खेल के मैदान सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं होते बल्कि खिलाड़ी मैदान पर आपसी दूरियों को मिटातें हैं और मोहब्बत की नई इबारत भी गढ़ते हैं लेकिन नफरतों का बोलबाला अगर इन प्रयासों और प्रयोगों पर भी अपना असर दिखाने लगे तो ये विडंबना ही कही जा सकती है। ऐसी ही एक नफरत देखने को मिली थी आज से करीब दस पहले पाकिस्तान में जब कुछ नफरत के बीज बोने वाले आतंकवादियों ने श्रीलंका की क्रिकेट टीम पर हमला किया था। इस हमले के चलते क्रिकेट जगत में काफी कुछ बदला जिसकी तस्वीर आज भी कई खिलाड़ियों के जेहन में कैद है। इसी भयावह मंजर को बयां करते हुए अंपायर अहसान आज भी सिहर जाते हैं जो इस हमले में गोलियों और ग्रेनेड का शिकार हुए। इस हमले से उनकी जिंदगी में काफी कुछ बदल गया और साथ ही पाकिस्तान के क्रिकेट प्रेमियों के लिए भी…..

इस दिन को याद करते हुए रजा ने अभी हाल ही में एफपी को दिए गए एक साक्षात्कार के दौरान कहा कि वो श्रीलंका-पाक के बीच खेले जाने वाले दूसरे टेस्ट मैच में रिजर्व अंपायर की भूमिका निभाने के लिए अन्य अधिकारियों के साथ गद्दाफी स्टेडियम की ओर जा रहे थे। इसी बीच उनसे कुछ ही आगे चल रही टीम बस पर आतंकियों ने हमला कर दिया जिसमें आठ पुलिसकर्मी और स्थानीय नागरिक मारे गए और छह अन्य घायल हुए। इस हमले में दो गोलियां रजा को भी लगी थी और 6 महीने वो कोमा में रहे। हालांकि रजा ने जिंदगी की जंग भले ही जीत ली हो लेकिन आज भी वो उस हमले को जब याद करते हैं तो सिहर जाते हैं। उन्होंने कहा कि मेरे जख्म भर गए हैं लेकिन मैं जब भी इन्हें देखता हूं तो मुझे वह नृशंस घटना याद आ जाती है। उन्होंने कहा कि जब भी कोई उस घटना का जिक्र करता है तो मैं उससे आग्रह करता हूं कि मुझे इसकी याद न दिलाएं।

इस हमले के बाद पाकिस्तान को भी काफी नुकसान उठाना पड़ा और कई देशों ने लंबे समय तक इस देश में क्रिकेट खेलना ही बंद कर दिया। यहां तक कि अभी हाल ही में ऑस्ट्रेलिया की टीम ने पाक में क्रिकेट खेलने से मना किया है। इस बदलाव के चलते पाकिस्तान को राजस्व का भी भारी नुकसान उठाना पड़ता है। आज भी पाक के अधिकांश मुकाबले यूएई में खेले जाते हैं। रजा बताते हैं कि एक हमले ने कैसे इस देश में क्रिकेट की लोकप्रियता और राजस्व को गहरा धक्का दिया है और साथ ही लोगों के मन में एक डर भी।