Justice Surya Kant Journey: हरियाणा के पेटवाड़ गांव में अपने साधारण से घर में बैठे 70 वर्षीय ऋषिकांत ने दशकों पहले अपने सबसे छोटे भाई द्वारा कही गई बात को याद किया। नई दिल्ली से 136 किलोमीटर दूर अपने घर में स्थानीय लोगों से घिरे ऋषि याद करते हुए कहते हैं कि जब हम अपने परिवार के छह एकड़ खेत से गेहूं की कटाई कर रहे थे, पसीने से लथपथ सूर्या (उनके सबसे छोटे भाई) ने कहा था, “मैं अपनी ज़िंदगी बदल दूँगा।’ उसने अभी-अभी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की थी।”
गुरुवार को विधि मंत्रालय के न्याय विभाग द्वारा जस्टिस सूर्यकांत को भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में नियुक्ति संबंधी अधिसूचना जारी की गई। न्यायमूर्ति कांत 24 नवंबर को सीजेआई का पदभार ग्रहण करेंगे। वो वर्तमान सीजेआई बीआर गवई का स्थान लेंगे। जो अपने पद से 23 नवंबर को पदमुक्त होंगे। जस्टिस सूर्यकांत 9 फरवरी, 2027 तक सीजेआई की भूमिका में रहेंगे।
एक चचेरे भाई से लेकर पूर्व सहपाठियों तक जिनमें से सभी अभी भी जस्टिस कांत को प्यार से ‘सूर्या’ कहते हैं। उन्होंने ऋषि के घर के एक बिना साज-सज्जा वाले कमरे में बधाई संदेश और यादें साझा कीं।
ऋषि के घर के बाहर अपनी बैलगाड़ी खड़ी करने के बाद समूह में शामिल होने वाले किसान चचेरे भाई रामदिया (40) कहते हैं, “मैं भले ही एक छोटा किसान हूं, लेकिन इससे सूर्या का मेरे प्रति स्नेह कभी कम नहीं हुआ।”
‘वह हमेशा बुद्धिमान था’
जस्टिस कांत के दो सहपाठी- सतबीर शर्मा, जो एक पूर्व सैनिक हैं और कक्षा 1 से 10 तक उनके साथ थे, और फूल कुमार, जो एक किसान हैं और कक्षा 9 और 10 में उनके साथ थे। उन्होंने कहा कि सूर्या स्कूल में “काफी बुद्धिमान” थे।
सतबीर याद करते हुए कहते हैं, “उस समय हमारी स्कूल फीस सिर्फ़ 10 पैसे थी। चूंकि स्कूल में बेंच नहीं थीं, इसलिए हम ज़मीन पर खाली बोरियों बिछाकर बैठते थे।”
फूल कुमार आगे कहते हैं, “जब सूर्या ने कक्षा में प्रवेश लिया था, तब मैं नौवीं कक्षा में दो बार फेल हो चुका था। आज अपनी इतनी उपलब्धियों के बाद भी, उसे हमारे नाम याद हैं।”
जस्टिस कांत, पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। उनके एक बहन और चार भाई है। उनका जन्म गृहिणी शशि देवी और सरकारी स्कूल शिक्षक मदनगोपाल शास्त्री के घर 10 फरवरी, 1962 को हरियाणा के हिसार में हुआ था, जो उनके गांव से लगभग 50 किलोमीटर दूर है।

उनकी सबसे बड़ी बहन का नाम कमला देवी है। जिनकी उम्र 74 वर्ष है। वो शादी से पहले 12वीं तक पढ़ी थीं। जस्टिस सूर्यकांत के भाइयों में, सबसे बड़े ऋषि एक सेवानिवृत्त सरकारी स्कूल शिक्षक हैं। 68 वर्षीय शिवकांत एक सेवानिवृत्त क्षय रोग और वक्ष रोग विशेषज्ञ हैं जो हरियाणा के भिवानी में एक निजी अस्पताल चलाते हैं और 66 वर्षीय देवकांत हरियाणा के एक औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) से सेवानिवृत्त समूह प्रशिक्षक हैं।
1981 में हिसार के सरकारी स्नातकोत्तर महाविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त करने और 1984 में रोहतक के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद जस्टिस कांत अपने परिवार में पहले कानून स्नातक बने।
अपने पिता की इच्छा के अनुसार, कानून में मास्टर डिग्री हासिल करने के बजाय, उन्होंने हिसार की एक कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू कर दी। 1985 में, वे पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने के लिए चंडीगढ़ चले गए , जहां उन्होंने संवैधानिक, सेवा और सिविल मामलों में विशेषज्ञता हासिल की।
1980 के दशक में जस्टिस कांत की शादी कॉलेज लेक्चरर सविता शर्मा से हुई, जो बाद में प्रिंसिपल के पद से सेवानिवृत्त हुईं। ऋषि बताते हैं, “यह एक अरेंज मैरिज थी। सूर्या की बस एक शर्त थी कि वह दहेज में एक चम्मच भी नहीं लेंगे। ऋषि आगे बताते हैं कि दंपत्ति की दो बेटियां हैं, जो दोनों कानून में मास्टर डिग्री हासिल कर रही हैं।
जस्टिस कांत को 38 वर्ष की आयु में 7 जुलाई, 2000 को हरियाणा का सबसे युवा महाधिवक्ता नियुक्त होने का गौरव प्राप्त है। मार्च 2001 में उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया। 9 जनवरी, 2004 को उन्हें पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के स्थायी न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया।
2011 में उन्होंने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय से विधिशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। 5 अक्टूबर, 2018 को, उन्होंने हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का पदभार ग्रहण किया। 24 मई, 2019 को उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया।
‘वह हमेशा कड़ी मेहनत करने वाले थे’
जस्टिस कांत को मेहनती” बताते हुए ऋषि ने दशकों पहले अपने भाई की पढ़ाई की दिनचर्या को याद किया। वो कहते हैं कि सर्दियों में, वह अपने पुराने पारिवारिक घर (गाँव में) में अपने सहपाठियों के साथ रात में पढ़ाई करते हुए, खुद को गर्म रखने के लिए अपनी फर्श की गुड़ी (कंबल) के नीचे पराली बिछा लेते थे। वह हमेशा मेहनती रहे। 1990 में चंडीगढ़ में वकालत के दिनों में वह अपने अदालती मुकदमों की तैयारी के लिए रात के 2 बजे तक जागते रहते थे।

1985 में जस्टिस कांत के चंडीगढ़ शिफ्ट होने पर उनके पारिवारिक मित्र और हिसार के वकील पीके संधीर ने बताया कि उनके वकील पिता ने इसमें मदद की। संधीर कहते हैं कि सूर्या द्वारा हिसार की एक अदालत में उल्लेखनीय दलीलें देने के बाद, वरिष्ठ वकीलों ने कहा, “यह लड़का यहां नहीं होना चाहिए ।’ जब सूर्या ने कहा कि वह वहाँ किसी को नहीं जानते, तो मेरे पिता ने उन्हें चंडीगढ़ ले जाने की पेशकश की। चंडीगढ़ में, सूर्या ने वकील अरुण जैन के साथ प्रैक्टिस शुरू की।”
वे आगे कहते हैं, “गांव के सरकारी स्कूल में पढ़े और बिना किसी कानूनी विरासत के सूर्या अपने अथक प्रयासों और न्याय के प्रति अटूट प्रतिबद्धता की बदौलत आगे बढ़े। वे संविधान की शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं।”
पेटवाड़ गांव के सरपंच के लिए न्यायमूर्ति कांत की पदोन्नति की खबर आशा लेकर आई है। अपने अगले कार्यकाल को लेकर समुदाय की खुशी साझा करते हुए सरपंच उर्मिला कहती हैं, “हम सबने खबर सुनी है, लेकिन विकास के मामले में गांव में ज़्यादा कुछ खास नहीं हुआ है। मुझे उम्मीद है कि गांव की फिरनी (बाहरी इलाके में एक रिंग रोड) जल्द ही बन जाएगी। दो साल से लंबित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का काम पूरा हो जाना चाहिए। इसके अलावा, जलघरों पर खराब पड़े बूस्टिंग स्टेशन भी हैं जिन्हें बदलने की ज़रूरत है।”
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जिस सरकारी स्कूल में जस्टिस कांत ने पढ़ाई की थी, उसकी खराब हालत पर प्रकाश डालते हुए, वह आगे कहती हैं, “दस कक्षाओं में से केवल चार ही इस्तेमाल करने लायक हैं। लगभग तीन साल से, स्कूल में विज्ञान या गणित का कोई शिक्षक नहीं है। यह तब है जब वहाँ नामांकित 150 छात्रों में से लगभग 90% मुख्यतः अनुसूचित जाति और पिछड़े समुदायों से हैं। वे अभी भी स्कूल में पढ़ रहे हैं, जबकि अन्य ने ऊंची फीस के बावजूद निजी संस्थानों का रुख कर लिया है।”
जहां तक स्थानीय विधायक और गांव निवासी जस्सी पेटवार का सवाल है। वो कहते हैं कि न्यायमूर्ति कांत का मुख्य न्यायाधीश बनना सभी के लिए “प्रेरणा” का काम करेगा। उनकी पदोन्नति किसानों और गरीबों के अनगिनत बच्चों को यह विश्वास दिलाने के लिए प्रेरित करेगी कि वे भी जीवन में आगे बढ़ सकते हैं।
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