रामपुर की स्पेशल MP/MLA कोर्ट ने समाजवादी पार्टी के सीनियर नेता आजम खान के बेटे और पूर्व विधायक अब्दुल्ला आजम खान को सात साल की सजा सुनाई है। उन पर आरोप था कि उन्होंने पासपोर्ट बनवाने के लिए गलत कागजों का इस्तेमाल किया। यह मामला साल 2019 में उस समय शुरू हुआ था, जब मौजूदा बीजेपी विधायक आकाश सक्सेना ने इसकी शिकायत की थी।
यह फैसला उस फैसले के करीब तीन हफ्ते बाद आया है जिसमें रामपुर की ही एक और कोर्ट ने आजम खान और अब्दुल्ला दोनों को दो पैन कार्ड से जुड़े एक मामले में सात साल की सजा सुनाई थी। 17 नवंबर से दोनों रामपुर जिला जेल में हैं। बुधवार के इस नए फैसले के बाद अब्दुल्ला पर तीन मामलों में सजा तय हो चुकी है, जबकि आजम खान सात मामलों में दोषी करार दिए जा चुके हैं। अभी भी रामपुर की अलग-अलग अदालतों में आजम के खिलाफ 77 और अब्दुल्ला के खिलाफ 40 से ज्यादा मामले चल रहे हैं।
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17 नवंबर को जेल भेजे जाने के बाद कई लंबित मामलों में उनकी जमानत भी रद्द कर दी गई। शुक्रवार को अब्दुल्ला वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट में पेश हुए। रामपुर के जाइंट डायरेक्टर प्रोसिक्यूशन रोहतास कुमार पांडे ने बताया कि कोर्ट ने पासपोर्ट वाले केस में अब्दुल्ला को आईपीसी की धारा 420, 467, 468 और 471 में दोषी पाया। इसके बाद एडिशनल चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट शोभित बंसल ने सात साल की सजा और 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने यह फैसला पांच प्रोसिक्यूशन गवाहों और 19 बचाव पक्ष के गवाहों की गवाही सुनने के बाद दिया। अब्दुल्ला के वकील नासिर सुल्तान ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
मामला क्या है?
प्रोसिक्यूशन के अनुसार, यह केस बीजेपी नेता आकाश सक्सेना की उस एफआईआर से जुड़ा है जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि अब्दुल्ला ने पासपोर्ट के लिए जाली कागज दिए। उनके स्कूल रिकॉर्ड और हाई स्कूल सर्टिफिकेट में जन्मतिथि 1 जनवरी 1993 दर्ज है। लेकिन उनके पासपोर्ट में जन्मतिथि 30 सितंबर 1990 लिखी है।
अब्दुल्ला ने इस केस को रद्द कराने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में अर्जी लगाई थी। उनका कहना था कि वे जन्मतिथि से जुड़े जाली कागजों के इस्तेमाल के एक और मामले में पहले ही दोषी ठहराए जा चुके हैं, और वही कागज पासपोर्ट के लिए भी इस्तेमाल हुए थे। इसलिए यह डबल जीओपार्डी यानी एक ही अपराध में दो बार सजा जैसा मामला है। लेकिन हाई कोर्ट ने जुलाई 2023 में यह दलील खारिज कर दी और कहा कि दोनों मामले अलग-अलग आधार पर हैं। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के फैसले में दखल देने से इंकार कर दिया।
पैन कार्ड का मामला
पैन कार्ड वाले केस में आरोप था कि अब्दुल्ला के पास एक ऐसा पैन कार्ड था जिसमें जन्मतिथि 1 जनवरी 1993 लिखी थी और वे इसे बैंक काम और टैक्स फाइलिंग में इस्तेमाल करते थे। लेकिन 2017 के चुनाव के समय उन्होंने अपनी बैंक पासबुक में पैन नंबर बदल दिया और नामांकन के साथ जाली पैन कार्ड की कॉपी दी। दूसरे पैन कार्ड में जन्मतिथि 30 सितंबर 1990 थी, और प्रोसिक्यूशन के मुताबिक यह गलत पात्रता दिखाने के लिए इस्तेमाल किया गया।
2023 में इस केस में दोषी ठहराए जाने के बाद उन्हें विधायक पद से अयोग्य कर दिया गया था। इससे पहले 2020 में उन्हें पहली बार तब अयोग्य घोषित किया गया था जब हाई कोर्ट ने उनके 2017 के चुनाव को इस आधार पर रद्द किया कि उस समय उनकी उम्र 25 साल से कम थी।
