Delhi High Court: दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि साक्ष्यों के बिना महज ‘शारीरिक संबंध’ शब्द का इस्तेमाल बलात्कार या शील भंग के मामलों को स्थापित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी एक व्यक्ति की अपील को स्वीकार करते हुए की, जिसमें उसने बलात्कार के मामले में अपनी दोषसिद्धि और दस वर्ष के कारावास को चुनौती दी थी। कोर्ट ने उसे आरोपों से बरी कर दिया था।
जस्टिस मनोज कुमार ओहरी ने पारित आदेश में कहा कि इस मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों में, ‘शारीरिक संबंध’ शब्द का प्रयोग बिना किसी सहायक साक्ष्य के यह मानने के लिए पर्याप्त नहीं होगा कि अभियोजन पक्ष अपराध को उचित संदेह से परे साबित करने में सक्षम रहा है। कोर्ट ने कहा कि आइपीसी की धारा 376 और पाक्सो अधिनियम की धारा छह के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि कायम रखने योग्य नहीं है।
अदालत ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण मामला बताते हुए कहा कि वह मामले का निर्णय उसके गुण-दोष के आधार पर करने के लिए बाध्य है। फैसले में कहा गया है कि पीड़ित बच्ची और उसके माता-पिता ने बार-बार कहा कि ‘शारीरिक संबंध’ स्थापित किए गए थे, हालांकि इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं थी कि इस अभिव्यक्ति का क्या मतलब था।
हाई कोर्ट ने कहा कि कथित कृत्य का कोई और विवरण नहीं दिया गया है। दुर्भाग्य से, अभियोजन पक्ष या अधीनस्थ अदालत ने पीड़ित से कोई प्रश्न नहीं पूछा, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि याचिकाकर्ता पर लगाए गए अपराध के आवश्यक तत्व सिद्ध हुए हैं या नहीं। अदालत 2023 में दर्ज एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें 16 वर्षीय पीड़िता ने आरोप लगाया था कि उसके रिश्ते के भाई ने 2014 में शादी का झूठा झांसा देकर एक साल से अधिक समय तक उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए।
व्यक्ति ने अपनी दोषसिद्धि को चुनौती दी और हाई कोर्ट ने उसकी अपील को स्वीकार करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष का मामला केवल मौखिक साक्ष्य पर आधारित है, जो कि पीड़ित बच्ची और उसके माता-पिता की गवाही है तथा रिकॉर्ड में कोई फारेंसिक साक्ष्य नहीं है।
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