंने कहा कि नेपाल को एक स्वतंत्र राष्ट्र ही बने रहना चाहिए। यह कहते हुए उन्होंने प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।

कांग्रेस समझ ही नहीं पाई कि करिश्मा खत्म हो गया है: पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब में कांग्रेस की कार्यप्रणाली पर भी तीखा प्रहार किया है और लिखा है कि पार्टी यह समझ ही नहीं पाई कि उसका करिश्माई नेतृत्व खो चुका है। मुखर्जी ने लिखा है कि मेरे राष्ट्रपति बनने के बाद कांग्रेस का राजनीतिक फोकस हट गया, संभवत: 2014 के लोकसभा चुनाव में हार के तमाम कारणों में से एक यह भी था। उन्होंने कांग्रेस के कई नेताओं का नाम लिए बगैर लिखा है कि किस तरह उनके घमंड और अनुभवहीनता ने पार्टी को नुकसान पहुंचाया।

Pranab Mukherjee
प्रणब मुखर्जी की आखिरी किताब। (साभार- रूपा पब्लिकेशंस)

नोटबंदी की नहीं दी थी जानकारी: प्रणब दा ने अपनी किताब में प्रधानमंत्री मोदी के नोटबंदी वाले फैसले पर भी टिप्पणी की है। आपको बता दें कि जब नोटबंदी का निर्णय लिया गया था तब प्रणब मुखर्जी ही राष्ट्रपति थे। उन्होंने लिखा है कि मोदी ने 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी की घोषणा की, लेकिन इस घोषणा से पहले मुझसे इस मुद्दे पर चर्चा ही नहीं की गई। इस फैसले पर कोई हैरानी नहीं हुई।

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उन्होंने मोदी सरकार के पहले कार्यकाल पर भी टिप्पणी की है और लिखा कि मोदी सरकार पहले टर्म में संसद को सुचारु रूप से नहीं चला सकी। इसकी वजह अकुशलता के साथ-साथ अहंकार भी था। मुखर्जी ने यह भी लिखा है कि जब यूपीए सरकार में थी तब भी वे विपक्ष के संपर्क में रहते थे और सुचारु रूप से सदन चलाने का प्रयास करते थे।