Baba Ramdev Early Life: ये 80 के दशक के आखिरी साल थे। तारीख थी 4 अक्टूबर। 16 साल का रामकिशन तड़के 4 बजे जगा। उस समय खाकी पैंट- नीली शर्ट यानी स्कूल की यूनिफार्म पहन रखी थी। इन्हीं कपड़ों में घर से चुपचाप बाहर निकल आया। चंद कदम पर एक दोस्त अपनी साइकिल लिए खड़ा था। दोनों साइकिल पर बैठे। रामकिशन ने दोस्त से कहा कि कम से कम उसे इतनी दूर छोड़ दे कि परिवार वाले पीछे न आ पाएं।
अंधेरे में छोड़ दिया था घर: दोस्त ने रामकिशन को नांगल चौधरी में छोड़ा। दो जोड़ी सफेद कपड़े और कुछ पैसे भी दिए। यह कहानी है योग गुरु बाबा रामदेव की, जो बचपन में रामकिशन के नाम से जाने जाते थे। हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के रहने वाले बाबा रामदेव को तब इतनी समझ नहीं थी, लेकिन मन में ठान लिया था कि उन्हें स्वामी दिव्यानंद के आश्रम जाना है।
उन्होंने नांगल चौधरी से नारनौल की बस ली और वहां से दिल्ली पहुंच गए। फिर दिल्ली से हरिद्वार की बस में बैठ। डर था कि कहीं कोई कुछ पूछ न ले, इसलिए बस में चुपचाप एक कोने में दुबक कर बैठे रहे। यहां तक कि बीच में चाय-नाश्ते के लिए बस रुकी तो उतरे भी नहीं।
हरिद्वार की जगह पहुंच गए रुड़की: बाबा रामदेव की जीवनी ”स्वामी रामदेव: एक योगी-एक योद्धा” में इस किस्से का जिक्र करते हुए वरिष्ठ पत्रकार संदीप देव लिखते हैं कि बचपन में बाबा रामदेव संकोची स्वभाव के थे और किसी से कुछ पूछने में हिचकते थे। इसी चक्कर में वे हरिद्वार की जगह रुड़की पहुंच गए। तब तक शाम हो चुकी थी।
वह दोबारा हरिद्वार की बस पकड़ने के लिए भागे लेकिन बस छूट गई और लोगों ने बताया कि अब अगली बस सुबह ही मिलेगी। यह सुनकर उनकी आंखों में आंसू आ गए। सुबह से बिना कुछ खाए पिए वह रुड़की में टहलते रहे।
कपड़े बदलने लगे तो लोगों ने समझ लिया था चोर: इसी बीच एक कॉलोनी में उन्हें एक खाली प्लॉट नजर आया। रामदेव ने सोचा कि कम से कम कपड़े बदल लिए जाएं। उन्होंने अपना स्कूल का यूनिफार्म उतार फेंका और दोस्त ने जो सफेद कपड़े दिए थे उसे पहनने लगे। इसी दौरान कॉलोनी के किसी शख्स ने उन्हें कपड़े बदलते देख लिया और चोर समझ बैठा। उसने अपनी बालकनी से ही चोर-चोर चिल्लाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे और लोग भी चिल्लाने लगे।
जान बचाकर भागे थे… बाबा रामदेव को समझ में आ गया था कि वह फंस चुके हैं और लोग उनकी पिटाई कर सकते हैं। उन्होंने भागना शुरू किया और तब तक भागते रहे जब तक काफी दूर नहीं निकल आए। बाद में एक दुकानदार की मदद से एक धर्मशाला में पहुंचे और वहां रात बिताई। अगली सुबह पूछते-पूछते हरिद्वार पहुंच गए। यहीं से योग, आयुर्वेद और आध्यात्म का सफर शुरू हुआ था।