उत्तर प्रदेश में बहराइच की एक कोर्ट ने दुर्गा पूजा की मूर्ति को लेकर भड़की सांप्रदायिक हिंसा के दौरान 22 वर्षीय युवक की हत्या के मुख्य आरोपी सरफराज उर्फ रिंकू को मौत की सजा सुनाई और नौ अन्य को आजीवन कारावास की सजा दी। अदालत ने इस मामले में मनुस्मृति का हवाला देते हुए कहा कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कड़ी सजा देना जरूरी है।
गुरुवार को सुनाए गए अपने फैसले में सत्र न्यायाधीश पवन कुमार शर्मा ने इस हत्या को “अत्यंत बर्बरता” का कृत्य बताया, जिसने सामाजिक व्यवस्था को झकझोर दिया और “मानवता के ताने-बाने को तार-तार कर दिया”। फैसले में कहा गया कि आरोपी ने न केवल एक निहत्थे युवक के शरीर को गोलियों से छलनी करके उसकी हत्या की, बल्कि उसे “शैतानी यातना” भी दी।
न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि पीड़ित के पैर इस प्रकार जल गए थे कि उसके पैर के नाखून भी उखड़ गए थे। आदेश में कहा गया है कि इस कृत्य ने समाज में गहरा असंतोष और अस्थिरता पैदा कर दी।
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मनुस्मृति के एक श्लोक का हवाला देते हुए, अदालत ने कहा कि सच्चे न्याय के हित में, सजा ऐसी होनी चाहिए जो समाज में ऐसे “जानवरों” के मन में भय पैदा करे और न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास बहाल करे। कोर्ट ने कहा कि केवल सजा का भय ही किसी व्यक्ति को उसके नैतिक और नागरिक कर्तव्यों से विचलित होने से रोकता है। सजा ही जनता की रक्षा करता है और सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखता है, प्राचीन विधि संहिता का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया गया।
अभियोजन पक्ष से सहमत होते हुए कि आरोपियों ने बर्बरता की सभी सीमाएं पार कर दी थीं। अदालत ने कहा कि उनके कृत्यों के कारण मानवता पीड़ा से कराह उठी। सामाजिक व्यवस्था ध्वस्त हो गई और विघटन के कगार पर पहुंच गई। समाज के एक पूरे वर्ग का विश्वास और भरोसा नष्ट हो गया। अदालत ने फैसला सुनाया कि आरोपी को दिखाई गई क्रूरता के लिए अधिकतम सजा मिलनी चाहिए। अदालत ने कहा कि गंभीर परिस्थितियां मामूली कारकों पर भारी पड़ती हैं।
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