Legal News Hindi: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज अभय एस. ओका ने अर्थशास्त्री और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल की टिप्पणी की आलोचना की है। जस्टिस ओका की यह टिप्पणी संजीव सान्याल द्वारा दिए गए उस बयान के बाद आई है। जिसमें सान्याल ने कहा था कि न्यायपालिका भारत के विकसित राष्ट्र बनने में “सबसे बड़ी बाधा” है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस अभय एस ओका ने कहा है कि प्रत्येक नागरिक को न्यायपालिका की रचनात्मक आलोचना करने का अधिकार है, लेकिन यह स्थापित करना होगा कि अदालतों द्वारा पारित आदेश विकास कार्यों में हस्तक्षेप करते हैं और संविधान का उल्लंघन करते हैं।
न्यायमूर्ति ओका ने सान्याल का स्पष्ट संदर्भ देते हुए कहा, “इस विद्वान व्यक्ति को उन न्यायिक आदेशों के उदाहरण देने चाहिए थे, जो उनके अनुसार, विकसित भारत के कार्य में बाधा उत्पन्न करते थे।”
जस्टिस ओका ने आगे कहा, “उन्हें उन आदेशों का विवरण देना चाहिए था। अगर उन्होंने ऐसा किया होता, तो उनकी आलोचना रचनात्मक आलोचना बन जाती, जिसका स्वागत होता। उन्होंने कहा कि भारत के प्रत्येक नागरिक को न्यायपालिका और उसके आदेशों की रचनात्मक आलोचना करने का अधिकार है। और हमें किसी भी कीमत पर इस अधिकार का समर्थन करना चाहिए।”
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बुधवार को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) की व्याख्यान श्रृंखला में ‘Clean Air, Climate Justice, and We – Together for a Sustainable Future’ विषय पर बोल रहे थे।
जस्टिस ओका ने कहा कि न्यायिक आदेशों की आलोचना की जा सकती है, बशर्ते कोई यह स्थापित कर दे कि ये आदेश संविधान का उल्लंघन करते हैं और संविधान के ढांचे के भीतर विकास कार्य की अनुमति नहीं देते।
संजीव सान्याल ने क्या कहा था?
पिछले महीने न्याय निर्माण 2025 कॉन्फ्रेंस ( Nyaya Nirmaan 2025 Conference) में बोलते हुए सान्याल ने कहा था, “विकसित भारत बनने के लिए हमारे पास प्रभावी रूप से 20-25 साल का समय है… लेकिन मेरे विचार से, विशेष रूप से न्यायिक प्रणाली, विकसित भारत बनने और तेजी से आगे बढ़ने में सबसे बड़ी बाधा है।”
इसके अलावा, पीएमओ अधिकारी ने हाई कोर्ट में लंबी छुट्टियों की भी आलोचना की थी। साथ ही कानूनी शब्दावली में “प्रार्थना (Prayer)” और “माई लॉर्ड (My Lord)” जैसे शब्दों के प्रयोग की भी आलोचना की।
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सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने सान्याल की टिप्पणी को “गैर-ज़िम्मेदाराना” और “गलत इरादे से की गई” बताते हुए खारिज कर दिया। उन्होंने ज़ोर देकर कहा था कि ऐसी टिप्पणियां अदालतों के कामकाज की समझ की कमी को दर्शाती हैं।
विकास सिंह ने कहा था कि हाई कोर्ट की छुट्टियों पर टिप्पणी करने वाले किसी भी व्यक्ति को यह समझ नहीं है कि ये उच्च न्यायालय कैसे काम करते हैं। ये छुट्टियां ऐसी अवधि नहीं हैं जब आप कुछ न करें और अदालत का समय बर्बाद करें। उच्च न्यायालय में छुट्टियों की अवधारणा को समझने के लिए, आपको यह समझना होगा कि एक व्यस्त वकील या न्यायाधीश सामान्य समय में किस तरह का काम करता है।”
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