इमरजेंसी खत्म होने के बाद साल 1977 में केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी थी। इमरजेंसी के दौरान कई नए नेता उभरे थे। दिल्ली के ‘कॉन्स्टिट्यूशन क्लब’ में जनता पार्टी ने जातिवाद को खत्म करने के लिए एक कॉन्फ्रेंस बुलाने का फैसला किया था। इसमें कई दिग्गज नेता शामिल हुए थे। सभी नेताओं में इंदिरा गांधी को रायबरेली से आम चुनाव में शिकस्त देने वाले राज नारायण भी शामिल हुए थे।

राय नारायण की अपील के बाद ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी का निर्वाचन रद्द कर दिया था। राज नारायण को मोरारजी देसाई की सरकार में स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई थी। ‘द लल्लनटॉप’ के मुताबिक, राज नारायण ने कॉफ्रेंस में अपने भाषण में दलितों के लिए ‘हरिजन’ शब्द का इस्तेमाल किया था। शायद ये बात मायावती को बिल्कुल पसंद नहीं आई। सभी नेताओं को बारी-बारी बोलने का मौका मिल रहा था। इसके बाद बारी आई मायावती की। तब तक मायावती बड़ा नाम नहीं थीं और यूपीएससी की तैयारी कर रही थीं।

मायावती मंच पर चढ़ीं और राज नारायण के द्वारा इस्तेमाल किए गए शब्द को चुनौती देना शुरू कर दिया। मायावती ने कहा, ‘ये समाजवादी नेता खुद को बहुत बड़ा समझते हैं। लेकिन उन्हें ये नहीं पता कि दलितों के लिए हरिजन शब्द इस्तेमाल करना भी एक किस्म का अपमान ही है।’ मायावती का इस भाषण को सुनने के बाद भीड़ काफी उत्सुक हो गई और राज नारायण मुर्दाबाद के नारे लगने लगे। ये देखने के बाद वहां मौजूद सभी नेता हैरान रह गए।

IAS बनना चाहती थीं मायावती: मायावती वकालत कर रही थीं और शिक्षिका थीं, लेकिन उनका लक्ष्य नेता नहीं बल्कि ‘बाबू’ बनने का था। इसके लिए मायावती यूपीएससी की तैयारी भी कर रही थीं। जबकि उनकी किस्मत में तो कुछ और ही लिखा था। मायावती के भाषण के बाद इसकी खबर ‘बामसेफ’ मिशन के कांशीराम तक पहुंची और एक दिन वो खुद ही मायावती के घर पर पहुंच गए थे।

यहां उन्होंने मायावती से मुलाकात की और उन्हें अपने मिशन के साथ जुड़ने का ऑफर दिया। कुछ दिनों तक सोचने के बाद मायावती ने कांशीराम के मिशन के साथ जुड़ने का फैसला किया और आगे चलकर यूपी की सियासत की एक बड़ी नेता बनकर उभरीं।