महेंद्र सिंह धोनी को शराब पसंद नहीं है। वह इसके प्रति अपना विरोध भी मुखरता से जाहिर करते हैं। उनके कुछ करीबी कहते हैं कि उसकी गंध उन्हें परेशान करती है- विशेष रूप से शैंपेन और बीयर की। इस हद तक कि अगर अपने कमरे में उन्हें इसका हल्का-सा झोंका भी महसूस हो तो उसे बदल लेते हैं। अगर वह टीम को ड्रेसिंग रूम में चारों तरफ शैंपेन उड़ेलते जीत का जश्न मनाते देखते हैं, तो वहां नहीं जाते। जैसे टीम 2006 में जोहान्सबर्ग टेस्ट जीत के बाद शैंपेन की बोतल खोल जश्न मना रही थी, जब भारतीय टीम थोड़ी उत्तेजित हो गई थी।

आखिरकार, यह दक्षिण अफ्रीका में उनकी पहली टेस्ट जीत थी। और यह धोनी के करियर का चौदहवां टेस्ट मैच था, लेकिन उन्होंने बुलरिंग में ड्रेसिंग रूम के ठीक बाहर घास वाले किनारे पर इंतजार करना पसंद किया और वहां से हिले तक नहीं, क्योंकि उनके कुछ साथी तेजी से भागते हुए और एक दूसरे को बीयर और संतरे के रस से भिगोते हुए इधर-उधर भाग रहे थे। यहां तक कि इस उग्र तरह से मनाए जा रहे उत्सव ने तत्कालीन कोच ग्रेग चैपल को ‘एक-दूसरे पर बीयर उड़लने के बजाय उसे पीने’ पर काफी देर तक बोलने के लिए उकसा दिया था।

दोस्त कुछ यूं याद करते हैं: धोनी अक्सर खुद कहते हैं कि यह शराब का ‘कड़वा’ स्वाद है, जो उन्हें इसे पीने से रोकता है। लेकिन और लोग पी रहे हों तो उन्होंने इस पर कभी आपत्ति नहीं जताई। रांची के लोग याद करते हैं कि कैसे अपने युवा दिनों में वह यह हमेशा सुनिश्चित करते थे कि उनके सबसे करीबी दोस्त उनकी क्रिकेट उपलब्धियों का जश्न मनाते समय भरपूर आनंद उठाएं, और वह उसका एक गिलास लेकर उनके साथ बैठ जाते, जिससे एक घूंट भी शायद उन्होंने लिया हो, जबकि अन्य लोग गटगगट कर सारी बीयर खत्म कर देते थे।

लेकिन यह बात तब अर्थहीन पड़ जाती है जब उनके फौजी दोस्त उनसे मिलने आते हैं, और वह एक मेज़बान की भूमिका निभाते हैं। उनके बहुत करीबी के अनुसार, केवल इसी समय धोनी पीते हैं। हालांकि कर्नल शंकर के ऐसा नहीं मानते। देखा जाए तो यह मेजबानी करने और यह सुनिश्चित करने की बात है कि मेहमान अच्छा तरह से पूरी मस्ती के साथ समय बिता सकें और वे पूरी तरह से सहज महसूस करें।

सिगरेट भी नहीं है पसंद: धोनी को सिगरेट पीना भी पसंद नहीं है। लेकिन अपने युवा दिनों में, वह अपने विदेशी दौरों के दौरान ड्यूटी-फ्री दुकानों से अकसर अपने करीबी दोस्तों के लिए सिगरेट खरीदा करते थे। हालांकि, बिना ताना मारे वह उन्हें सिगरेट नहीं देते थे — ‘मेरे पैसे से तु खुद की जिंदगी जला रहा है।’

जब एक छात्रा ने कहा, धोनी एक दिन देश के लिए खेलेगा: धोनी की एक सहपाठिनी थी। बनर्जी सर उस छात्रा के बारे में बात करते हुए आज भी स्तंभित रह जाते हैं। ‘मैं धोनी को मैच के लिए बुलाने के लिए उसकी क्लास में गया था। अगर मैं किसी और बच्चे को उसे बुलाने के लिए भेजता तो शिक्षक हंगामा करते।’ धोनी के खेल शिक्षक ने आगे बताया, ‘वह ग्यारहवीं या बारहवीं कक्षा का अकाउंट्स का पीरियड था। उस दिन शर्मिष्ठा कुमार क्लास ले रही थीं, जो बिजनेस और अकाउंट्स पढ़ाती थीं। वहीं अनोखी भविष्यवक्ता के साथ मुलाकात हुई।’

?जैसे ही माही वहां से निकले, एक लड़की अचानक उठी और कहा, ‘मैम, माही को जाने नहीं दें। जाने से पहले इसका ऑटोग्राफ ले लें। बाद में आपको नहीं मिलेंगे।’

‘क्यों?’ बनर्जी सर ने पूछा।

‘यह एक दिन भारत के लिए खेलेगा।’ उस लड़की ने पूरे विश्वास के साथ कहा।

‘किसे पता यह कब या कभी भारत के लिए खेलेगा।’ बनर्जी सर ने तब जवाब दिया था।

बाद में, जब माही को भारत के लिए चुना गया था, तो सबसे पहले बनर्जी सर को उस लड़की का ही ख्याल आया था, जिसने किसी और से पहले माही के ऊंचाइयों पर पहुंचने की बात का पूर्वानुमान लगा लिया था। बनर्जी सर ने लेखक को यह घटना बताई।

छोटू ने पहचाना निवेश करने का सही समय: जब धोनी ने स्कूल में खेलना ही शुरू किया था, तब एक मित्र छोटू ने सोचा कि इस नवोदित प्रतिभा में निवेश करने का यह सही समय है। ‘मैं उन दिनों जालंधर में बीएएस कंपनी के मालिक श्री कोहली के साथ बैठता था। मैंने उनसे एक बार कहा, ‘अंकल, मेरे पास एक ऐसा खिलाड़ी है जो ज़रूरतमंद है और उसके पास अपना किट खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं। वैसे भी, आप दो किट प्रायोजित कर रहे हैं, बस इस लड़के की भी मदद कर दें। नाम है एमएस धोनी।’ लेकिन वह मेरी बात से आश्वस्त नहीं हुए। उन्होंने कहा, ‘इतनी जल्दी कैसे होगा?’

लेकिन छोटू इतनी आसानी से हार मानने वाले नहीं थे। कुछ दिनों बाद, वह उसी अनुरोध के साथ कोहली के कार्यालय में वापस पहुंचे। ‘बहुत आगे-पीछे, आगे-पीछे हुआ और फिर वह एक तरह से सहमत हो ही गए। मैं वापस आया और माही को बताया कि एक कंपनी उसे प्रायोजित करने के लिए तैयार है और उसे उसकी बायोडाटा तैयार करने के लिए राजी किया। मैं वापस जालंधर गया और कहा, ‘पाजी, आज किट दे दो, दो दिन में उसका मैच है।’

मैच से एक दिन पहले घर पहुंची थी टीम: उन्होंने मुझे देखा और कहा, ‘दो दिन, ना? चलो, देखते हैं।’ मैंने अपना सिर हिलाते हुए कहा, ‘क्या मैंने दो दिन कहा? मेरा मतलब कल था।’ छोटू की बात सुनने के लिए वह हंसने लगते हैं। उनके बार-बार अनुरोध करने के बावजूद कि उन्हें किट अभी दे दो, वह यह गारंटी मिलने पर वापस लौट आते हैं कि किट को जल्द ही कुरियर द्वारा भेज दिया जाएगा।

हालांकि यह डील अभी तक पक्की नहीं हुई थी और जब तक छोटू वापस रांची पहुंचे, तब तक धोनी को रणजी के लिए बिहार टीम में चुन लिया गया था। छोटू के चीखने-चिल्लाने के साथ फिर फोन करने का सिलसिला चालू हुआ, ‘अब उसका नाम रणजी टीम में आ गया है। अब तो सामान भेज दो।’ मैच की पूर्व संध्या पर ही धोनी की सबसे पहली किट मेकॉन कॉलोनी में उनके तत्कालीन घर, एन 171 पर पहुंची। छोटू फिर अपने बीएएस स्वेटर पहने धोनी की तस्वीर की ओर इशारा करते हैं।

पेंगुइन से प्रकाशित भरत सुंदरेशन की किताब ‘महेंद्र सिंह धोनी: एक अबूझ पहेली’।

(पेंगुइन से प्रकाशित भरत सुंदरेशन द्वारा लिखी गई किताब ‘महेंद्र सिंह धोनी: एक अबूझ पहेली’ का अंश)