उत्तराखंड क्रिकेट टीम के कोच पद से इस्तीफा देने वाले भारत के पूर्व ओपनर वसीम जाफर पर मजहब के आधार पर टीम में खिलाड़ियों को रखने के आरोप लगे हैं। इसके अलावा उत्तराखंड राज्य इकाई के सचिव महीम वर्मा ने कहा है कि जाफर खिलाड़ियों को ‘रामभक्त हनुमान की जय’ बोलने से रोकते थे। उन्होंने मैदान पर मौलवी को भी बुलाया था। दूसरी ओर, जाफर ने इन आरोपों के खारिज किया है। उन्होंने ने कहा कि वे ऐसा सुनकर काफी दुखी हैं।
द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए महीम वर्मा ने कहा, ‘‘मंगलवार (9 फरवरी) को कुछ खिलाड़ी और सहायक कर्मचारी मेरे पास आए और कुछ ऐसी बातें कही जो चौंकाने वाली थीं। उन्होंने मुझे बताया कि जाफर टीम का सांप्रदायिकरण कर रहे थे और मुसलमानों के पक्ष में थे। कुछ खिलाड़ियों ने कहा कि वे ‘रामभक्त हनुमान की जय’ बोलना चाहते थे, लेकिन जाफर ने कहा कि टीम को इसे कुछ और में बदलना चाहिए। बाद में मुझे बताया गया कि देहरादून में हमारे बायो-बबल ट्रेनिंग के दौरान एक मौलवी ने आकर मैदान पर दो बार नमाज अदा की। बायो-बबल में एक मौलवी कैसे प्रवेश कर सकता है? मैंने अपने खिलाड़ियों से कहा कि उन्हें पहले मुझे सूचित करना चाहिए था।’’
इसके जवाब में जाफर ने कहा, ‘‘उन्होंने कहा कि मैंने एक मौलवी को बुलाया और नमाज़ अदा की। सबसे पहले मैंने मौलवी को फोन नहीं किया। वह इकबाल अब्दुल्ला था जिसने उसे बुलाया था। शुक्रवार को हमें नमाज अदा करने के लिए एक मौलवी की जरूरत थी। इकबाल ने मुझसे पूछाऔर मैंने हां कहा। अभ्यास समाप्त हो गया और हमने ड्रेसिंग रूम के अंदर नमाज पढ़ी। यह केवल दो या तीन बार हुआ, वह भी बायो-बबल से पहले।
जाफर ने आगे कहा, ‘‘मुझ पर खिलाड़ियों को ‘जय हनुमान जय’ नहीं बोलने देने का आरोप है। पहली बात तो ये कि किसी भी खिलाड़ी ने कोई नारा नहीं लगाया। हमारे पास कुछ खिलाड़ी हैं जो सिख समुदाय से हैं और वे कहते थे ‘रानी माता साचे दरबार की जय।’ इस पर मैंने सुझाव दिया कि हम ‘गो उत्तराखंड’ या ‘कम ऑन उत्तराखंड’ का नारा लगाए। जब मैं विदर्भ के साथ हुआ करता था तो टीम का नारा था, ‘कम ऑन, विदर्भ।’ यह नारा मैंने नहीं चुना था। यह खिलाड़ियों के ऊपर छोड़ दिया गया था। अगर मैं सांप्रदायिक होता तो मैं ‘अल्लाह हु अकबर’ कहने के लिए कहता। मैं सुबह में अभ्यास करने के लिए कहता ताकि दोपहर में नमाज पढ़ता।’’
जाफर को पिछले साल उत्तराखंड का कोच बनाया गया था। उनका कॉन्टेक्ट एक साल का था। कोच बनने के बाद जाफर ने राज्य के बाहर से तीन खिलाड़ियों को टीम में शामिल किया था। उन्होंने मुंबई के पूर्व खिलाड़ी इकबाल अब्दुल्ला, जय बिष्ट और समद फल्लाह को टीम में रखा था। अब्दुल्ला को सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी के लिए टीम का कप्तान बनाया गया था। महीम वर्मा ने कहा, ‘‘“जाफर बहुत ज्यादा हस्तक्षेप कर रहे थे। वे चयन समिति की भी नहीं सुन रहे थे। एक बैठक के दौरान उन्होंने मुझसे कहा था कि आप क्रिकेट के बारे में नहीं जानते। हमने उन्हें फ्री हैंड दिया था लेकिन वह पूरा नियंत्रण चाहते थे जो स्वीकार्य नहीं है।’’