अमेरिका में कई खेलों की महिला टीमें पुरुष टीम के बराबर वेतन के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रही हैं। अमेरिकी महिला फुटबॉल टीम ने इसके लिए कोर्ट गई थी, लेकिन उन्हें सफलता हासिल नहीं हुई। लॉस एंजिल्स की एक कोर्ट ने उनके दावे को खारिज कर दिया। 32 पन्नों के अपने फैसले में सेंट्रल कैलिफोर्निया में स्थित यूएस डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के जज गैरी क्लूजनर ने संयुक्त राज्य अमेरिका सॉकर फेडरेशन के पक्ष में फैसला सुनाया। अमेरिकी महिला फुटबॉल टीम ने पिछले साल वर्ल्ड कप के फाइनल में नीदरलैंड को हराया था।
अमेरिकी टीम अब तक सबसे ज्यादा 4 बार चैंपियन बन चुकी है। उसने 1991, 1999, 2015 और 2019 में खिताब अपने नाम किया था। जज क्लूजनर ने लॉस एंजिल्स में 16 जून को यात्रा, आवास और हेल्थ जैसे क्षेत्रों से संबंधित शिकायतों की सुनवाई के लिए अनुमति दे दी है। समान वेतन पर उन्होंने कहा है कि समान वेतन के दावे को खारिज कर दिया गया क्योंकि इस बात के सुबूत हैं कि महिलाओं ने अमेरिकी पुरुष टीम के प्रस्ताव को पहले ठुकराया था।
We will never stop fighting for EQUALITY.
— Megan Rapinoe (@mPinoe) May 2, 2020
वेतन मुद्दे पर अपनी हार से अमेरिकी महिला टीम स्तब्ध रह गई। टीम की सदस्य समान वेतन अधिनियम के तहत 498 करोड़ रुपए (66 मिलियन डॉलर) का भुगतान करना चाहती थीं। टीम की स्टार खिलाड़ी और महिला फुटबॉलर द ईयर चुनी गईं मेगन रेपिनो ने कहा कि कोर्ट का फैसला सुनने के बाद भी हमारी लड़ाई खत्म नहीं हुई है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘‘समानता के लिए हम अपनी लड़ाई को जारी रखेंगे।’’ रेपिनो ने अमेरिका के लिए 168 मैच में 52 गोल किए हैं।
खिलाड़ियों की स्पोक्स-वूमन मॉली लेविन्सन ने कहा, ‘‘इस फैसले से हम हैरान और निराश हैं, लेकिन हम हार नहीं मानेंगे। समान वेतन के लिए हमारी लड़ाई जारी रहेगी। हम अपने मामले में आश्वस्त हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं कि जो लड़कियां और महिलाएं इस खेल को खेलती हैं उनके साथ भेदभाव नहीं होगा।’’ 2018 में वर्ल्ड कप जीतने पर फ्रांस मेन्स टीम को इनाम के तौर पर 286 करोड़ रुपए मिले थे। वहीं, अमेरिकी टीम को वर्ल्ड चैंपियन बनने पर सिर्फ 45 करोड़ रुपए मिले थे।