कवक यानी फंगल संक्रमण एक आम त्वचा संबंधी संक्रमण होता है। यह संक्रमण तब होता है जब कवक या फंगस शरीर के किसी क्षेत्र में आक्रमण करते हैं और प्रतिरक्षा प्रणाली इनसे लड़ने में सक्षम नहीं होती है। कवक से प्रभावित त्वचा में लाल धब्बे, दाद, खुजली और त्वचा में घाव आदि लक्षण दिखाई देने लगते हैं। ये कवक हवा, मिट्टी, पौधों और पानी किसी भी जगह में विकसित हो सकते है तथा पर्यावरण के प्रभाव के कारण दिन-ब-दिन बढ़ने लगते हैं। फंगल संक्रमण भले त्वचा पर पड़ने वाले लाल चकत्तों जैसा होता है, पर इसका प्रभाव काफी खतरनाक साबित हो सकता है। यह रोग सिर्फ त्वचा तक सीमित नहीं होता है, बल्कि यह ऊतक, हड्डियों और शरीर के सभी अंगों को प्रभावित कर सकता है।
लक्षण
वैसे तो फंगस के कारण होने वाले संक्रमण में मूल रूप से खुजली या रैशेज ही होते हैं। इसके अलावा निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं:
त्वचा में लाल रंग के चकत्ते। प्रभावित क्षेत्रों पर सफेद चूर्ण की तरह पदार्थ निकलना। त्वचा में पपड़ी जमना या खाल उतरना। त्वचा में दरारें होना। त्वचा का लाल होना।
कारण
फंगल संक्रमण होने के बहुत सारे कारण होते हैं, जो फंगस के पनपने या बढ़ने की वजह बन जाते हैं:
कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली भी फंगल संक्रमण का कारण बनती है। ज्यादातर गर्म, नम वातावरण तथा नम त्वचा क्षेत्र इस संक्रमण के होने का प्रमुख कारण होते हैं। एड्स, एचआइवी संक्रमण, कैंसर, मधुमेह जैसी बीमारियां भी फंगल संक्रमण का कारण बनती हैं। जो लोग एक फंगल संक्रमण से पीड़ित व्यक्ति से संपर्क में आते हैं, उन्हें भी संक्रमण हो सकता है। अधिक वजन और मोटापा भी इसका एक कारण बन सकता है। जांघों पर अतिरिक्त चर्बी, नियमित और लंबे समय तक साइकिल चलाने या टहलने करने से इस हिस्से में अतिरिक्त नमी और रगड़ होने लगती है। लगातार रगड़ से त्वचा में रैशेज हो सकते हैं। इससे फंगल और अन्य संक्रमण हो सकते हैं। अधिक पसीना फंगस के बढ़ने का कारण हो सकता है। महिलाओं को सेनेटरी पैड से भी जांघों के आसपास संक्रमण हो सकता है। पाउडर, डियोड्रेंट, कपड़ा धोने के लिए इस्तेमाल होने वाले डिटर्जेंट पाउडर के एलर्जी के कारण भी जांघों के बीच रैशेज हो सकते हैं। कई बार बच्चों को नैपी की वजह से रैशज हो जाते हैं। जब बच्चा अधिक समय तक गीली नैपी पैड के संपर्क में रहता है, तो उसे ऐसी परेशानी हो सकती है।
आमतौर पर मानसून के दौरान फंगस पैदा करने वले जीवाणु कई गुना तेजी से फैलते हैं। आमतौर पर शरीर के नजरअंदाज जाने वाले अंगों जैसे पैर की अंगुलियों के आगे का भाग, अंगुलियों के बीच, कमर का निचला हिस्सा, जहां यह संक्रमण बहुत अधिक तेजी से होता है। मानसून के दौरान लोग हल्की बूंदाबांदी में भीगने के बाद अक्सर त्वचा को गीला छोड़ देते हैं। यही छोटी-सी असावधानी कई बार फंगल संक्रमण का कारण बन जाती है।
बचाव
त्वचा को सूखा और स्वच्छ रखें। सूती कपड़े पहनें। बरसात में बालों को गीला न रहने दें। पानी पर्याप्त मात्रा में पीएं ताकि त्वचा सूखी न रहे।
- हल्दी फंगल संक्रमण से राहत दिलाने में फायदेमंद है। इसके लिए आप संक्रमण वाली जगह पर कच्ची हल्दी को पीसकर लगा सकते हैं। अगर कच्ची हल्दी उपलब्ध नहीं है तो हल्दी पाउडर को थोड़े से पानी के साथ मिलाकर इसका गाढ़ा पेस्ट बनाकर प्रभावित जगह पर लगा सकते हैं।
- नीम त्वचा के किसी भी तरह के संक्रमण को रोकने में लाभकारी होता है। नीम के पानी या नीम की पत्तियों को पानी में उबाल कर इस पानी का प्रयोग दिन में कई बार त्वचा पर करने से फंगल संक्रमण से राहत मिलती है। पुदीने में भी संक्रमण के प्रभाव को नष्ट करने की क्षमता होती है। पुदीने की पत्तियों को पीसकर पेस्ट बना लें। इसे त्वचा पर लगा कर एक घंटा तक रहने दें फिर निकाल दें।
- पीपल की पत्तियों को थोड़े पानी के साथ उबाल लें। इसे ठंडा होने दें और इस पानी का प्रयोग त्वचा को धोने के लिए करें। इससे घाव जल्दी ठीक होने लगते हैं।
- लहसुन में फंगलरोधी गुण होते हैं इसलिए खाने में लहसुन के प्रयोग से फंगल संक्रमण का खतरा कम हो जाता है। लहसुन की तीन-चार कलियों को पीस कर संक्रमण वाली जगह पर लगाएं। अगर आपने संक्रमण वाली जगह को ज्यादा खुजलाया है तो लहसुन लगाने से एक मिनट हल्की-सी जलन हो सकती है, लेकिन इससे संक्रमण धीरे-धीरे ठीक होने लगता है। नारियल का तेल भी फंगल संक्रमण से राहत दिलाता है। प्रभावित क्षेत्र पर नारियल का तेल लगाएं और इसे सूखने दें। जब तक संक्रमण साफ नहीं हो जाता तब दो या तीन बार लगाएं।
(यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी और जागरूकता के लिए है। उपचार या स्वास्थ्य संबंधी सलाह के लिए विशेषज्ञ की मदद लें।)