सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पासपोर्ट प्राधिकरण को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोपी व्यक्ति का पासपोर्ट दोबारा जारी करना होगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि सिर्फ इसलिए कि उसके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं, उसका पासपोर्ट नवीनीकरण से इनकार नहीं किया जा सकता।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि कानून के दायरे में रहते हुए किसी भी नागरिक को घूमने-फिरने, यात्रा करने, आजीविका कमाने और नए अवसर पाने की आज़ादी संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का अहम हिस्सा है।
अदालत ने आगे कहा कि राज्य न्याय, सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था के हित में इस आज़ादी पर कुछ नियम या सीमाएं लगा सकता है। लेकिन ये सीमाएं केवल उतनी ही हों जितनी जरूरी हों, जिस उद्देश्य के लिए लगाई जा रही हैं उसके अनुपात में हों और उनका आधार साफतौर पर कानून में निहित होना चाहिए।
अदालत ने कहा कि जब सुरक्षा के लिए बनाए गए नियम बहुत सख़्त बाधा बन जाते हैं, या अस्थायी रोक को बिना समय-सीमा के जारी रखा जाता है, तो इससे राज्य की शक्ति और व्यक्ति की गरिमा के बीच संतुलन बिगड़ जाता है और संविधान द्वारा दिया गया भरोसा कमजोर पड़ जाता है।
क्या है पूरा मामला?
उस व्यक्ति पर आपराधिक साज़िश रचने, आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन जुटाने, अवैध संगठनों से जुड़े होने और सबूत मिटाने जैसे आरोप लगाए गए थे। इन आरोपों के तहत पुलिस ने उसके खिलाफ मामला दर्ज कर आरोप पत्र भी दाखिल किया था।
झारखंड हाई कोर्ट ने अंतरिम आदेश में कहा था कि आरोपी अदालत की पहले से अनुमति लिए बिना भारत से बाहर नहीं जाएगा और अपना पासपोर्ट निचली अदालत में जमा करेगा। इस आदेश के पालन में आरोपी ने अपना पासपोर्ट एनआईए की अदालत में जमा कर दिया।
इसके अलावा उस व्यक्ति पर सीबीआई के कोयला ब्लॉक मामले में दिल्ली की अदालत में मुकदमा चला। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत विशेष न्यायाधीश ने उसे दोषी ठहराया और अधिकतम चार साल की जेल की सजा सुनाई।
अभियुक्त ने इस आदेश को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने उसकी सजा पर रोक लगा दी और कहा कि वह अदालत की अनुमति के बिना देश से बाहर नहीं जाएगा। इसके बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने “कोई आपत्ति नहीं” जताते हुए आरोपी के पासपोर्ट को दस साल के लिए नवीनीकृत करने की अनुमति दे दी।
इसी बीच, उनके पासपोर्ट की वैधता समाप्त हो गई, इसलिए उन्होंने कोलकाता के पासपोर्ट प्राधिकरण (आरपीओ) में पासपोर्ट फिर से जारी करने के लिए आवेदन किया। पासपोर्ट प्राधिकरण ने लंबित आपराधिक मामलों का हवाला देते हुए नवीनीकरण से इनकार कर दिया। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने भी पासपोर्ट नवीनीकरण से इनकार करने के आदेश को बरकरार रखा।
न्यायालय ने कहा कि धारा 6(2)(एफ) और धारा 10(3)(ई) के पीछे का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आपराधिक कार्यवाही का सामना करने वाला व्यक्ति आपराधिक न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के अधीन रहे।
कोर्ट ने कहा कि रांची के एनआईए अदालत और दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा तय शर्तें पूरी तरह से पर्याप्त हैं। इन शर्तों के तहत, आरोपी को किसी भी विदेश यात्रा से पहले अदालत से अनुमति लेनी होगी और एनआईए मामले में पासपोर्ट नवीनीकरण के बाद उसे फिर से जमा करना होगा। इन सुरक्षा उपायों के बावजूद पासपोर्ट को अनिश्चित समय के लिए न देने का फैसला, जबकि दोनों अदालतों ने जानबूझकर नवीनीकरण की अनुमति दी थी, आरोपी की स्वतंत्रता पर अनुचित और असंगत रोक होगी।
अदालत ने आगे कहा कि सिर्फ यह सोचकर कि आरोपी पासपोर्ट का गलत इस्तेमाल कर सकता है, नवीनीकरण से इनकार करना गलत है। इससे यह सवाल उठता है कि आपराधिक अदालतें जोखिम का सही आकलन कर रही हैं या नहीं, और पासपोर्ट प्राधिकरण अपने लिए एक निगरानी भूमिका मान ले रहा है, जो उचित नहीं है।
न्यायालय ने कहा कि कलकत्ता उच्च न्यायालय ने अपील पर फैसला करते समय धारा 6(2)(एफ) को इस तरह देखा जैसे किसी भी आपराधिक मामले के लंबित होने तक पासपोर्ट पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाना ही जरूरी हो। उन्होंने यह ठीक से नहीं समझा कि अभियुक्त के मामलों की देखरेख करने वाली अदालतों ने जानबूझकर विदेश यात्रा पर कड़ी निगरानी रखते हुए पासपोर्ट नवीनीकरण की अनुमति दी थी।
अतः न्यायालय ने पासपोर्ट नवीनीकरण से इनकार करने का आदेश रद्द कर दिया और कहा कि सामान्य नियमों का पालन करते हुए आरोपी को पासपोर्ट जारी किया जाएगा। अदालत ने आदेश दिया कि पासपोर्ट नवीनीकरण की तारीख से दस साल की सामान्य अवधि के लिए, चार हफ्तों के भीतर साधारण पासपोर्ट दोबारा जारी किया जाए।
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