Allahabad High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने जगद्गुरु रामभद्राचार्य पर फेसबुक पर की गई अपमानजनक टिप्पणी का संज्ञान लिया है। कोर्ट ने जगद्गुरु रामभद्राचार्य के खिलाफ सोशल मीडिया पर की गई अपमानजनक सामग्री को 48 घंटे के भीतर हटाने का निर्देश दिया है। बशर्ते ऐसी सामग्री का URL लिंक उसे उपलब्ध करा दिया जाए।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस शेखर बी. सराफ और जस्टिस प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने स्वामी रामभद्राचार्य जी के अनुयायियों और शिष्यों द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया। जिसमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उनके खिलाफ प्रसारित ‘अपमानजनक (Derogatory)’ और ‘अभद्र’ सामग्री (Abusive Content) को तत्काल हटाने की मांग की गई थी।

याचिकाकर्ताओं ने पिछले महीने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। आरोप लगाया था कि मानहानिकारक सामग्री के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए औपचारिक आवेदन देने के बावजूद केंद्र और राज्य दोनों प्राधिकारियों की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई।

अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री द्वारा प्रस्तुत आठ याचिकाकर्ताओं ने बीएनएसएस की धारा 98, बीएनएस 2023 की विभिन्न धाराओं, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 सहित अन्य प्रावधानों का हवाला देते हुए रिट याचिका दायर की।

उन्होंने आरोप लगाया कि गोरखपुर के एकयूट्यूबर शशांक शेखर विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर स्वामी रामभद्राचार्य के खिलाफ अपमानजनक वीडियो चला रहे हैं। स्वामी रामभद्राचार्य चित्रकूट के जगतगुरू स्वामी रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय के कुलपति हैं। उनकी आंखों की रोशनी बचपन में ही चली गई थी। वीडियो में उनकी इसी दिव्यांगता को लेकर अपमानजनक टिप्पणियां की गई हैं।

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याचिका में यह भी कहा गया कि 2008 में प्रखर विचार/प्रखर आस्था पत्रिका के माध्यम से भी इसी तरह के अपमानजनक प्रकाशन किए गए, जिसके विरुद्ध स्वामी जी ने सफलतापूर्वक कानूनी और प्रशासनिक कार्रवाई की। यह मामला पहली बार 17 सितंबर, 2025 को सामने आया था।

जानिए कौन हैं रामभद्राचार्य ?

रामभद्राचार्य चित्रकूट में रहते हैं। उनका वास्तविक नाम गिरधर मिश्रा है। वे प्रवचनकार, दार्शनिक और हिंदू धर्मगुरु हैं। वे रामानंद संप्रदाय के मौजूदा चार जगद्गुरुओं में से एक हैं और इस पद पर 1988 से आसीन हैं। महाराज चित्रकूट में जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक और आजीवन कुलाधिपति भी हैं।

चित्रकूट में तुलसी पीठ की स्थापना का श्रेय भी इन्हें ही जाता है। इन्होंने दो संस्कृत और दो हिंदी में मिलाकर कुल चार महाकाव्यों की रचना की है। इन्हें भारत में तुलसीदास पर सबसे बेहतरीन विशेषज्ञों में गिना जाता है। साल 2015 में भारत सरकार ने इन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया था।

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