उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए तैयारियां शुरू कर दी है। मायावती आज भले ही राजनीति में बड़ा नाम हों, लेकिन कभी उनका सपना राजनीति में आने का नहीं था। कांशीराम ने उन्हें अपने ‘बामसेफ’ मूवमेंट से जुड़ने का ऑफर दिया था और यहीं से उनकी राजनीति में एंट्री हुई थी। मायावती पर मुख्यमंत्री रहते हुए अधिकारियों का जबरन तबादला करने का आरोप लगता था। लेकिन उन्होंने कई बार अधिकारियों की मदद भी की थी।

रुकवाया था अधिकारी का ट्रांसफर: मायावती ने पत्रकार रहे राजीव शुक्ला के साथ इंटरव्यू में एक किस्सा सुनाया था। मायावती ने कहा था, ‘मैं सरकारी दफ्तरों में काम करने वाले अधिकारियों से भी भी हालचाल पूछती थी। एक अधिकारी दो या तीन महीने में रिटायर होने वाला था तो मैंने कहा कि किसी को तंग नहीं करना चाहिए। शायद दो या तीन महीने ही बचे होंगे उसके रिटायर होने के लिए। अधिकारी ने मुझसे गुज़ारिश की कि बहन जी मैं जनवरी में रिटायर होने वाला हूं उसके बाद में मैं कहा जाऊंगा? मैंने खुद उसका ट्रांसफर रद्द करवाया था।’

मायावती से वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता ने भी एक इंटरव्यू में पूछा था कि आपके ऊपर अधिकारियों के जबरन तबादले करने का आरोप लगता था। इसके जवाब में मायावती कहती हैं, ‘ऐसा नहीं है जो भी अधिकारी काम करते हैं, उनका कभी भी ट्रांसफर नहीं किया जाता है। काम चोर अधिकारियों को जरूर मुझसे डर लगता था। क्योंकि मैं हफ्ते या महीने में अधिकारियों की रिव्यू मीटिंग लिया करती थी और काम नहीं करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई की जाती थी।’

अधिकारी रहते थे बाहर खड़े: मायावती ने एक इंटरव्यू में बताया था, ‘मैं आईएएस अधिकारी बनना चाहती थी। कांशीराम ने मुझसे कहा कि अधिकारी बनने के बाद भी आपको नेताओं के इशारे पर काम करना पड़ेगा। इसलिए सबसे अच्छा है कि आप खुद ही नेता बन जाओ। मैंने उनकी बात मानी और राजनीति में आई। जब उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा की सरकार बनी तो अधिकारी मेरे पास फाइल लेकर आते थे और तब मैं सीएम भी नहीं थी। क्योंकि पार्टी ने मुझे यूपी की जिम्मेदारी दे रखी थी।’

बता दें, साल 1995 में मायावती पहली बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थीं। हालांकि वह लंबे समय तक कुर्सी पर नहीं रह सकीं। साल 2007 में आखिरकार वह मौका आ गया जब यूपी की जनता ने बीएसपी को बहुमत दिया और मायावती एक बार फिर सीएम की कुर्सी पर बैठीं थीं। इस दौरान उन्होंने कई अहम फैसले लिए, लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी बहुमत से चूक गई और सत्ता समाजवादी पार्टी के पास चली गई थी।