Collegium System: भारत के अगले सीजेआई जस्टिस सूर्यकांत ने हाल ही में कॉलेजियम सिस्टम को लेकर अपनी राय रखी। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा की न्यायिक नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम सिस्टम काफी अहम है। सूर्यकांत के अनुसार, भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखने और सरकार की तीनों शाखाओं के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए कॉलेजियम सिस्टम महत्वपूर्ण है।
जस्टिस सूर्यकांत ने यह बातें श्रीलंका में कहीं। जब वह ‘जीवंत संविधान- भारतीय न्यायपालिका संविधानवाद को कैसे आकार देती है और उसकी रक्षा करती है’ विषय पर व्याख्यान दे रहे थे। सूर्यकांत ने संबोधन के दौरान कहा, ‘भारत शक्तियों के विभाजन के सिद्धांत के अमल का एक शानदार उदाहरण प्रस्तुत करता है। इसका एक प्रमुख उदाहरण सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में नियुक्तियों पर न्यायपालिका का अधिकार है।’
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि यह तंत्र न्यायालय के अंदर और बाहर दोनों जगह प्रशासनिक कार्य क्षमता के संबंध में न्यायपालिका की स्वायत्तता को संरक्षित करता है।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता उसे समाज की लोकतांत्रिक कल्पना को आकार देने और लोकतांत्रिक जीवन के वास्तुकार के रूप में कार्य करने की अनुमति देता है उन्होंने कहा कि अगर शक्तियों का पृथक्करण भारत के संवैधानिक लोकतंत्र का ढांचा है, तो न्यायिक समीक्षा उसकी धड़कन है।
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सूर्यकांत ने आगे ज्यूडिशियल रिव्यू जैसे मुद्दों पर भी अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि न्यायिक समीक्षा के तहत भारतीय न्यायपालिका को संवैधानिक पदाधिकारी द्वारा लिए गए फैसलों सहित, शासन के प्रत्येक अंग द्वारा किए गए कार्यों की संवैधानिकता की जांच करने की गहन शक्ति गई है। उन्होंने कहा कि न्यायिक समीक्षा यह सुनिश्चित करती है कि शासन का कोई भी कार्य न्यायिक निगरानी के दायरे से बाहर न रहे।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा की समीक्षा की व्यापक शक्ति भारत के संवैधानिक लोकतंत्र की आधारशिला और हमारे मूल ढांचे का एक भाग है, जो इस बात की पुष्टि करती है की वैधानिकता और संवैधानिकता सार्वजनिक शक्ति के प्रयोग की मूलभूत पूर्वशर्तें हैं। उन्होंने कहा कि इसलिए न्यायिक समीक्षा केवल एक प्रक्रियात्मक सुरक्षा नहीं है, यह जवाबदेही, वैधानिकता, संवैधानिक मानदंडों की सर्वोच्चता के प्रति एक ढांचागत प्रतिबद्धता है।
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