सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक रिट याचिका पर नाराजगी जताई। इस याचिका में कोर्ट के पुराने फैसले को चुनौती देने की मांग की गई थी। जिसमें अल्पसंख्यक स्कूलों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई अधिनियम) के प्रावधानों से छूट दी गई थी। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने इसे देश की न्यायपालिका को ध्वस्त करने का प्रयास माना।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस नागरत्ना ने कहा, “आप सुप्रीम कोर्ट के साथ ऐसा नहीं कर सकते। हम बेहद आक्रोशित हैं। अगर आप इस तरह के मामले दर्ज करना शुरू करते हैं, तो यह देश की पूरी न्यायपालिका प्रणाली के खिलाफ होगा। आपको अपने मामले की गंभीरता का अंदाजा नहीं है। हम केवल 1 लाख रुपये का जुर्माना लगा रहे हैं। इस तरह के मामले दर्ज करके देश की न्यायपालिका को बदनाम न करें।”
न्यायालय ने यह भी सवाल उठाया कि वकील शीर्ष अदालत के अपने ही फैसलों के खिलाफ इस तरह की याचिकाएं दायर करने की सलाह कैसे दे रहे थे।
शीर्ष अदालत ने कहा, “यहां क्या हो रहा है? क्या वकील इस तरह की सलाह दे रहे हैं? हमें वकीलों पर जुर्माना लगाना होगा। आप कानून के जानकार नागरिक हैं, पेशेवर हैं, और आप अनुच्छेद 32 के तहत इस न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर करते हैं? घोर दुरुपयोग! हम संयम बरत रहे हैं। हम अवमानना जारी नहीं कर रहे हैं।”
इसके बाद न्यायालय ने याचिकाकर्ता यूनाइटेड वॉइस फॉर एजुकेशन फोरम पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाने का आदेश दिया। इसमें कहा गया कि इसे दूसरों के लिए एक संदेश समझो। तुम इस देश की न्यायपालिका को ध्वस्त करना चाहते हो।
रिट याचिका में यह घोषणा करने का अनुरोध किया गया था कि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को दी गई छूट, जैसा कि प्रामती एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में बरकरार रखा गया था, उस हद तक असंवैधानिक है जहां तक यह उन्हें आरटीई दायित्वों से पूर्ण रूप से प्रतिरक्षा प्रदान करती है।
याचिका में यह भी अनुरोध किया गया कि सभी अल्पसंख्यक संस्थानों, चाहे वे सहायता प्राप्त हों या गैर-सहायता प्राप्त, उनको गुणवत्ता, समावेशिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए आरटीई अधिनियम की धारा 12(1)(सी) का अनुपालन करने का निर्देश दिया जाए। यह प्रावधान कमजोर वर्गों और वंचित समूहों के बच्चों के लिए प्रवेश स्तर पर 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करता है।
इसमें एक विशेषज्ञ समिति के गठन की भी मांग की गई थी, जो अनुच्छेद 30 (अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार प्रदान करने वाला अधिकार) और अनुच्छेद 21ए (शिक्षा का अधिकार) के बीच सामंजस्य स्थापित करने वाले एक संतुलित ढांचे की सिफारिश करे।
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गौरतलब है कि गैर सरकारी संगठन ने न्यायालय में याचिका तब दायर की थी जब जस्टिस दीपांकर दत्ता और मनमोहन की पीठ ने प्रामती एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में संविधान पीठ के फैसले पर सवाल उठाया था। संविधान पीठ के फैसले पर संदेह व्यक्त करते हुए न्यायालय ने मामले को एक बड़ी पीठ के समक्ष निर्णय के लिए भेजा था।
कोर्ट ने कहा था, “आरटीई अधिनियम से अल्पसंख्यक संस्थानों को छूट देने से साझा स्कूली शिक्षा की परिकल्पना खंडित हो जाती है और अनुच्छेद 21ए द्वारा परिकल्पित समावेशिता और सार्वभौमिकता का विचार कमजोर हो जाता है। हमें डर है कि जाति, वर्ग, धर्म और समुदाय के आधार पर बच्चों को एकजुट करने के बजाय, यह विभाजन को मजबूत करता है और साझा शिक्षण स्थलों की परिवर्तनकारी क्षमता को कमज़ोर करता है।”
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