Sonam Wangchuk: लद्दाख के जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत हिरासत को चुनौती देने वाली याचिका पर लेह के जिला मजिस्ट्रेट ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया। जिसमें बताया गया कि सोनम वांगचुक राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने और समुदाय के लिए आवश्यक सेवाओं के लिए हानिकारक गतिविधियों में शामिल थे, जिसके कारण उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत हिरासत में लिया गया।
यह हलफनामा वांगचुक की पत्नी गीतांजलि आंगमो द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत उनकी नजरबंदी को चुनौती देने वाली याचिका के जवाब में दायर किया गया।
लेह के जिलाधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में इस बात से इनकार किया कि वांगचुक को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया था या हिरासत में उनके साथ अनुचित व्यवहार किया जा रहा था। उन्होंने कहा कि हिरासत के कारणों और तथ्यों के बारे में उन्हें अवगत करा दिया गया था।
लेह प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मैं बंदी को हिरासत में लिए जाने के कारणों से संतुष्ट था और अब भी संतुष्ट हूं। यह हलफनामा वांगचुक की पत्नी गीतांजलि जे. अंगमो की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई उस याचिका के जवाब में दाखिल किया गया है, जिसमें उन्होंने रासुका के तहत अपने पति की हिरासत को चुनौती दी है और उनकी तत्काल रिहाई की मांग की है।
हालांकि यह मामला मंगलवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध था, लेकिन वांगचुक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के दूसरी अदालत में व्यस्त होने के कारण इस पर सुनवाई नहीं हो सकी। अदालत अब इस पर बुधवार को सुनवाई करेगी।
लेह डीएम ने कहा कि जब सोनम वांगचुक को 26 सितंबर को हिरासत में लिया गया था, तो उन्हें “राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत उनकी हिरासत के तथ्य के साथ-साथ राजस्थान के जोधपुर स्थित सेंट्रल जेल में उनके स्थानांतरण के तथ्य के बारे में स्पष्ट रूप से सूचित किया गया था।
अधिकारी ने कहा कि उक्त तथ्य को तुरंत ही एसएचओ, पुलिस स्टेशन, लेह के माध्यम से उनकी पत्नी, सुश्री गीतांजलि अंग्मो को टेलीफोन पर सूचित किया गया था, जिसे उन्होंने अपनी याचिका में स्वीकार किया है… इसलिए, हिरासत में लिए गए व्यक्ति या याचिकाकर्ता को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत हिरासत के आदेश के बारे में सूचित नहीं किए जाने के संबंध में सभी दलीलें पूरी तरह से झूठी और भ्रामक हैं।
जहां तक राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 की धारा 8 और संविधान के अनुच्छेद 22 के संदर्भ में नजरबंदी के आधारों के संचार का संबंध है, डीएम ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 की धारा 8 में शामिल अनुच्छेद 22 के तहत प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों, विशेष रूप से और सामान्य रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम का ईमानदारी और सख्ती से पालन किया गया है।
लेह डीएम ने कहा कि बिना किसी देरी के और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 की धारा 8 के तहत निर्धारित पांच दिनों की अवधि के भीतर, हिरासत के आधार और व्यक्तिपरक संतुष्टि तक पहुंचने के लिए मेरे द्वारा भरोसा की गई सामग्री को हिरासत में लिए गए व्यक्ति को सूचित कर दिया गया, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 की धारा 8 के साथ-साथ भारत के संविधान के अनुच्छेद 22 की कठोरता का पूरी तरह से पालन किया गया।
डीएम ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 की धारा 10 के तहत अपेक्षित निरोध आदेश को, उक्त प्रावधान के तहत निर्धारित अवधि के भीतर, केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख द्वारा सलाहकार बोर्ड को भेज दिया गया है, साथ ही उन आधारों को भी शामिल किया गया है जिन पर मेरे द्वारा आदेश पारित किया गया है।
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हलफनामे में आगे कहा गया है कि वांगचुक ने “राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 की धारा 10 के तहत आवश्यक कोई अभ्यावेदन नहीं दिया है”। इसमें कहा गया है कि हालांकि, याचिकाकर्ता ने राष्ट्रपति को संबोधित एक पत्र भेजा है, न कि सलाहकार बोर्ड को या किसी वैधानिक प्राधिकरण को अधिनियम की धारा 10 के तहत, केवल बंदी ही अभ्यावेदन दे सकता है।
बता दें, केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को राज्य का दर्जा दिये जाने और इसे छठी अनुसूची में शामिल किये जाने की मांग को लेकर हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों के दो दिन बाद वांगचुक को 26 सितंबर को रासुका के तहत हिरासत में लिया गया था। इस हिंसक प्रदर्शन में चार लोगों की मौत हो गई और 90 घायल हो गये थे। सरकार ने उन पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया है।
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