आजादी से पहले भारत में 500 से ज्यादा छोटी-बड़ी रियासतें हुआ करती थीं। इन रियासतों में अंग्रेजी हुकूमत ने अपना रेजिडेंट तैनात कर रखा था, जो अंग्रेज अफसर होता था। रेजिडेंट इन रियासतों के राजा, महाराजा, रजवाड़ों और निजाम के काम पर एक तरीके से नज़र रखा करते थे और अंग्रेजी हुकूमत को समय-समय पर इसके बारे में इत्तला करते रहते थे। कुछ रियासतों को अंग्रेज सरकार द्वारा तैनात रेजिडेंट पसंद नहीं थे और इससे चिढ़ते थे। इन्हीं में से एक थे बड़ौदा के महाराजा।
महाराजा को ये बात बिल्कुल भी पसंद नहीं थी कि रेजिडेंट को उतनी ही तोपों की सलामी दी जाती थी जितनी तोपों की सलामी उन्हें दी जाती थी। इससे खीझकर महाराजा ने ठोस सोने की तोपें बनवा ली थीं, ताकि उनकी सलामी में कर्नल की सलामी से ज्यादा तेज गूंज हो। महाराजा की इस हरकत से चिढ़कर रेजिडेंट ने महाराजा बड़ौदा के चाल-चलन की घटिया रिपोर्ट लंदन भेज दी थी।
कर्नल से छुटकारा पाने का उपाय चाहते थे महाराजा: रेजिडेंट ने अपनी रिपोर्ट में आरोप लगाया कि महाराजा अपने हरम में औरतों को बंधक बनाकर रखते हैं। चर्चित लेखक और इतिहासकार डॉमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स अपनी किताब ‘फ्रीडम ऐट मिड नाइट’ में लिखते हैं, जब महाराजा को इस बारे में पता चला तो उन्होंने ज्योतिषियों और पंडितों को बुलाकर कर्नल से छुटकारा पाने का कोई उपाय करने को कहा, जिससे उनका शासन बिना किसी संकट के आराम से चलता रहे और कर्नल से भी मुक्ति मिल जाए।
खाने में मिलवा दिया था हीरा: ज्योतिषियों ने हीरे की भस्म का विष देकर कर्नल को मरवा देने का सुझाव दिया। महाराजा ने उपयुक्त आकार का हीरा चुनकर उसे पिसवाया। एक दिन रात को यह चूरा कर्नल के खाने में मिलवा दिया गया, लेकिन उसका असर होने से पहले ही कर्नल के पेट में तेज दर्द हुआ और उसे अस्पताल ले जाया गया। वहां उसका पेट साफ कर दिया गया और उसकी जान बच गई।
बाद में ये बात कर्नल को पता चल गई और न्यायाधीश के सामने पुरोहितों और जौहरी ने अपनी सफाई भी पेश की, लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ। बाद में महाराजा को अपनी करतूत के चलते गद्दी छोड़नी पड़ी थी। उन्हें बड़ौदा के महाराजा की गद्दी से उतार दिया गया था।