Kerala Temple Takeover Row: सुप्रीम कोर्ट ने कासरगोड (Kasargod) के त्रिचंबरम (Trichambaram) स्थित मुलंगेश्वरम शिव मंदिर (Mulangeswaram Shiva Temple) के लिए कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। शीर्ष अदालत का यह आदेश उन आरोपों के बीच जब केरल सरकार द्वारा नियंत्रित मालाबार देवस्वोम बोर्ड मंदिर का प्रबंधन (Malabar Devaswom Board) अपने हाथ में लेने की कोशिश की जा रही है।

शीर्ष अदालत तालीपरम्बा क्षेत्र संरक्षण समिति (Taliparamba Kshetra Samrakshana Samithi) की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने 16 अक्टूबर को बोर्ड को नोटिस जारी किया और निर्देश दिया कि अगले आदेश तक, कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति के संबंध में यथास्थिति बनाए रखी जाए। इसका मतलब है कि मंदिर का प्रशासन फिलहाल समिति के हाथों में ही रहेगा। बता दें, तलीपरम्बा क्षेत्र संरक्षण समिति चार दशकों से ज्यादा समय से मंदिर का प्रबंधन करने का दावा करती है।

अधिवक्ता सरथ एस. जनार्दनन के माध्यम से दायर की गई इस अपील में केरल हाई कोर्ट के 18 जून के उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें बोर्ड के कदम के खिलाफ समिति की याचिका खारिज कर दी गई थी। समिति ने तर्क दिया कि वह 1979 से मंदिर का प्रशासन संभाल रही है, जब मंदिर के पारंपरिक संरक्षक, चिरक्कल राजपरिवार ( Chirakkal Royal Family) ने उसे यह कार्यभार सौंपा था।

समिति ने अपनी याचिका में कहा, “इसके बाद, मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया और इसका प्रशासन याचिकाकर्ता द्वारा किया गया… जब से याचिकाकर्ता ने मंदिर का प्रबंधन शुरू किया है, तब से वह बिना किसी शिकायत के मंदिर का उचित और प्रभावी प्रबंधन कर रहा है। याचिकाकर्ता के प्रबंधन में, यह मंदिर केरल के कन्नूर जिले में स्थित त्रिचंबरम मंदिर के निकट सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक बन गया है।”

यह विवाद 2010 का है, जब मालाबार देवस्वोम बोर्ड (Malabar Devaswom Board) ने मंदिर का प्रशासन चिरक्कल कोविलकम मंदिरों (Chirakkal Kovilakam Temples) की देखरेख करने वाले एक कार्यकारी अधिकारी को सौंपने का फैसला किया था। समिति और स्थानीय निवासियों के विरोध के बाद यह कदम रोक दिया गया था।

2018 में बोर्ड ने पिछली नियुक्ति को रद्द करते हुए अपने नामित व्यक्ति एम गिरिधरन को कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया था। समिति ने आरोप लगाया कि यह “सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के सदस्यों द्वारा…मंदिर का प्रबंधन उससे छीनने” का एक प्रयास था।

याचिका के अनुसार, नए अधिकारी बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों की सहायता से मंदिर का प्रशासन अपने हाथ में लेने आए थे, लेकिन समिति के सदस्यों और स्थानीय लोगों ने उन्हें रोक दिया। याचिका में कहा गया है कि कार्यकारी अधिकारी ने बताया कि हाई कोर्ट के निर्देश के आधार पर मंदिर को अपने नियंत्रण में लेने की कार्यवाही शुरू कर दी गई है। हालांकि, जब उनसे हाई कोर्ट का आदेश दिखाने को कहा गया, तो कार्यपालक अधिकारी उसे दिखाने में विफल रहे और पुलिसकर्मियों को भी गड़बड़ी का एहसास हुआ… और वे मौके से चले गए।

समिति ने एक अन्य उदाहरण देते हुए आरोप लगाया कि लगभग एक किलोमीटर दूर स्थित विष्णु मंदिर, जिसका प्रबंधन पहले एक सार्वजनिक समिति द्वारा किया जाता था। उसको बोर्ड ने अपने नियंत्रण में ले लिया है और अब यह मंदिर “जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है” तथा “वहां कोई दैनिक पूजा नहीं होती है।”

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अपील में तर्क दिया गया कि जबकि केरल हाई कोर्ट की खंडपीठ ने स्वयं यह टिप्पणी की थी कि चिरक्कल कोविलकम देवस्वोम (Chirakkal Kovilakam Devaswom) ने “यह स्वीकार किया था कि मंदिर के प्रशासन पर नियंत्रण किसी समय खो गया था”, फिर भी उसने यह माना कि “समिति उक्त मंदिर की संपत्तियों पर किसी भी अधिकार या हित का दावा नहीं कर सकती, जिसमें प्रशासन का अधिकार भी शामिल है।”

याचिका में आगे तर्क दिया गया कि मुलंगेश्वरम शिव मंदिर ( Mulangeswaram Shiva Temple) निश्चित रूप से मद्रास हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 1951 (Madras Hindu Religious and Charitable Endowments Act) की धारा 38 के तहत सूचीबद्ध मंदिर नहीं है, इसलिए “प्रतिवादियों को इसका प्रबंधन या प्रशासन अपने हाथ में लेने का कोई अधिकार नहीं है।

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