दिल्ली हाई कोर्ट ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के उस कांस्टेबल को बहाल करने का आदेश दिया है, जिसे एचआइवी से संक्रमित होने के आधार पर सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। अदालत ने 16 दिसंबर के एक आदेश में कहा कि अगर याचिकाकर्ता की स्वास्थ्य स्थिति ऐसी है कि वह कांस्टेबल के पद की जिम्मेदारियां नहीं निभा सकता, तो उसे उसकी योग्यता के अनुसार किसी अन्य समकक्ष पद पर वैकल्पिक नियुक्ति देकर उचित सुविधा देनी होगी।
न्यायमूर्ति सी हरि शंकर और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ बीएसएफ कर्मी की सेवा में बहाली की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 9 अप्रैल, 2019 के बर्खास्तगी आदेश और उसके खिलाफ अपील को रद्द करने के आदेश को निरस्त करने का अनुरोध किया गया था।
आपसी सहमति से तलाक के मामलों में बड़ा फैसला
वहीं, दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में आपसी सहमति से तलाक के मामलों में बड़ा फैसला सुनाया है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि आपसी सहमति से तलाक चाहने वाले दंपतियों के लिए हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अनुसार कम से कम एक साल तक अलग रहना अनिवार्य नहीं है। वैवाहिक कानून के तहत एक महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण देते हुए न्यायालय ने फैसला सुनाया कि उचित मामलों में इस आवश्यकता को माफ किया जा सकता है, जिससे टूटे हुए विवाहों में फंसे दंपतियों को राहत मिलेगी।
पढ़ें- आपसी सहमति से तलाक के लिए एक साल तक अलग रहना अनिवार्य नहीं
अवैध निर्माण के खिलाफ याचिकाएं दायर करने के लिए याचिकाकर्ता पर जुर्माना
वहीं, दूसरी और दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी में संपत्तियों के अवैध निर्माण के खिलाफ कई याचिकाएं दायर करने और फिर उनपर आगे नहीं बढ़ने के लिए एक याचिकाकर्ता पर गुरुवार को 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया।
न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा आरके पुरम क्षेत्र में अवैध निर्माण के संबंध में एक ही याचिकाकर्ता द्वारा दायर पांचवीं रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थीं। अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता लगातार याचिकाएं दायर कर रहा है, लेकिन बाद में उन पर आगे नहीं बढ़ता है। अदालत ने आदेश में कहा कि यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता एक के बाद एक याचिका दायर करता है और उसने संबंधित क्षेत्र में स्थित विभिन्न संपत्तियों के खिलाफ कई याचिकाएं दायर की हैं। याचिकाकर्ता याचिकाएं दायर करने के बाद उन पर आगे नहीं बढ़ता।
पढ़ें- बॉम्बे हाई कोर्ट को मिली बम से उड़ाने की धमकी, परिसर कराया गया खाली
