राजेंद्र सजवान
आपने यह कहावत तो सुनी होगी कि जो जितनी रफ्तार से ऊपर चढ़ता है उतनी ही तेजी से नीचे गिरता है । भारतीय ओलम्पिक समिति और अंतरराष्ट्रीय हाकी महासंघ के पूर्व अध्यक्ष और अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति के सदस्य डाक्टर नरिंंदर ध्रुव बत्रा पर यह कहावत काफी हद तक सही बैठती है। वही बत्रा जिन्हें हाल ही में सभी महत्त्वपूर्ण पदों से इस्तीफ़ा देना पड़ा है। आरोप लगाया गया है कि उन्होंने हाकी इंडिया के खाते में गड़बड़ की है, जिसकी फिलहाल जांच चल रही है।
बत्रा दोषी हैं या नहीं फैसला, जांच एजंसियों और कोर्ट को करना है लेकिन भारतीय खेलों और खासकर हाकी ने एक योग्य प्रशासक खो दिया है, जोकि तेजी के साथ हाकी के शीर्ष पर चढा और शायद ही किसी ने सोचा होगा कि एकदिन उन्हें ऐसा दिन भी देखना पड़ सकता है। बत्रा के उत्थान पतन की कहानी खासी रोचक है। 65 वर्षीय बत्रा ने जम्मू कश्मीर के लिए हाकी खेली और 1997 में प्रदेश हाकी के अध्यक्ष चुने गए।
प्रदेश में राष्ट्रीय हाकी चैम्पियनशिप के आयोजन के कारण पूर्व हाकी संघ अध्यक्ष केपीएस गिल से नजदीकियां बढ़ीं और फिर गिल के बेड़े में शामिल हो गए। एक दिन वह भी आया जब गिल को अपने विश्वासपात्र बत्रा के हाथों आइएचएफ अध्यक्ष पद गंवाना पड़ा। पहले हाकी इंडिया के महासचिव और कोषाध्यक्ष बने और 2014 में हाकी इंडिया के अध्यक्ष बन गए। धीरे-धीरे उन्होंने आइओए का शीर्ष पद भी पा लिया।
इसमें दो राय नहीं कि बत्रा ने हाकी के लिए ऐसे बड़े काम किए जोकि पहले कोई नहीं कर पाया था। जो खिलाड़ी अक्सर साधन सुविधाओं के लिए रोते थे और जिन्हें राष्ट्रीय सम्मान के काबिल नहीं समझा जाता था। बत्रा के अध्यक्ष बनने के बाद उनकी वाह-वाह होने लगी। खिलाडियों को हलकी उपलब्धियों के बावजूद अर्जुन, खेलरत्न और पद्मश्री जैसे सम्मान मिलने लगे। उन्हें लाखों भी मिले। उनके कार्यकाल की बड़ी उपलब्धि हाकी इंडिया लीग की शुरुआत कहा जा सकता है, जोकि कई सालों से बंद पडी है।
भारतीय महिला और पुरुष टीमों को विदेशी कोचों की सेवाएं मिलने लगी, उनका जीवन स्तर ऊपर उठा और विदेश दौरों की जैसे बाढ़ सी आ गई। हाकी इंडिया को गोरे कोच तो मिले ही एक आस्ट्रेलियाई महिला को मोटे वेतन पर हाकी का सर्वेसर्वा भी बना दिया गया। तोक्यो ओलम्पिक में पुरुष टीम का 41 साल बाद कोई पदक जीतना और महिला टीम का चौथे स्थान पर रहना भी बत्रा की उपलब्धियों में शुमार है। तो फिर बत्रा को क्यों जाना पड़ा? क्यों कई बड़े पदों से इस्तीफ़ा देना पड़ा?
आइओए और हाकी इंडिया से जुड़े पदाधिकारियों और सहकर्मियों के अनुसार बत्रा मनमानी करने लगे थे और टीमों , कोचों और अधिकारीयों के चयन में अंदर तक दखलंदाजी कर रहे थे। आज भी उनकी दहशत व्याप्त है और ज्यादातर अधिकारी कहते हैं कि ओड़ीशा को हाकी का केंद्र बनाने की उनकी योजना का स्वागत जरूर हुआ, लेकिन ज्यादातर सदस्य इकाइयां इसलिए नाराज थीं क्योंकि उनके प्रदेशों की अनदेखी की जा रही थी। आइओए के साथी अधिकारी भी उनकी मनमानी से खफा थे।
कुछ पूर्व ओलम्पियनों के अनुसार बत्रा इसलिए भी गए क्योंकि कुछ राजनीति के खिलाडी आइओए और हाकी इंडिया के शीर्ष पदों को देख कर लपलपाने लगे थे। आइओए की आस्तीन में वर्षों से डेरा जमाए बैठे सांप खुली हवा में सांस लेना चाह रहे थे और उन्होंने दलगत राजनीति के खिलाडियों को ढाल बना कर अपना रास्ता साफ़ कर दिया। ऐसे लोगों के लिए बत्रा खतरा बन रहे थे। कुल मिला कर खुद अपने अहंकार और साथी पदाधिकारियों की साजिश का शिकार हुए नरिंदर ध्रुव बत्रा!