एयर इंडिया की स्थापना भी टाटा ग्रुप ने की थी। एयर इंडिया भारत की पहली एयरलाइंस थी और इसका सपना जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा का था, जिन्हें जेआरडी या जेह के नाम से भी जाना जाता है। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि टाटा ग्रुप ने एयर इंडिया की सबसे ज्यादा बोली लगाकर इसे अपने नियंत्रण में ले लिया है। हालांकि सरकार की तरफ से ऐसी सभी खबरों का खंडन किया गया है।

बता दें, जेआरडी टाटा को दूरदर्शी बिजनेसमैन भी माना जाता था। जेआरडी टाटा जब 15 साल की उम्र के थे तभी से शौकिया तौर पर हवाई जहाज उड़ाया करते थे। बाद में हवाई जहाज के प्रति दीवानगी और बढ़ती गई। वे पायलट का लाइसेंस पाने वाले पहले भारतीय भी थे।

चिट्ठियां ढोने का काम करती थी टाटा एयरलाइंस: आगे चलकर उन्होंने अप्रैल 1932 में टाटा एयरलाइंस की नींव रखी। जेआरडी के लिए ये सफर आसान नहीं था। वह कंपनी की फ्लाइट खुद कराची से बंबई लेकर पहुंचे थे। उस समय इसमें कुछ भी नहीं था बल्कि 25 किलो चिट्ठियां थीं। कंपनी के पास छोटे सिंगल इंजन वाले सिर्फ दो जहाज हुआ करते थे। तमाम मुश्किलों के बाद भी वह नहीं हारे और अपनी व्यावसायिक सेवाओं को जारी रखा। ब्रितानी सरकार उन्हें सिर्फ हर चिट्टी पर 4 आने दिया करती थी।

टाटा एयरलाइन्स से एयर इंडिया: द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद साल 1946 में टाटा एयरलाइन्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन गई। इसका नाम बदलकर एयर इंडिया लिमिटेड रख दिया गया। आजादी के बाद सरकार ने कंपनी के 49 प्रतिशत शेयर खरीद लिए। 1953 में सभी नौ निजी हवाई कंपनियों का इंडियन एयरलाइंस में विलय कर दिया। इसके बाद एयर इंडिया भी सरकार के नियंत्रण वाली कंपनी बन गई। जेआरडी को इससे धक्का लगा, लेकिन उन्हें एयर इंडिया का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया।

जेआरडी ने एयर इंडिया के अध्यक्ष के रूप में कंपनी में कई सुधार किए। पंडित नेहरू के बाद देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बनीं और तमाम मतभेद के बाद भी उन्होंने जेआरडी को ही एयर इंडिया का अध्यक्ष बनाए रखा। लेकिन साल 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। देसाई ने प्रधानमंत्री बनते ही जेआरडी टाटा को एयर इंडिया से बाहर का रास्ता दिखा दिया।

बाहर करने से पहले सूचना तक नहीं दी थी: मोरारजी देसाई ने टाटा को इसकी कोई पहले से सूचना भी नहीं दी। उनकी जगह पीसी लाल को एयर इंडिया की कमान सौंप दी गई थी और इसकी खबर भी टाटा को लाल से ही मिली। तत्कालीन प्रधानमंत्री के इस फैसले के विरोध में प्रबंध निदेशक के जी अप्पूस्वामी और उनके नंबर दो नारी दस्तूर ने भी इस्तीफा दे दिया था।

मजदूर यूनियन ने भी इस फैसले पर अपनी नाराज़गी दिखाई क्योंकि ये जेआरडी की विदाई नहीं बल्कि उन्हें अपमानित करना ही था। इसके बाद टाटा के हाथ से एयर इंडिया की कमान फिसल गई।