महागुरु गौरव मित्तल – चौथा नवरात्री: माँ दुर्गा का कूष्माण्डा रूप में पूजन

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

मां दुर्गा के नवरूपों में चौथा रूप है कूष्माण्डा देवी का दुर्गा पूजा के चौथे दिन देवी कूष्माण्डा जी की पूजा का विधान है। देवी कूष्माण्डा अपनी मन्द मुस्कान से ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण कूष्माण्डा देवी के नाम से प्रसिद्ध हुईं।

कूष्माण्ड कूम्हडे को कहा जाता है, कूम्हडे की बलि इन्हें प्रिय है, इस कारण भी इन्हें कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है। जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी अराधना में समर्पित हैं उन्हें मन को अनहत चक्र में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए व साधना में बैठना चाहिये।

कुष्मांडा स्वरुप:

दुर्गा सप्तशती के अनुसार देवी कूष्माण्डा इस चराचार जगत की अधिष्ठात्री हैं। जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी उस समय अंधकार का साम्राज्य था तब देवी कुष्मांडा द्वारा ब्रह्माण्ड का जन्म होता है अत: यह देवी कूष्माण्डा के रूप में विख्यात हुई। इस देवी का निवास सूर्यमण्डल के मध्य में है और यह सूर्य मंडल को अपने संकेत से नियंत्रित रखती हैं।

देवी कूष्मांडा अष्टभुजा से युक्त हैं अत: इन्हें देवी अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है। देवी अपने इन हाथों में क्रमश: कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत से भरा कलश, चक्र तथा गदा व माला है। माता की वर मुद्रा भक्तों को सभी प्रकार की ऋद्धि सिद्धि प्रदान करने वाली होती है। देवी सिंह पर सवार हैं भक्तों की रक्षा करती है। भक्त श्रद्धा पूर्वक चौथे दिन मां कूष्मांडा की उपासना करते हैं। माता के पूजन से भक्तों के समस्त प्रकार के कष्ट रोग, शोक संतापों का अंत होता है तथा दिर्घायु एवं यश की प्राप्ति होती है।

कूष्मांडा व्रत पूजन:

दुर्गा पूजा के चौथे दिन माता कूष्माण्डा की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए। दुर्गा पूजा के चौथे दिन देवी कूष्माण्डा की पूजा का विधान उसी प्रकार है जिस प्रकार शक्ति अन्य रुपों को पूजन किया गया है। इस दिन भी सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए। तत्पश्चात माता के साथ अन्य देवी देवताओं की पूजा करनी चाहिए, इनकी पूजा के पश्चात देवी कूष्माण्डा की पूजा करनी चाहिए। पूजा की विधि शुरू करने से पूर्व हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम करना चाहिए तथा पवित्र मन से देवी का ध्यान करते हुए “सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च. दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे.”नामक मंत्र का जाप करना चाहिए।

देवी की पूजा के पश्चात महादेव और परम पिता की पूजा करनी चाहिए। श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए। इस प्रकार साधक, भक्त व श्रधालुओं को भगवती कूष्माण्डा सफलता व सुख प्रदान करती हैं। चतुर्थ शक्ति पूजन से व्यक्ति सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है और मां का अनुग्रह प्राप्त करता है।

पूजा में उपयोगी खाद्य साम्रगी:

चतुर्थी के दिन मालपुए का नैवेद्य अर्पित किया जाए और फिर उसे योग्य ब्राह्मण को दे दिया जाए। इस अपूर्व दान से हर प्रकार का विघ्न दूर हो जाता है।