तनिष्क वड्डी। भारतीय ने रविवार (2 फरवरी) को साउथ अफ्रीका को हराकर अंडर-19 महिला टी20 वर्ल्ड कप के खिताब को डिफेंड किया। भारतीय टीम 2023 में भी खिताब जीती थी। तब अंडर-19 महिला टी20 वर्ल्ड कप पहली बार खेला गया था। भारतीय टीम के दूसरी बार खिताब जीतने में तेलंगाना की गोंगाडी तृषा ने अहम भूमिका निभाई। उन्होंने 77.25 के औसत और 147.14 के स्ट्राइक रेट से टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा 309 रन बनाए। इसके अलावा 7 विकेट भी लिए। फाइनल में उन्होंने नाबाद 44 रन बनाए। इसके अलावा 3 विकेट भी लिए।

15 जनवरी 2005 को तेलंगाना के भद्राचलम में जन्मीं गोंगाडी तृषा ने 2 साल की उम्र में ही क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था। उनके पिता को खेल से लगाव था। उन्होंने बेटी की जूनियर क्रिकेट में शानदार करियर बनाने की योजना बनाई। तृषा की मसल मेमोरी बनाने के लिए पिता जी रामी रेड्डी ने खूब मेहतन की। उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस से बताया, “बॉल गेम में, आपको अपनी मसल मेमोरी बानना के लिए जितनी संभव हो उतनी गेंदें खेलनी होती हैं। मेरा मानना ​​है कि जब बच्चे छोटी उम्र में कुछ चीजों से घिरे होते हैं तो वे उन्हें अपनना शुरू कर देते हैं। मुझे लगा कि वह समझ जाएगी कि बल्ले का बीच का हिस्सा कहां है और उसमें समन्वय विकसित होगा।”

गोंगाडी तृषा 4 साल की उम्र से जाने लगी थीं जिम

गोंगाडी तृषा लगभग चार साल की थी तो उनके पिता ने उन्हें जिम ले जाना शुरू कर दिया, जहां वह ट्रेनर थे। फिर उन्होंने भद्राद्री जूनियर कॉलेज में एक कंक्रीट पिच बनाई और नेट लगाए, जहां उन्होंने अपनी बेटी को कम से कम एक हजार गेंदें फेंकी होंगी। जी रामी रेड्डी ने बताया कि उन्होंने इतनी कम उम्र में मेहनत क्यों शुरू कर दी। उन्होंने कहा, “आमतौर पर, हर कोई आठ साल की उम्र में शुरू करता है, लेकिन उस स्टेज में कंपटीशन बहुत अधिक होगी। इसलिए मैंने सुनिश्चित किया कि वह दो साल की उम्र से शुरू कर दे। एक ही जीवन मिलता है और मैंने उसे सर्वश्रेष्ठ देने का फैसला किया।”

सेरेना-वीनस और आंद्रे अगासी के पिता साथ लिया जाएगा रामी रेड्डी का नाम

सेरेना और वीनस के पिता रिचर्ड विलियम्स ने अपने संस्मरण (Memoir) ब्लैक एंड व्हाइट: द वे आई सी इट में लिखा है कि उन्होंने अपनी पहली बेटी येतुंडे के जन्म से पहले ही सेकंड-हैंड टेनिस रैकेट खरीद लिया था। आंद्रे अगासी के पिता ने उनके पालने के ऊपर टेनिस बॉल लटका दी थी, ताकि उनकी आंखें बॉल की मूवमेंट की आदी हो जाएं। मनोवैज्ञानिक लास्जलो पोलगर ने चार साल की उम्र से ही अपनी तीन बेटियों को शतरंज की ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया था। उन्होंने यह साबित करने का संकल्प लिया कि महिलाएं खेल के शुरुआती दौर में ही पुरुषों को चुनौती दे सकती हैं। रामी रेड्डी का नाम भी इनके साथ लिया जाएगा।

गोंगाडी तृषा ने रचा इतिहास

गोंगाडी तृषा इतिहास के पन्नों में अपना नाम अंकित करा चुकी है। वह शतक लगाने वालीं पहली अंडर-19 भारतीय महिला क्रिकेटर हैं। वह मुश्किल से दो साल की थीं,जब उनके पिता ने उन्हें प्लास्टिक का क्रिकेट बैट लाकर दे दिया था। वह उन्हें प्लास्टिक या सॉफ्ट टेनिस बॉल फेंकते थे। आमतौर पर इस उम्र में पिता अपनी बेटियों के लिए बार्बी डॉल और टेडी बियर खरीदते हैं।

रामी रेड्डी अंडर-16 स्तर पर हॉकी खिलाड़ी रहे

रामी रेड्डी ने गोंगाडी तृषा को क्रिकेटर बनाने का सपना देखा, क्योंकि वह खुद खेल में अपना नाम बनाने में असफल रहे। हैदराबाद के लिए अंडर-16 स्तर पर हॉकी खिलाड़ी रहे रेड्डी ने तेलंगाना की राजधानी से 300 किलोमीटर दूर एक गुमनाम शहर भद्राचलम में जाने के बाद इस सपने को त्याग दिया। शहर में क्रिकेट की सुविधाएं कपछ खास नहीं थीं, लेकिन रेड्डी ने सुनिश्चित किया कि तृषा का शरीर एक खिलाड़ी की तरह बने। रेड्डी कहते हैं, “मैंने जल्दी शुरुआत की और सुनिश्चित किया कि उसके जोड़ों पर ज्यादा भार न पड़े। मैंने यह सब वैज्ञानिक तरीके से किया।”

तृषा के खानपान पर दिया ध्यान

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रामी रेड्डी ने सुनिश्चित किया कि तृषा का खानपान सही हो। उन्होंने एक डाइट चार्ट बनाया और प्रोटीन और पोषक तत्वों की आदर्श मात्रा का पता लगाया, जो उनके लिए जरूरी था। उन्होंने बताया “कोई सप्लीमेंट इस्तेमाल नहीं किया गया। सब कुछ घर का बना था। चूंकि वह छोटी उम्र से ही बहुत खेलती और अभ्यास करती थी, इसलिए हमें उन्हें बहुत सारा प्रोटीन देना पड़ा।”

तृषा को स्कूल नहीं भेजा

तृषा को क्रिकेटर बनाने के लिए वह इतने जुनूनी थे कि उन्होंने उसे कुछ समय के लिए स्कूल नहीं भेजा और ट्यूशन की व्यवस्था की। वह कहते हैं, “मुझे लगा कि इससे उसे परेशानी होगी। जब उसका दाखिला हुआ, तो वह तीन घंटे स्कूल जाती थी, जबकि दिन में छह-आठ घंटे क्रिकेट को देती थी। अगर वह स्कूली शिक्षा प्रणाली में होती तो शायद ही अपने देश के लिए खेल पाती।”

सेंट जॉन क्रिकेट एकेडमी में तृषा का दाखिला

जब तृषा 11 साल की थी, तो रामी रेड्डी ने उन्हें हैदराबाद में प्रसिद्ध सेंट जॉन क्रिकेट एकेडमी में डाल दिया, जहां त्रिशा के नाना-नानी रहते थे। कुछ ही समय बाद, उन्होंने भी अपनी नौकरी छोड़कर हैदराबाद के लिए अपना सामान समेट लिया। “मेरे ससुर को उन्हें अभ्यास के लिए ले जाने मुश्किल हो रहा था। एक बार अभ्यास के लिए जाते समय उनका एक छोटा सा एक्सीडेंट हो गया था और उसके बाद मैंने हैदराबाद जाने का फैसला किया।”

एकेडमी ने वीवीएस लक्ष्मण और मिताली राज जैसे दिग्गज खिलाड़ी दिए

इस एकेडमी ने वीवीएस लक्ष्मण और मिताली राज जैसे दिग्गज खिलाड़ी दिए हैं। तृषा के हैंड-आई कॉर्डिनेशन ने कोच जॉन मनोज को चौंका दिया। वह इतनी अच्छी थीं कि उन्होंने अपनी उम्र से कहीं ज्यादा आयु वर्ग की टीमों में खेलना शुरू कर दिया। मनोज ना कहा, “उसने आठ साल की उम्र में हैदराबाद के लिए अंडर-16 खेला। 11 साल की उम्र में उसने अंडर-19 और अंडर-23 खेला, 12 साल की उम्र में उसने 13 साल की उम्र में सीनियर टीम के लिए खेलना शुरू किया और भारत ने एनसीए स्पिन कैंप में हिस्सा लिया।”

तृषा की पावर-हिटिंग का राज

दो साल की उम्र से ही टेनिस बॉल पर लगातार घंटों खेलने से तृषा की पावर-हिटिंग स्किल्स में निखार आया। मनोज कहते हैं कि अभ्यास के कारण वह तेजी से लेंथ का अंदाजा लगा लेती हैं। उनके पास उस प्रतिभा को समझाने के लिए शब्द नहीं हैं। वह पूछते हैं, “सचिन तेंदुलकर ने 16 साल की उम्र में देश के लिए क्यों खेला?” वह रुकते हैं और कहते हैं, “क्योंकि वह एक अपवाद थे। और यह लड़की एक अपवाद है।”

तृषा से मिताली हुईं प्रभावित

तृषा की तेज लेग-ब्रेक ने भी महत्वपूर्ण विकेट दिलाए हैं, जैसे कि फाइनल में तीन विकेट। हैदराबाद के कोच विद्युत जयसिम्हा कहते हैं, “उनका एक्शन अलग है। इसलिए अगर आपने उन्हें शुरू में नहीं खेला है, तो आपको कुछ ओवर खेलने में लग जाते हैं। इसलिए आपको एहसास होने से पहले ही वह 2-3 ओवर खेल लेती हैं।” एकेडमी में उन्होंने अपनी विविधताओं से मिताली को भी चकित कर दिया। मनोज कहते हैं, “वह (मिताली) मुझसे कहती थीं कि उस पर ध्यान दो। मुझे लगता है कि वह भविष्य में अच्छा करेगी।” भारत ने साउथ अफ्रीका को 9 विकेट से हराकर महिला अंडर-19 वर्ल्ड कप टाइटल अपने नाम किया। पूरी रिपोर्ट पढ़ें