संदीप भूषण
आस्ट्रेलियाई सरजमीं पर लगातार टैस्ट और एक दिवसीय शृंखला जीतकर क्रिकेट जगत में डंका बजाने वाले भारत को फुटबॉल एशिया कप के लीग चरण में ही हार कर बाहर होना पड़ा। ये दोनों वाकए एक साथ हुए। विराट कोहली की टीम के पोस्टर साइज फोटो अखबारों के पहले पन्ने पर थे। वहीं सुनील छेत्री की अगुआई वाली फुटबॉल टीम की खबरें कहीं ढक गईं। टीम के एशिया कप में हारने के साथ ही कोच ने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा भी दे दिया। हालांकि इस पूरी कहानी के पीछे वह सवाल फिर से ओझल होने लगा कि आखिर फीफा विश्व कप में ‘ब्लू टाइगर्स’ कब दिखेंगे? दुनियाभर की जनसंख्या लगभग 7.6 अरब के करीब है। 2018 में हुए फीफा विश्वकप में 736 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया लेकिन उसमें से कोई भारतीय नहीं था। लगभग आठ साल बाद एशिया कप में क्वालीफाई कर छेत्री की अगुआई में जब भारतीय टीम यूएई में खेल रही थी तब करोड़ों लोगों की निगाहें उसे नॉकआउट में पहुंचते देखने के लिए तरस रही थीं। टीम ने पहले मैच में थाईलैंड को 4-1 से हराया और धमाकेदार शुरुआत की लेकिन अंत में वह फिर लीग चरण से बाहर हो गई। एशियाई महाद्वीप में ही भारत का यह प्रदर्शन एक बार फिर उसकी तैयारियों की बखिया उधेड़ गया।
ऐसा क्यों है कि भारतीय टीम का मतलब सुनील छेत्री?
एशिया कप के दौरान पहले मैच में दो गोल दागकर रेकॉर्ड बनाने वाले सुनील छेत्री ने दिग्गज अर्जेंटीनी खिलाड़ी लियोनल मेस्सी को अंतरराष्ट्रीय गोल के मामले में पछाड़ दिया। उन्होंने 105 मैच में 67 गोल दागे हैं। भारतीय टीम जब भी मैदान पर होती है तो दर्शकों की निगाहें बस उन्हें ही ढूंढ़ती है। ऐसा क्यों है? इसका जवाब खुद सुनील ही हैं। उनके खेल में वो आकर्षण है जो प्रशंसकों को अपनी ओर खींच लाता है। भारत ने ज्यादातर मैचों में जो जीत दर्ज की थी उसमें योगदान छेत्री का ही रहा। छेत्री ने लगातार अपने खेल को निखारा। अब हाल ये हो गया है कि भारतीय टीम की जब भी बात होती है, छेत्री के बिना अधूरी है। इनके अलावा गुरप्रीत सिंह संधू जैसे इक्का-दुक्का खिलाड़ी ही हैं जिन्हें प्रशंसक नाम से भी जानते हैं।
2015 के बाद बहुत कुछ बदला लेकिन, यह काफी नहीं
2015 से पहले भारतीय फुटबॉल टीम फीफा रैंकिंग में 173 पर थी। तब कांस्टेनटाइन ने कोच के तौर पर टीम की कमान संभाली। खिलाड़ियों की मेहनत और कोच की रणनीति ने टीम को काफी आगे बढ़ाया। 2018 में टीम का रैंकिंग 100 के भीतर हो गई। यह भारतीय फुटबॉल जगत के लिए काफी बेहतरीन मौका था जब वह कम से कम महाद्वीपीय टूर्नामेंट में अपनी धमक दिखा सके। हालांकि ऐसा हो नहीं पाया। केवल रैंकिग में बदलाव हुआ, खिलाड़ी खुद को उस स्तर तक नहीं तैयार कर पाए जिससे वह ईरान और चीन जैसे देशों को टक्कर दे पाएं। कई पुराने फुटबॉल खिलाड़ियों का तो यहां तक कहना है कि यह रैंकिंग भी बस नंबर की बाजीगरी है। कमजोर टीमों के साथ खेलकर या उनपर जीत दर्ज कर टीम अगर नंबर बटोर भी रही है तो इसका उसे कोई फायदा नहीं मिल पाएगा।
भारत में ऐसा क्या है जो उसे फुटबॉल में महाशक्ति बनाए?
बीते साल एक मैच के दौरान दर्शकों की कम संख्या ने भारतीय फुटबॉल के स्टार स्ट्राइकर सुनील छेत्री को इस कदर आहत किया कि उन्होंने सोशल मीडिया पर एक भावुक अपील जारी की। उन्होंने भारतीय दर्शकों को टीम के हर मैच में भारी संख्या में स्टेडियम पहुंचने का न्योता देते हुए कहा कि आप चाहे हमें गाली दें या हमारी आलोचना करें लेकिन मैदान पर हमारा प्रदर्शन देखने जरूर आएं। इस अपील के बाद अगले मैच में पूरा स्टेडियम भर गया। एशिया कप को लेकर भी भारतीय प्रशंसकों में कुछ ऐसा ही जोश देखा गया। पहले मैच में भारत की जीत के बाद उनकी काफी प्रशंसा भी की गई लेकिन बहरीन के खिलाफ पूरे मैच में कई मौके गंवाने के बाद अंतिम समय में गोल खाकर टीम का मैच हारना दर्शकों को निराश कर गया। जिन युवा स्ट्राइकरों की पहले से इतनी तारीफ हो रही थी वो इस मैच में वे नाकाम रहे। सिर्फ गोल खाना या हार जाना किसी टीम को मजबूत या कमजोर बताने के लिए सही पैमाना नहीं है लेकिन पूरे मैच में मौके गंवाने के बाद जब डिफेंडर अंतिम मौकों पर चूक करे तो उसे विश्वकप के काबिल तो बिलकुल भी नहीं कहा जा सकता।
क्रिकेट के साथ फुटबॉल का मुकाबला
एक तरफ जहां पूरी दुनिया फुटबॉल की दीवानी है वहीं भारत में क्रिकेट को धर्म बना दिया गया। बाकी भारतीय खेल संघ भी क्रिकेट को ही मानक बनाकर अपने स्तर को जांचने में लग गए। इसका परिणाम हुआ कि जब कभी क्रिकेट से इतर कोई खेल अपनी पहचान बनाने की कोशिश करता उसका आकलन क्रिकेट की जुबान में होने लगा। खेल संघ प्रायोजक का हवाला देते हुए खिलाड़ियों को उस स्तर की सुविधाएं मुहैया कराने में असमर्थता जताते जो क्रिकेटरों को मिलती हैं। हालांकि भारतीय खेल जगत के बदले माहौल ने काफी कुछ बदला है और अब फुटबॉल संघ को भी क्रिकेट की छाया से खुद को बाहर निकालना होगा।
और अपनी एक अलग पहचान बनानी होगी। उन्हें कुछ ऐसा करना होगा जिससे छेत्री को दोबारा टीम के खेल को देखने के लिए भावुक अपील नहीं करनी पड़े और उनके प्रदर्शन से लोग स्टेडियम पहुंचने को मजबूर हों।