उत्तर प्रदेश क्रिकेट असोसिएशन में परिवारवाद और दोस्तीवाद पर सवाल उठने लगे हैं। मामला अब हाई कोर्ट तक भी पहुंच गया है। आपको बता दें कि बीसीसीआई के वरिष्ठ पदाधिकारी राजीव शुक्ला के भाई, पूर्व ऑफिस असिस्टेंट अकरम सैफी के परिजन, पूर्व निर्देशक के बेटे समेत कई लोगों को यूपीसीए की आजीवन सदस्यता दी गई है।

13-15 फरवरी को उच्च पदों के लिए होने वाले चुनावों के लिए जब वोटिंग लिस्ट में इन आजीवन सदस्यता वाले लोगों के नाम सामने आए तो एपेक्स काउंसिल के 19 में से 7 सदस्यों ने आपत्ति जताई और इस पर सवाल उठाए। उन्होंने इसको लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका भी दायर की है।

याचिका में लंबे समय से कार्यरत अधिकारियों पर आरोप लगाए गए हैं। आरोपों में कहा गया है कि ऐसे लोग अपने परिजनों और दोस्तों को आजीवन सदस्यता देकर अपना कंट्रोल बनाए रखना चाहते हैं और असोसिएशन की गतिविधियों में हस्तक्षेप करना चाहते हैं। याचिका में यह भी कहा गया है कि राज्य

सदस्यों ने यह भी आरोप लगाया कि यूपी के 75 जिलों में से सिर्फ 41 में ही राज्य संबद्धता है और वे वोट देने के पात्र हैं। 24 नए आजीवन सदस्यों और पांच कॉर्पोरेट सदस्यों को मतदान का अधिकार प्रदान करना “मतदाता सूची और राज्य क्रिकेट संघ के चरित्र को बदलने के लिए एक रणनीतिक योजना है।”

याचिकाकर्ताओं ने जहां इन आजीवन सदस्यों की नियुक्तियों पर सवाल उठाए हैं और निष्पक्ष तरीके से इसकी जांच करने की मांगी की है। वहीं यूपीसीए के अधिकारियों ने बचाव में कहा कै कि, आजीवन सदस्यों को वोटिंग राइट देने का अधिकार असोसिएशन द्वारा पिछले चुनाव (2019) से पहले ही दिया गया था।

नए आजीवन सदस्यों में यूपीसीए के दो निदेशक और एक ज्वाइंट सेक्रेटरी बनाए गए हैं। गौरतलब है कि अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव और एपेक्स काउंसिल के दो स्थानों के लिए 41 जिलों के प्रतिनिधि, 50 आजीवन सदस्य और 5 कॉर्पोरेट मेंबर्स चुनाव करेंगे।

याचिकाकर्ताओं के वकील गौतम दत्ता ने कहा कि,’इलाहाबाद उच्च न्यायालय की माननीय खंडपीठ ने 10 जनवरी 2022 के अपने आदेश में बीसीसीआई, यूपीसीए और नव शामिल आजीवन सदस्यों और कॉर्पोरेट सदस्यों को नोटिस जारी किया था। प्रतिवादियों को रिट याचिका में उठाए गए मुद्दों पर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश भी दिया गया था।’

याचिकाकर्ता और यूपीसीए एपेक्स काउंसिल के सदस्य राकेश मिश्रा ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत करते हुए कहा कि,’कॉर्पोरेट सदस्यों सहित नए सदस्यों को शामिल करने के लिए शीर्ष परिषद के समक्ष कोई एजेंडा नहीं रखा गया था। कोई चर्चा नहीं हुई और न ही कोई स्वीकृति दी गई। यूपीसीए को कैसे चलाया जा रहा है और मौजूदा व पूर्व अधिकारियों के परिवार के सदस्यों को आजीवन सदस्य कैसे बनाया गया, इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।’

राकेश मिश्रा के दामाद का नाम भी नव आजीवन सदस्यों की सूची में शामिल है। इस पर जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि,’जब उन्हें सदस्य बनाया गया था उस वक्त वह हमारे परिवार के सदस्य नहीं थे।’ वहीं यूपीसीए के डायरेक्टर युद्धवीर सिंह ने अपने बेटे और राजीव शुक्ला व अकरम सैफी के भाई की नियुक्ति की बात को स्वीकारा था।

करीब तीन साल तक बीसीसीआई का संचालन करने वाली सीओए (Committee of Administrators) ने सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर पर स्टेटस रिपोर्ट फाइल करते हुए कहा था कि, यूपीसीए के पिछले चुनाव निष्पक्ष तरीके से नहीं हुए थे। इसके मुताबिक यूपीसीए में अपना कंट्रोल रखने और चुनाव के नतीजे अपने अनुसार करने के लिए 76 की बजाय 37 जिलों को वोटिंग राइट दिया गया था। इसके अलावा 31 आजीवन सदस्य शामिल थे।

याचिका में “JK Cement Private Limited, UFlex Group, Ekana Sportz City, Lohia Corp Limited and Montage Enterprises Pvt Ltd” को नए कॉर्पोरेट सदस्यों के तौर पर दर्शाया गया है। जेके ग्रुप का क्रिकेट गतिविधियों से पुराना नाता रहा है।

हितों के टकराव के मुख्य आरोप बीसीसीआई उपाध्यक्ष, यूपीसीए के वरिष्ठ पदाधिकारी और कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला पर हैं। शुक्ला पहली बार 2005 में यूपीसीए सचिव और निदेशक बने थे। जब यूपीसीए ने जस्टिस आरएम लोढ़ा समिति के सुधारों के आधार पर अपने संविधान को अपडेट किया था, तब शुक्ला व दो अन्य लोगों को “गैर-सेवानिवृत्त निदेशक” के तौर नामित किया गया था। दिसंबर 2021 में उन्होंने इस पद को छोड़ दिया था।

राजीव शुक्ला व यूपीसीए के अन्य आजीवन सदस्यों में से किसी ने भी फिलहाल परिवारवाद के आरोपों वाले इस मामले पर कोई जवाब नहीं दिया और ना ही कॉल व मैसेज का कोई रिप्लाई किया। उनके भाई सुधीर शुक्ला ने कहा था कि,’वह कानपुर क्रिकेट के साथ पिछले 40 सालों से जुड़े हैं और वह अपने काम के कारण आजीवन सदस्य बने हैं ना कि उन्हें किसी परिवार से रिश्ता होने पर ये उपाधि मिली है।’