भारतीय शतरंज में हमेशा ही प्रतिभाशाली खिलाड़ी रहे हैं। ग्रैंडमास्टर बनने वाले खिलाड़ियों की संख्या भी काफी है। लेकिन शतरंज की बिसात पर विश्व चैंपियन बनने की कूबत सबमें नहीं है। देश में विश्वनाथन आनंद की कोई जगह ले सके, ऐसा खिलाड़ी 2023 के पहले तो दिखाई नहीं दिया लेकिन पिछले साल तीन खिलाड़ियों ने संकेत दिए कि उनमें ऐसी क्षमता है। ये खिलाड़ी हैं आर प्रज्ञानानंद, विदित गुजराती और डी गुकेश।

प्रज्ञानानंद स्पष्ट रूप से विश्व कप में आकर्षण का केंद्र थे, जहां वे प्रतियोगिता के संशोधित प्रारूप में फाइनल में पहुंचने वाले पहले भारतीय बने। 10 साल की उम्र से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी माने जाने वाले चेन्नई के इस लड़के ने 18 साल की उम्र में वह हासिल कर लिया है जो कई भारतीय शतरंज खिलाड़ियों ने अपने जीवनकाल में नहीं पाया है। यहां अकेले प्रज्ञानानंद के बारे में बात नहीं हो रही है।

कैंडिडेट वर्ग टूर्नामेंट में विदित गुजराती और डी गुकेश ने भी उम्मीदें जगाई हैं। विश्वनाथन आनंद से पहले और बाद में, किसी भी भारतीय खिलाड़ी ने इस प्रतियोगिता के लिए क्वालीफाई नहीं किया था। यह प्रतियोगिता विश्व चैंपियन से मुकाबला करने के लिए चुनौती देने वाले खिलाड़ी को चुनने का मौका देती है। पांच बार के विश्व चैंपियन आनंद के देश में यह एक बड़ा शून्य था। इन तीनों ने इसे भर दिया है।

प्रज्ञानानंद की बड़ी बहन वैशाली ने महिला वर्ग में कैंडिडेट वर्ग में जगह बनाकर खुशी को चौगुना कर दिया है। कोनेरू हम्पी और डी हरिका के बाद ग्रैंडमास्टर खिताब हासिल करने वाली भारत की तीसरी महिला बनने के बाद वैशाली महिला शतरंज में अगली बड़ी खिलाड़ी हैं। इस बात की चिंता थी कि महिला वर्ग में भारत के लिए स्थिति में कोई बदलाव दिखाई नहीं दे रहा था। लेकिन वैशाली की उपलब्धियों ने हालात को बदला और भारतीय महिला खिलाड़ियों को एक बार फिर सामने ला दिया।

कभी-कभी अंदरूनी कलह का आरोपों से जूझने वाले अखिल भारतीय शतरंज महासंघ ने प्रज्ञानानंद, विदित और वैशाली की तैयारियों के लिए दो करोड़ रुपए के कोष का इंतजाम किया। गुकेश के भी कुछ कटौती के साथ धन मिला है। यह देखना होगा कि अप्रैल में टोरंटो में होने वाले कार्यक्रम से पहले आबंटन बढ़ाया जाता है या नहीं।

कैंडीडेट वर्ग में एक भी भारतीय प्रतिभागी नहीं था लेकिन अब पुरुष वर्ग में तीन प्रतिभागियों तक भारत का पहुंचना प्रगति का एक बड़ा संकेत है। वर्षों तक क्षमता और प्रतिभा की बात होती रही। भारत में ग्रैंडमास्टर की संख्या बढ़ रही थी। लेकिन किसी ने भी विश्व स्तर पर स्थायी प्रभाव नहीं डाला। प्रगति हो रही थी, कोई उत्कृष्टता नहीं थी और आनंद के करीब पहुंचता तो कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था।

2023 में एक नई पीढ़ी के उदय ने उस धारणा को बदल दिया। भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसके तीन खिलाड़ी आठ खिलाड़ियों के केंडीडेट वर्ग में शामिल हैं। गुकेश 17 वर्ष के हैं जबकि प्रज्ञानानंद 18 वर्ष के। विदित गुजराती 29 वर्ष के हैं। यह एक बड़ा क्षण है और युवा भारत का उदय स्पष्ट दिखाई दे रहा है।

यह प्रगति न केवल उन खिलाड़ियों की संख्या में प्रकट होती है जिन्होंने कैंडिडेट वर्ग में जगह बनाई है, बल्कि पहली बार किसी भारतीय ने अंतरराष्ट्रीय रेटिंग सूची में आनंद को पीछे छोड़ दिया। सितंबर में, गुकेश शीर्ष 10 में जगह बनाने वाले केवल दूसरे भारतीय बने। वे दुनिया में सातवें और आनंद आठवें स्थान पर थे। हालांकि मौजूदा रैंकिंग अलग है और गुकेश 28वें स्थान पर खिसक गए हैं।

इसके बावजूद, भारत के शीर्ष 20 में अभी भी तीन और 30 में पांच खिलाड़ी हैं। देश के खिलाड़ियों ने कभी भी रैंकिंग में इतनी प्रमुखता से अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कराई है। अभी और भी युवा तैयार हो रहे हैं। दुनिया के 23वें नंबर के अर्जुन एरिगैसी 20 साल के हैं। 46वें नंबर के निहाल सरीन अभी 20 साल के नहीं हुए हैं। यह इस बात का सबूत है कि भारतीय शतरंज की बिसात में तेजी से कदम रख रहे हैं।