पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पहचान एक विद्रोही राजनेता की रही है। सियासी सफर के दौरान जब-जब उसूलों पर बात आई वह लड़ गईं। अलग रास्ता चुना, लेकिन समझौता नहीं किया। अपने प्रशंसकों के बीच ‘दीदी’ के नाम से चर्चित ममता का राजनीतिक सफर आसान नहीं था।

अचानक गुजर गए पिता: 5 जनवरी 1955 को कोलकाता के कालीघाट में जन्मीं ममता के पिता प्रोमिलेश्वर सरकारी कांट्रेक्टर थे और मां घरेलू महिला। परिवार में सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन अचानक ममता के पिता का सिर्फ 41 साल की उम्र में निधन हो गया। परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। ममता समेत सभी 6 भाई-बहन उस वक्त ऐसी स्थिति में नहीं थे कि परिवार को संभाल सकें।

मोनोबिना गुप्ता अपनी किताब ‘दीदी: अ पॉलिटिकल बायोग्राफी’ में लिखती है कि पिता के जाने के बाद ममता बनर्जी के परिवार के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया। आमदनी का कोई और जरिया नहीं था। खुद ममता अपनी जीवनी में उन दिनों का जिक्र करते हुए लिखती हैं कि पिता के निधन के बाद उनके कुछ करीबी रिश्तेदारों ने किस तरीके से मौके का फायदा उठाना चाहा और उन्हें कालीघाट वाले घर से बीरभूम भेजना चाहा।

बेचनी पड़ी जमीन: ममता बनर्जी के मुताबिक उस कठिन दौर में उनके तमाम पड़ोसी और कांग्रेस के कई साथी मजबूती के साथ उनके साथ खड़े रहे। आर्थिक संकट से निपटने के लिए परिवार को अपनी 12 बीघा जमीन बेचनी पड़ी। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

आपको बता दें कि करीब चार दशक से राजनीति में सक्रिय ममता बनर्जी केंद्र में रेल, महिला एवं बाल विकास और कोयला जैसे अहम मंत्रालयों की कमान भी संभाल चुकी हैं। ममता बेहद सादगी भरा जीवन जीती हैं। उन्हें अक्सर सूती साड़ी और हवाई चप्पल में देखा जाता है। चुनावी हलफनामे के मुताबिक ममता के पास ना तो अपना खुद का कोई घर है और न गाड़ी।