Talaq-e-Hasan practice: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मुस्लिम समुदाय के एक हिस्से में प्रचलित तलाक-ए-हसन की प्रक्रिया पर सवाल उठाया। कोर्ट ने पूछा, “क्या कोई सभ्य समाज ऐसी प्रथा को मंजूरी दे सकता है?” जस्टिस सूर्य कांत की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने कहा,“यह कैसी प्रथा है? 2025 में आप इसे कैसे बढ़ावा दे रहे हैं? हम चाहे जो भी धार्मिक परंपरा मानें, क्या महिलाओं की गरिमा इसी तरह सुरक्षित रहेगी? क्या किसी सभ्य समाज में ऐसी प्रक्रिया को स्वीकार किया जा सकता है?”

इस बेंच में जस्टिस उज्ज्वल भूयान और जस्टिस एन. के. सिंह भी शामिल थे। कोर्ट पत्रकार बेनजीर हीना की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उन्होंने तलाक-ए-हसन की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है। याचिकाकर्ता का कहना है कि यह प्रथा अनुचित, मनमानी है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करती है। कोर्ट ने कहा कि जब कोई मुद्दा समाज के बड़े हिस्से को प्रभावित करता है, तो न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ता है।

जस्टिस कांत ने कहा, “जब समाज का बड़ा वर्ग प्रभावित होता है, तो कुछ न कुछ उपाय जरूरी है। अगर कोई प्रथा गंभीर भेदभाव पैदा करती है, तो कोर्ट को दखल देना ही होगा।”

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उन्होंने यह भी संकेत दिया कि मामले को 5 जजों की संविधान पीठ को भेजा जा सकता है। अदालत ने सभी पक्षों से कहा कि वे उन सवालों की सूची दें, जो इस मामले में उठेंगे।“आप हमें एक छोटा-सा नोट दें, जिसमें मुख्य सवाल हों। फिर हम तय करेंगे कि इसे संविधान पीठ को भेजना चाहिए या नहीं।”

याचिका में यह भी कहा गया कि हीना अपने तलाक को साबित नहीं कर पा रही हैं, जबकि उनके पति ने दूसरी शादी कर ली है। कारण यह बताया गया कि तलाक-ए-हसन का नोटिस जिस तरह दिया गया, उससे स्थिति साफ नहीं हो पाई। याचिकाकर्ता के अनुसार, यह तलाक दहेज की मांग को लेकर हुआ।

हीना के वकील ने बताया कि समस्या तब बढ़ी जब वह अपने बच्चे का स्कूल में दाखिला कराने गईं। उन्होंने कहा, “जहां भी मैंने खुद को तलाकशुदा बताया, मेरी फाइलें स्वीकार नहीं हुईं। प्रवेश भी रद्द कर दिया गया। मैं सिर्फ इतना कहती रही कि बच्चे के पिता आगे बढ़ चुके हैं और फिर शादी कर ली है। मुझे तकनीकी बातें नहीं समझ आतीं।”

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सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की अगली सुनवाई 26 नवंबर को करेगा। तलाक-ए-हसन में तलाक तीन महीनों में तीन बार “तलाक” कहने से प्रभावी हो जाता है, यदि इस दौरान पति-पत्नी साथ न रहें।

तलाक-ए-हसन क्या होता है?

मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, तलाक-ए-हसन शादी खत्म करने का एक तरीका है। इसमें कोई भी मुस्लिम पति तीन महीनों में तीन बार अलग-अलग समय पर तलाक कहकर अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है।

मान लीजिए किसी पति ने पत्नी को पहले महीने में तलाक कहा—यह तलाक तुरंत लागू नहीं होता। दूसरे महीने में वह फिर से तलाक कहता है—तब भी दोनों के पास रिश्ते को सुधारने का मौका रहता है। अगर तीसरे महीने तक भी हालात ठीक नहीं होते, तो पति तीसरी बार तलाक कहता है और इस तीसरी बार के बाद तलाक पूरी तरह मान्य हो जाता है।

इन तीन महीनों के दौरान अगर पति-पत्नी आपसी सहमति से फिर से एक साथ रहना चाहें, तो उनकी शादी खत्म नहीं मानी जाएगी और उन्हें दोबारा निकाह करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन अगर तीसरी बार तलाक हो गया, तो शादी पूरी तरह टूट जाती है।

यह तरीका कई सालों से आलोचना का विषय रहा है। कई याचिकाओं में कहा गया है कि यह प्रथा महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ है।

इस्लाम में तलाक के तीन तरीके माने जाते हैं: तलाक-ए-अहसान, तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-बिद्दत (तीन तलाक)

तलाक-ए-अहसान क्या होता है?

यह तलाक देने का तरीका सबसे कम पसंद किया जाता है। इसमें पति को एक ही बार तलाक कहना होता है, वह भी ऐसे समय जब पत्नी का मासिक धर्म न चल रहा हो। इस तरीका में भी तलाक एकतरफा होता है और पति के कहने से ही लागू माना जाता है।

तलाक-ए-बिद्दत (तीन तलाक) क्या है?

इसे आम भाषा में तीन तलाक कहते हैं। इसमें पति एक साथ तीन बार “तलाक” बोल देता है – चाहे सामने, फोन पर, या लिखकर। पहले यह तलाक तुरंत मान्य हो जाता था, लेकिन भारत में अब यह अपराध माना जाता है।

‘खुला’ क्या है?

इस्लाम में तलाक का एक और तरीका है जिसे खुला कहते हैं। इसमें तलाक पति नहीं, बल्कि पत्नी खुद लेती है। खुला लेने के लिए पत्नी को अक्सर पति को कुछ चीजें (जैसे मेहर या दी गई संपत्ति का हिस्सा) वापस करनी पड़ती हैं। सबसे जरूरी बात – खुला के लिए दोनों की सहमति जरूरी होती है।