उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (DGP) ने एक अहम सर्कुलर जारी किया है। इसमें राज्य के सभी जिला पुलिस प्रमुखों को साफ निर्देश दिए गए हैं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में सरकारी वकीलों को जमानत और दूसरे आपराधिक मामलों से जुड़े निर्देश अब इलेक्ट्रॉनिक तरीके से भेजे जाएं। यह फैसला हाईकोर्ट के 9 दिसंबर को दिए गए आदेश का सख्ती से पालन करते हुए लिया गया है।
यह निर्देश जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की बेंच ने दिया था। बेंच ने कहा था कि अभी जो मैनुअल सिस्टम चल रहा है, उसमें पुलिस थानों से जरूरी निर्देश हाईकोर्ट तक पहुंचने में बहुत देर हो जाती है, खासकर आपराधिक मामलों में।
कोर्ट को बताया गया कि मौजूदा व्यवस्था में जैसे ही जमानत का नोटिस मिलता है, उसे जिला पुलिस के ‘पैरोकार’ को सौंप दिया जाता है। पैरोकार रोज सरकारी वकील के दफ्तर जाता है। वहां से वह जिला पुलिस प्रमुख (SP) के दफ्तर पहुंचता है, जो नोटिस को संबंधित पुलिस स्टेशन भेजता है। इसके बाद विवेचना अधिकारी केस डायरी निकालता है या, अगर चार्जशीट दाखिल नहीं हुई होती, तो उसकी कॉपी तैयार करता है। फिर ये कागजात पैरोकार के जरिए दोबारा हाईकोर्ट भेजे जाते हैं।
जस्टिस देशवाल ने कहा कि जमानत का मामला सीधे किसी व्यक्ति की आजादी से जुड़ा होता है। ऐसे मामलों में इतनी लंबी और मैनुअल प्रक्रिया अपनाना पुलिस कर्मियों के समय और जनता के पैसे की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है।
ये टिप्पणियां कोर्ट ने रतवर सिंह की जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान कीं। रतवर सिंह हत्या के प्रयास के एक मामले में आरोपी है। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने राज्य के जूनियर तकनीकी अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों से देरी की वजहों और इंटरऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम (ICJS) को लागू करने को लेकर विस्तार से चर्चा की।
इसके बाद 18 दिसंबर को कोर्ट को बताया गया कि DGP ने 17 दिसंबर को एक सर्कुलर जारी किया है। इस सर्कुलर में निर्देश दिए गए हैं कि जमानत के मामलों के साथ-साथ अन्य आपराधिक मामलों में भी निर्देश अब पैरोकार के जरिए नहीं भेजे जाएंगे। इसके बजाय ये निर्देश जॉइंट डायरेक्टर (अभियोजन), हाईकोर्ट की आधिकारिक आईडी पर इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भेजे जाएंगे।
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कोर्ट ने शशि कांत शर्मा, DDG, NIC, दिल्ली की खुलकर तारीफ की। बेंच ने कहा कि उन्होंने न सिर्फ इस मामले में, बल्कि कई अन्य मामलों में भी ‘ई-समन’ प्रोजेक्ट और ‘BOMS (बेल ऑर्डर मैनेजमेंट सिस्टम)’ को उत्तर प्रदेश की जिला अदालतों में लागू करने में अहम भूमिका निभाई है। साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC), इलाहाबाद हाईकोर्ट यूनिट के साथ मिलकर ICJS को लागू करने में भी बहुमूल्य योगदान दिया है।
इसी तरह बेंच ने मार्कंडेय श्रीवास्तव, जॉइंट डायरेक्टर (IT), NIC, इलाहाबाद हाईकोर्ट की भी सराहना की। कोर्ट ने कहा कि NSTEP प्रोजेक्ट और BOMS को उत्तर प्रदेश में प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए उन्होंने हाईकोर्ट के CPC और टेक्निकल ADJ के साथ लगातार सहयोग और योगदान दिया है।
मामले के तथ्यों पर गौर करते हुए कोर्ट ने FIR और घायल व्यक्तियों के बयानों को देखा। कोर्ट ने पाया कि आवेदक और उसके सह-आरोपी पर शिकायतकर्ता को पीटने का एक सामान्य आरोप लगाया गया है। हालांकि, मेडिकल रिपोर्ट से साफ हुआ कि घायल लोगों को जो चोटें आई थीं, वे सभी मामूली प्रकृति की थीं। राज्य सरकार ने जमानत का विरोध किया, लेकिन चोटों की प्रकृति को लेकर कोई ठोस आपत्ति नहीं उठा सकी।
इन सभी बातों को देखते हुए, और यह ध्यान में रखते हुए कि आवेदक 12 अक्टूबर, 2025 से जेल में बंद था, साथ ही जेलों में भीड़भाड़ और ट्रायल कोर्ट में आपराधिक मामलों की भारी पेंडेंसी को देखते हुए बेंच ने माना कि आवेदक को जमानत दी जानी चाहिए।
