Allahabad High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में यूपी की योगी सरकार को 90 दिनों भीतर राज्य में सार्वजनिक भूमि या सार्वजनिक उपयोगिता के लिए आरक्षित भूमि से कब्जा हटाने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में ग्राम प्रधान, लेखपाल और राजस्व के अधिकारी लापरवाही न बरतें।
इसके अलावा इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कानून के अनुसार कार्य करने में विफल रहने वाले अधिकारियों के खिलाफ विभागीय और आपराधिक कार्यवाही का भी आदेश दिया। साथ ही कहा कि ग्राम सभा की भूमि से अतिक्रमण की सूचना देने या उसे हटाने में प्रधानों, लेखपालों और राजस्व अधिकारियों की निष्क्रियता आपराधिक विश्वासघात के समान होगी।
जस्टिस प्रवीण कुमार गिरि ने मनोज कुमार सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका पर यह आदेश पारित किया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि मिर्जापुर के चुनार के चौका गांव में एक तालाब पर ग्रामीणों ने अतिक्रमण कर लिया है। शिकायत के बावजूद स्थानीय प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की।
कोर्ट ने 6 अक्टूबर के अपने आदेश में कहा कि जलाशयों पर किसी भी प्रकार का अतिक्रमण स्वीकार्य नहीं है तथा इसे “भारी जुर्माना, लागत और सजा के साथ यथाशीघ्र हटाया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि “जल ही जीवन है” अर्थात जल के बिना पृथ्वी पर किसी भी प्राणी के जीवन का अस्तित्व नहीं है, इसलिए इसे किसी भी कीमत पर बचाया जाना चाहिए।
आदेश में कहा गया है कि चूंकि गांव की भूमि प्रबंधन समिति सार्वजनिक भूमि के संरक्षण के लिए जिम्मेदार होती है, इसलिए प्रधान और लेखपाल सहित इसके सदस्यों की निष्क्रियता भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 316 के तहत आपराधिक विश्वासघात के साथ-साथ उकसाने और षड्यंत्र के आरोपों के अंतर्गत आएगी।
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जस्टिस गिरि ने निर्देश दिया कि ऐसी विफलताओं के लिए बीएनएस के तहत आपराधिक कार्यवाही शुरू की जाए। फैसले में स्पष्ट किया गया कि ग्राम सभा की भूमि ‘सौंपी गई संपत्ति’ है, और अतिक्रमण की सूचना न देकर या गलत कब्जे की अनुमति देकर इसकी सुरक्षा में कोई भी विफलता, सार्वजनिक विश्वास का बेईमानी से दुरुपयोग है।
पीठ ने पुलिस को अतिक्रमण हटाने में पूर्ण सहयोग प्रदान करने का भी निर्देश दिया तथा यह सुनिश्चित किया कि यह प्रक्रिया शांतिपूर्ण ढंग से और बिना किसी बाधा के पूरी हो। इसने यह भी कहा कि सूचना देने वाले को हर स्तर पर सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए। यदि अतिक्रमण जारी रहता है या आदेश का पालन नहीं किया जाता है, तो दोषी अधिकारियों के खिलाफ हाई कोर्ट में दीवानी अवमानना की कार्यवाही शुरू की जा सकती है।
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