Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अभय एस ओका ने हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत करते हुए कई मुद्दों पर बात की। जिसमें उन्होंने न्यायिक नियुक्तियों, दीवानी अदालतों में लैंगिंक विविधता और वकीलों के लिए प्रारंभिक वेतन पर विचार व्यक्त किया। साथ ही इस बात पर जोर दिया कि वर्तमान जजों को मीडिया से बात क्यों नहीं करनी चाहिए?
जजों के मीडिया को इंटरव्यू देने पर जस्टिस अभय एस ओका ने कहा कि जो जज अभी पद पर हों, उन्हें मीडिया से बात नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्होंने खुद तीन महीने तक मीडिया से कोई बातचीत नहीं की। उनके अनुसार, न्यायाधीशों को आम तौर पर सिर्फ़ विधि विद्यालयों, विधि महाविद्यालयों, विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यक्रमों और अदालत से जुड़े कामों तक ही अपनी सार्वजनिक उपस्थिति सीमित रखनी चाहिए।
हालांकि, कुछ खास मौकों पर अपवाद हो सकते हैं। जैसे किसी नए जिला न्यायालय भवन का उद्घाटन। ऐसे कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री या मंत्री बुलाए जाते हैं, क्योंकि भवन के लिए पैसा राज्य सरकार देती है। ऐसे मामलों में न्यायाधीशों का राजनेताओं के साथ मंच साझा करना ठीक है।
अगर कोई निजी वजह हो, जैसे जिस स्कूल में उन्होंने पढ़ाई की हो उसकी स्वर्ण जयंती हो, तो वहां जाना ठीक माना जाता है। लेकिन ऐसे खास मामलों को छोड़कर, न्यायाधीशों को आम सार्वजनिक कार्यक्रमों में जाने से बचना चाहिए।
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पर्यावरण संरक्षण के आदेश पारित करने के लिए न्यायाधीशों पर हो रही टिप्पणियों को लेकर जस्टिस ओका ने कहा कि पर्यावरण कार्यकर्ताओं को समाज से समर्थन और प्रशंसा मिलनी चाहिए, जो उन्हें आमतौर पर नहीं मिलती। उन्होंने कहा कि इसके बजाय, हर कोई उन पर हमला करता है, उन्हें धर्मविरोधी या राष्ट्रविरोधी कहता है। न्यायाधीशों की बात करें तो, अब हमें सोशल मीडिया से हमलों का सामना करना पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश ने 2017 की एक घटना को याद किया जब वह ध्वनि प्रदूषण और धार्मिक त्योहारों के लिए सड़कों पर पंडालों के निर्माण के मुद्दे से निपट रहे थे। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र सरकार ने मुख्य न्यायाधीश के समक्ष एक आवेदन दायर कर आरोप लगाया कि मैंने राज्य के प्रति पूर्वाग्रह रखा है। मुद्दा यह था कि ध्वनि प्रदूषण नियमों में संशोधन के बाद हमने राज्य के इस रुख को मानने से इनकार कर दिया था कि महाराष्ट्र में कोई ‘साइलेंस ज़ोन’ मौजूद नहीं है। यह एक ऐसा उदाहरण है जिसे मैं हमेशा दे सकता हूं जहां सरकार ने मुझ पर पूर्वाग्रह रखने का आरोप लगाया। बेशक, बार एसोसिएशन ने सरकार और बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर कड़ा प्रहार किया और बाकी सब इतिहास है।
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