सुप्रीम कोर्ट के 16 मई के अपने उस फैसले को वापस लेने से ओडिशा में AIIMS सहित देशभर में कई महत्वपूर्ण सार्वजनिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर से ध्वस्तीकरण का खतरा टल गया है, जिसके तहत केंद्र को परियोजनाओं को पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी देने से रोक दिया गया था।
CJI बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन द्वारा बहुमत (2:1) से लिए गए फैसले में कहा गया है कि अगर 16 मई के आदेश को वापस नहीं लिया गया, तो इसके परिणामस्वरूप लगभग 20,000 करोड़ रुपये के सार्वजनिक धन से निर्मित विभिन्न इमारतों, परियोजनाओं को ध्वस्त कर दिया जाएगा।
फैसले में कहा गया है कि राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं पर संभावित “विनाशकारी प्रभाव” का हवाला दिया गया है, जिसमें ओडिशा में AIIMS का 962 बिस्तरों वाला अस्पताल और एक ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा शामिल है। सुनवाई के दौरान केंद्र ने उन परियोजनाओं की सूची सौंपी, जो रुकी हुई हैं और जिनका अस्तित्व खतरे में है।
CJI ने तीन विशिष्ट उदाहरणों का जिक्र किया
CJI ने ध्वस्तीकरण आदेश से उत्पन्न होने वाले गंभीर जनहित संकट को दर्शाने के लिए फैसले में तीन विशिष्ट उदाहरणों का जिक्र किया। उन्होंने कहा, “प्रस्तुत सूची पर गौर करने से पता चलता है कि जो परियोजनाएं फैसले से प्रतिकूल रूप से प्रभावित होंगी, उनमें से कुछ (परियोजनाएं) अस्पतालों/मेडिकल कॉलेज/हवाई अड्डों के निर्माण से, जबकि कुछ सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्रों (सीईटीपी) से संबंधित हैं।”
CJI गवई ने कहा कि अगर 16 मई के फैसले को वापस नहीं लिया गया, तो इसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक धन से निर्मित लगभग 20,000 करोड़ रुपये की विभिन्न इमारतों और परियोजनाओं को ध्वस्त कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि क्षेत्र के हजारों नागरिकों की सेवा के लिए निर्मित लगभग 962 बिस्तरों वाली एक चिकित्सा सुविधा पर ध्वस्तीकरण का खतरा मंडरा रहा है, क्योंकि इसका निर्माण पूर्व पर्यावरणीय स्वीकृति के बिना ही किया गया था।
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उन्होंने कहा, “पहला मामला ओडिशा राज्य में निर्मित एम्स मेडिकल कॉलेज और अस्पताल से संबंधित है। वहां निर्मित मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की इमारतों की क्षमता लगभग 962 बिस्तरों की है, जिन्हें फैसले के कारण ध्वस्त करना होगा।”
उन्होंने कहा कि कर्नाटक के विजयनगर में नवनिर्मित ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा भी पर्यावरणीय मंजूरी के बिना बनाया गया था और 16 मई के फैसले के अनुसार वह भी ध्वस्तीकरण के खतरे का सामना कर रहा है। फैसले में सीईटीपी परियोजनाओं का भी जिक्र किया गया है, जो नदियों और अन्य जलस्रोतों में प्रदूषण को रोकने के लिए औद्योगिक कचरे और अपजल के उपचार के लिए आवश्यक हैं।
प्रधान न्यायाधीश ने सवाल किया, “क्या बड़े पैमाने पर सार्वजनिक धन से निर्मित ऐसे अपशिष्ट उपचार संयंत्रों को ध्वस्त करना पर्यावरण संरक्षण के लिए अनुकूल होगा या इसके खिलाफ होगा?”
फैसले को वापस लिए जाने से इन परियोजनाओं को अब 2017 की अधिसूचना और 2021 के कार्यालय ज्ञापन के तहत नियमित होने का मौका मिला है, जब तक कि सर्वोच्च न्यायालय की ओर से उनकी वैधता पर अंतिम निर्णय नहीं आ जाता।
‘निजी व्यक्तियों / संस्थाओं पर कई गुना प्रभाव हो सकता है’
CJI गवई ने कहा, “मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं केवल केंद्र सरकार, राज्य सरकार, सार्वजनिक उपक्रमों आदि की ओर से संचालित परियोजनाओं पर (16 मई के) फैसले के प्रभाव पर विचार कर रहा हूं। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि निजी व्यक्तियों / संस्थाओं द्वारा शुरू की जा रही परियोजनाओं पर प्रभाव कई गुना हो सकता है।”
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