सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केरल हाई कोर्ट के उस फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी, जिसमें हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि कोच्चि के मुनंबम में जिस जमीन को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ था, वह वक्फ भूमि नहीं है।
न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान की बेंच ने यह देखकर हैरानी जताई कि क्या केरल हाई कोर्ट इस तरह का फैसला देने का अधिकार रखता था, क्योंकि ऐसा मामला तो वक्फ ट्रिब्यूनल में जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल आदेश दिया है कि जमीन की मौजूदा स्थिति को वैसे ही बनाए रखा जाए।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, “इस मामले पर विचार करना जरूरी है। 27 जनवरी से शुरू होने वाले सप्ताह में जवाब देने योग्य नोटिस जारी करें। इस बीच, विवादित फैसले में यह घोषणा कि विचाराधीन संपत्ति वक्फ का विषय नहीं है, स्थगित रहेगी और इस संबंध में यथास्थिति बनाए रखी जाएगी।”
पीठ ने स्पष्ट किया कि वह हाई कोर्ट की उस टिप्पणी पर रोक नहीं लगा रही है जिसमें केरल सरकार द्वारा 404.76 एकड़ संपत्ति की स्थिति और विस्तार की जांच के लिए एक सदस्यीय जांच आयोग नियुक्त करने के निर्णय को बरकरार रखा गया था। जब अदालत को बताया गया कि मामला ट्रिब्यूनल के समक्ष लंबित है, तो जस्टिस मिश्रा ने मौखिक रूप से टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “यहां सवाल यह है कि अगर अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं थी, तो वह वहीं रुक सकते थे… लेकिन उन्होंने अपने अधिकार क्षेत्र से बहुत आगे बढ़कर काम किया है।”
जस्टिस भुयान ने यह भी पूछा, “क्या रिट अदालत इन सब मामलों में दखल दे सकती है?… वे इन सब में पड़ने के बजाय एकल न्यायाधीश के आदेश को रद्द कर सकते थे। किसी ने भी इसके लिए नहीं कहा है… उन्होंने अपनी सीमा से बहुत आगे बढ़कर काम किया है। राज्य सरकार को इन सब को चुनौती देनी चाहिए थी।”
अपीलकर्ता, केरल वक्फ संरक्षण वेधी (Kerala Waqf Samrakshana Vedhi) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुज़ेफ़ा अहमदी ने कहा कि वेधी की मूल याचिका में केवल राज्य के जांच आयोग के गठन को चुनौती दी गई थी, लेकिन हाई कोर्ट इससे भी आगे बढ़ गया।
अहमदी ने कहा, “मैं कमिश्नर ऑफ़ इन्क्वायरी की इस जांच को चैलेंज करने के लिए रिट कोर्ट गया, यह कहने के लिए कि वक्फ एक्ट की धारा 85, 83 और 7 के तहत बने बार के आधार पर यह तय करने का अधिकार सिर्फ़ वक्फ ट्रिब्यूनल के पास है। डिवीज़न बेंच क्या करती है, वह मेरे वक्फ डीड को देखती है और बताती है कि यह वक्फ नहीं बल्कि एक गिफ्ट है।”
केरल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता का मुनंबम जमीन से जुड़े मामले में कोई सीधा संबंध नहीं है और वह सिर्फ तीसरा पक्ष है। गुप्ता ने कहा, “मेरे सम्मानित साथी वकील यह बात समझ नहीं रहे कि यह एक जनहित याचिका है। वक्फ का प्रबंधन देखने वाला मुतवल्ली खुद आगे आकर नहीं कह रहा कि यह वक्फ की जमीन है। याचिकाकर्ता खुद को पीड़ित बताकर मामला उठा रहा है।”
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हालांकि, अहमदी ने कहा कि वक्फों की रक्षा करने में वेधी का प्रतिनिधि हित है। उस इलाके के निवासियों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता वी. चितंबरेश ने बताया कि आयोग पहले ही अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप चुका है। वरिष्ठ वकील ने कहा कि 2019 में उनकी संपत्तियों को वक्फ घोषित किए जाने से पहले उस इलाके में रहने वाले गरीब मछुआरों की बात नहीं सुनी गई थी।
केरल हाई कोर्ट के एक सिंगल जज ने शुरू में यह कहते हुए जांच को रद्द कर दिया कि यह वक्फ न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र में आता है। हालांकि, राज्य सरकार द्वारा दायर रिट अपील पर, एक खंडपीठ ने एकल पीठ के आदेश को यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि संपत्ति को वक्फ भूमि के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है।
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