बदलते वक्त के साथ मनुष्य के सोचने-समझने का तरीका और दायरा भी बदल रहा है। भावनाएं अब व्यक्तित्व पर हावी होने लगी हैं। दरअसल, भावनाएं हमारी गतिविधियों और कार्यों को प्रेरित करती हैं। उत्साह हमें गतिशील बनाता है, जिज्ञासा हमें हर तरह का ज्ञान हासिल करने के लिए सक्रिय बनाती है, तो प्रेम एवं स्नेह दूसरों का ध्यान रखने के लिए प्रेरित करता है।
मगर जब डर, चिंता, तनाव, नफरत, हताशा, दुख, बेचैनी या शर्मिंदगी जैसी परिस्थितियों में उपजी प्रबल भावनाएं हम पर हावी हो जाती है, तो वह हमारी सारी एकाग्रता छीन लेती है। तब हम किसी भी वस्तु, स्थिति या घटना को दूसरों के नजरिए से नहीं देख पाते, क्योंकि हमें अपना दृष्टिकोण ही सही लगने लगता है।
आपसी समझ के बजाय हम अपनी जिद पर अड़े रहते हैं, जिससे कई बार विरोधाभास और टकराव की स्थिति पैदा हो जाती है। ऐसे में सबसे पहले अपनी भावनाओं के महत्त्व और उनके नकारात्मक पहलुओं को समझना जरूरी है, ताकि सोचने और संवाद की सार्थकता पर ध्यान केंद्रित किया जा सके।
स्वीकृति से शुरुआत
अगर किसी व्यक्ति का स्वभाव भावुकता से भरा है, तो उसे अपने अंतर्मन से यह बात स्वीकार करनी चाहिए। अपनी भावनाओं को पहचानना और स्वीकार करना, इन पर नियंत्रण पाने की दिशा में पहला कदम है। इस क्रम में अपनी भावनाओं को नकारने या उन्हें बदलने की कोशिश करने की जरूरत नहीं है, बल्कि उनकी व्यावहारिकता को समझना आवश्यक है।
कोई भी भावना हमारे मस्तिष्क के लिए एक शारीरिक संदेश की तरह होती है और जब हम इस संदेश को ग्रहण करते हैं, तो प्रतिक्रियात्मक भाव पैदा होते हैं। इस भाव को व्यक्त करने या व्यावहारिक रूप देने से पहले इस पर पुनर्विचार करना जरूरी है। इससे भावनाओं पर नियंत्रण पाने में मदद मिल सकती है।
गहराई से करें विचार
गहन विचार भावनाओं के वशीभूत होकर काम पूरा करने की कोशिश से बेहतर है कि थोड़ा समय लें। कई बार हम प्रबल भावनात्मक प्रतिक्रिया में बिना सोचे-समझे कुछ कह देते हैं या किसी कार्य को अंजाम देते हैं, जिसके परिणाम सुखद नहीं होते हैं। इसलिए थोड़ा समय लेने की कोशिश करना कमजोरी नहीं, बल्कि समझदारी है। यदि किसी को ऐसा महसूस होता है कि अपनी भावनात्मक प्रतिक्रिया के बारे में बात करना सुरक्षित नहीं है, तो उस पर पहले गहराई से विचार करने में कोई बुराई नही है।
शांत चित
भावनाओं पर नियंत्रण पाने के लिए जरूरी है कि हम शांत चित से अपनी प्रतिक्रिया किसी तटस्थ व्यक्ति के साथ साझा करें, ताकि दूसरों के विचारों और नजरिए को जानने-समझने का मौका मिल सके। जब हमें अपने विचारों की पर्याप्त समझ हो जाती है, तो हम स्वाभाविक रूप से दूसरों की बात और उनकी राय सुनने के लिए तैयार हो जाते हैं।
किसी तटस्थ व्यक्ति के साथ बातचीत हमें अपनी भावनाओं को ऐसे रूप में प्रस्तुत करने में भी मदद करती है। जब हम अपनी भावनाओं में छिपे संदेशों को ठीक से समझना सीख जाते हैं, तो तर्कसंगत तरीके से कार्य करने की हमारी क्षमता भी विकसित होने लगती है।
