Breastfeeding Tips: शिशु के बहुमुखी विकास के लिए आवश्यक स्तनपान के कई सारे लाभ हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) शिशु को शुरुआती छह महीनों तक अनन्य स्तनपान (Exclusive Breastfeeding) करवाने की सलाह देते हैं। इसके बाद स्तनपान के साथ-साथ शिशु को ठोस आहार देना शुरु किया जाना चाहिए। यह मां के लिए भी उतना ही फायदेमंद है जितना कि बच्चे के लिए। अमेरिका के एक जर्नल, जर्नल ऑफ द अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन में छपी एक शोध के अनुसार ब्रेस्ट फीडिंग कराने वाली महिलाओं को हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा लगभग दस प्रतिशत तक कम हो सकता है। आइए जानते हैं कि स्तनपान कराने वाली महिलाएं किन बीमारियों से रहती हैं दूर-
ओवेरियन कैंसर: ओवेरियन कैंसर का एक मुख्य कारण शुरुआती ओव्यूलेशन है। स्तनपान ओव्यूलेशन प्रक्रिया में देरी करता है जो एक सुरक्षा तंत्र के रूप में कार्य करता है। वहीं, अगर मां स्तनपान नहीं कराती है तो दोबारा प्रेग्नेंट होने की शंका ज्यादा होती है। इसके कारण उनका स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है, साथ ही इससे ओवेरियन कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है।
पोस्टपार्टम अवसाद: प्रेग्नेंसी के बाद अवसाद की परेशानी कई महिलाएं झेलती हैं, इसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहते हैं। पीपीडी के प्रमुख लक्षण हैं नींद न आना, भूख न लगना, चिड़चिड़ापन, बच्चे के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ने में कठिनाई महसूस करना। ऐसे में जो महिलाएं स्तनपान कराती हैं वो इस मानसिक बीमारी से दूर रहती हैं।
ब्रेस्ट कैंसर: इस बात से अधिकतर लोग वाकिफ हैं कि जो महिलाएं स्तनपान नहीं कराती हैं, उनमें स्तन कैंसर होने का खतरा दूसरी महिलाओं की तुलना में अधिक होता है।
मैटर्नल मेटाबॉलिज्म में गिरावट: महिलाएं आमतौर पर गर्भावस्था के बाद वजन बढ़ने की शिकायत करती हैं और इसका एक कारण यह हो सकता है कि वे अपने बच्चे को सही तरीके से स्तनपान नहीं कराती हैं। बच्चों को ब्रेस्टफीड कराने वाली महिलाओं का वजन जल्दी नहीं बढ़ता क्योंकि मिल्क के प्रोडक्शन में शरीर को अधिक एनर्जी की जरूरत पड़ती है। ऐसे में वजन नियंत्रित रहता है। इसके अलावा, जब महिला स्तनपान कराती है तो उस समय उनके शरीर में खिंचाव होता है जिसकी वजह से वजन कम होता है।
अर्थराइटिस और हृदय रोग: कई महिलाएं ऑस्टियोपोरेसिस, रुमेटॉयड अर्थराइटिस और दिल से संबंधित कई बीमारियों के शिकार हो जाती हैं। इसके पीछे भी स्तनपान न कराना जिम्मेदार हो सकता है। वहीं, बच्चे के जन्म के बाद से ही मां को ब्लीडिंग शुरू हो जाती है; अगर महिला स्तनपान कराती है तो ब्लीडिंग में कमी आती है। इससे महिलाओं में पोस्टपार्टम हैमरेज का खतरा भी कम होता है।

