Supreme Court Justice Surya Kant: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने इस बात पर दुख जताया कि कई प्रतिभाशाली युवा वकील निशुल्क और कानूनी सहायता कार्य करने से कतराते हैं। इसके बजाय वो कॉर्पोरेट नौकरियों को प्राथमिकता देते हैं।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस सूर्यकांत ने वकीलों से आग्रह किया कि वे कानून को केवल एक कैरियर विकल्प के रूप में न देखें, बल्कि इसे एक उच्चतर आह्वान (Higher Calling) के रूप में देखें, क्योंकि कानून में सफलता केवल वित्तीय लाभ से नहीं, बल्कि “नैतिक भार (Ethical Weight)” से मापी जाती है।
न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि कृपया कानून को एक साधारण पेशा समझने की भूल न करें। यह मूलतः एक आह्वान है। और अधिकांश अन्य व्यवसायों के विपरीत, सफलता केवल अंकगणितीय लाभ से नहीं, बल्कि नैतिक भार से मापी जाती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कानून अपना सबसे उत्कृष्ट उद्देश्य तब प्राप्त करता है जब यह उन लोगों को आवाज देता है जो इसे वहन नहीं कर सकते।
उन्होंने कहा कि बहुत से प्रतिभाशाली लोग, जो संभावनाओं से भरे हैं, निशुल्क काम या कानूनी सहायता से कतराते हैं, इसे एक लाभहीन या गौण गतिविधि मानकर खारिज कर देते हैं। वे सेवा की संतुष्टि के बजाय कॉर्पोरेट डेस्क की सुरक्षा के पीछे भागते हैं, और यह भूल जाते हैं कि कानून तब सबसे महान होता है जब वह उन लोगों के लिए बोलता है जो उसकी आवाज नहीं उठा सकते।
जस्टिस कांत गुवाहाटी के पंजाबी स्थित अंतर्राष्ट्रीय सभागार में शुक्रवार को आयोजित राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय एवं न्यायिक अकादमी, असम (एनएलयूजेए) के तीसरे दीक्षांत समारोह में बोल रहे थे। अपने भाषण में न्यायमूर्ति कांत ने बार के युवा सदस्यों के बीच विकसित हो रहे पेशेवर रवैये पर चिंता व्यक्त की।
उन्होंने कहा कि उन्होंने “एक शांत चिंता” और “नैतिकता को वैकल्पिक और ईमानदारी को समझौता योग्य मानने की बढ़ती प्रवृत्ति” देखी है। उन्होंने युवा स्नातकों को याद दिलाया कि पेशेवर ईमानदारी कानूनी पेशे की आधारशिला है, जो वित्तीय सफलता या अल्पकालिक प्रशंसा से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि आपकी ईमानदारी हमेशा आपकी सबसे स्थायी संपत्ति रहेगी, आपके द्वारा जीते गए किसी भी मुक़दमे या आपकी सैलरी स्लिप में जोड़े गए किसी भी शून्य से भी ज़्यादा मूल्यवान। चतुराई भले ही कुछ समय के लिए वाहवाही बटोर ले, लेकिन ईमानदारी ही जीवन भर और आपके जाने के बाद भी सम्मान दिलाएगी।
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जस्टिस कांत ने इस बात पर जोर दिया कि एक वकील की प्रतिष्ठा एक तर्क की प्रतिभा के बजाय चरित्र की स्थिरता के माध्यम से समय के साथ बनती है। उन्होंने कहा कि कानूनी करियर के लंबे दौर में प्रतिष्ठा केवल तर्क की उत्कृष्टता पर ही नहीं, बल्कि चरित्र की स्थिरता पर भी आधारित होती है।
देश में विधि शिक्षा की स्थिति पर न्यायमूर्ति कांत ने विभिन्न परिसरों में बुनियादी ढांचे की कमी पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत में विधि शिक्षा का परिदृश्य अभी भी बहुत असमान है। मैंने स्वयं देखा है कि कैसे कुछ परिसर नवाचार और आत्मविश्वास से भरपूर हैं, जबकि अन्य परिसर बुनियादी ढाँचे, संकाय क्षमता या दूरदर्शिता की सीमाओं से जूझ रहे हैं।