एचडी देवगौड़ा (H. D. Deve Gowda) जून 1996 में देश के 11वें प्रधानमंत्री बने। जब वे PM की कुर्सी पर बैठे तब न तो दिल्ली की सियासत में उनकी खास पहचान थी और न पकड़। दरअसल, 1996 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार महज 13 दिनों में गिर गई तब तमाम दिग्गज गैर कांग्रेसी-गैर भाजपाई नेताओं ने संयुक्त मोर्चा का गठन किया। इसमें टीडीपी, समाजवादी पार्टी, डीएमके और सीपीआई जैसे दल शामिल थे।
संयुक्त मोर्चा ने PM पद के लिए सबसे पहले अपने सिद्धांतों के लिए चर्चित पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु से संपर्क किया। बसु ने हामी भी भर दी, लेकिन उनकी पार्टी ने अड़ंगा लगा दिया। मजबूरन ज्योति बसु को इनकार करना पड़ा। इस बीच मुलायम सिंह यादव और लालू ने भी अपनी उम्मीदवारी ठोकी, लेकिन इसपर एकमत नहीं बन पाया।
चंद्रबाबू नायडू ने आगे किया नाम: तमाम उहापोह के बीच टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी देवगौड़ा का नाम आगे कर दिया। सियासी गलियारों में देवगौड़ा की छवि बेहद नम्र और अपने काम से काम रखने वाले नेता की थी। संयुक्त मोर्चा में शामिल तमाम धुरंधरों और इसे बाहर से समर्थन दे रही कांग्रेस नेताओं को लगा कि देवगौड़ा पीएम की कुर्सी पर बैठ भी गए तो उनका कोई नुकसान नहीं, उल्टा काम ही निकलवाया जा सकता है। हालांकि देवगौड़ा 10 महीने ही पीएम की कुर्सी पर रहे। अप्रैल 1997 में उनकी कुर्सी चली गई।
बिजनेसमैन अपनी समस्या सुनाने पहुंचे: देवगौड़ा अपने सुस्त मिज़ाज के लिए भी जाने जाते थे। वे अक्सर बैठकों या सदन में झपकी लेते देखे जाते थे। दिल्ली आए तो साथ ये आदत भी आई। वरिष्ठ पत्रकार-लेखक रशीद किदवई ने अपनी किताब ‘भारत के प्रधानमंत्री’ में देवगौड़ा से जुड़ा ऐसा ही एक दिलचस्प किस्सा लिखा। वे डीएलएफ (DLF) के चेयरमैन केपी सिंह की आत्मकथा के हवाले से लिखते हैं कि एक बार उनके (केपी सिंह) के नेतृत्व में देश के तमाम दिग्गज बिजनेसमैन पीएम देवगौड़ा से मिलने पहुंचे।
बैठक में सो रहे थे देवगौड़ा: दरअसल, उद्योगपति देश की खराब होती आर्थिक स्थिति से पीएम को रूबरू कराना चाहते थे और बाकायदा तैयारी कर के गए थे। वे पीएम के सामने अपना प्रजेंटेशन देते रहे और जब यह ख़त्म हुआ तो उन्हें पता चला कि देवगौड़ा कुछ सुन ही नहीं रहे थे, बल्कि सो रहे थे। प्रजेंटेशन खत्म होते ही वे जगे और कहने लगे, ‘मुझे बहुत खुशी है कि देश की अर्थव्यवस्था ठीक-ठाक चल रही है।’