गुजरात के सूरत शहर में एक अजीब वाकया सामने आया है। यहां जैन समाज की एक सात की बच्ची दीक्षा (संन्यास) ले रही थी, जिस पर सूरत की अदालत ने सोमवार को रोक लगा दी है। जानकारी के मुताबिक बच्ची की मां अपने पति की इच्छा के विरुद्ध जाकर बच्ची को दीक्षा दिला रही थी।
फैमिली कोर्ट के जज एसवी मंसूरी ने बच्ची के दीक्षा पर रोक लगा दी। बच्ची 8 फरवरी को मुंबई के एक कार्यक्रम में दीक्षा लेने वाली थी।
कोर्ट ने मां को हलफनामा दायर करने को कहा
याचिकाकर्ता के वकील संपति मेहता ने कहा, कोर्ट ने हमारी याचिका को मंजूर कर लिया और बच्ची की दीक्षा पर अंतरिम रोक लगा दी है। साथ ही आगे की सुनवाई के लिए दो जनवरी की तारीख दी है। कोर्ट ने बच्ची की मां से एक हलफनामा दाखिल करने को कहा गया है जिसमें यह लिखें कि बच्ची समारोह में भाग नहीं लेगी।
कोर्ट को बताया गया कि महिला करीबन एक साल पहले ही अपने पति का घर छोड़कर जा चुकी है। साथ ही वह बच्ची और बेटे को अपने माता-पिता के पास लेकर चली गई।
10 दिसंबर को पिता पहुंचा कोर्ट
10 दिसंबर को बच्ची के पिता ने फैमिली कोर्ट में उसकी कस्टडी की मांग की और दावा किया कि उसके इच्छा के विरुद्ध जाकर उसकी पत्नी बच्ची को दीक्षा दिलाने जा रही जिससे वह साधु बन जाए।
अभिभावक एवं आश्रित अधिनियम, 1890 के तहत दायर याचिका में पिता ने बच्ची के हितों की रक्षा के लिए उसे कानूनी अभिभावक नियुक्त करने की मांग की। इस मामले में जज एसवी मंसूरी ने याचिकाकर्ता की पत्नी को नोटिस जारी किया था और 22 दिसंबर तक जवाब मांगा था।
याचिकाकर्ता ने कहा कि 2012 में उसकी शादी हुई थी और उनके दो बच्चे हैं। 2024 से दोनों अलग-अलग रह रहे हैं।
पत्नी से पहले की थी बात
याचिका में कहा गया कि उन्होंने अपनी पत्नी के साथ बेटी के साधु बनने के मुद्दे पर चर्चा की थी और इसे लेकर भी दोनों में सहमति बनी थी कि लड़की बड़ी होने के बाद साधु बन सकती है। याचिकाकर्ता ने कहा कि लेकिन उनकी पत्नी ने बच्ची को दीक्षा के लिए मना लिया, जो फरवरी 2026 में मुंबई में होना है।
अप्रैल 2024 में उसकी पत्नी दोनों बच्चों के साथ घर छोड़कर चली गई और अपनी पैरेंट्स के साथ रहने लगी। साथ ही यह भी कहा कि अब वह तभी लौटेगी जब वह बच्ची के दीक्षा के लिए मान जाएं।
बच्ची को आश्रम में अकेली छोड़ आती है मां
इसके बाद महिला बिना उनके अनुमति के ही इस महोत्सव में जाने के लिए राजी हो गई। याचिकाकर्ता ने कहा कि उनकी बच्ची महज सात वर्ष की है और वह अपने लिए फैसले नहीं ले सकती। उन्होंने आगे दावा किया कि उनकी पत्नी बच्ची को लेकर धार्मिक महोत्सव में जाती हैं। इतना ही नहीं एक बार तो अहमदाबाद के आश्रम में बिना उनसे बात किए गुरु के साथ अकेले छोड़ दिया।
याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि एक बार वह बच्ची को एक और मुंबई के जैन साधु के यहां अकेले छोड़ आई थी, जहां उन्हें बच्ची से मिलने की अनुमति नहीं दी गई।
यह भी पढ़ें: Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में बीजेपी से क्यों नाखुश है जैन समाज? डैमेज कंट्रोल में जुटी फडणवीस सरकार
