आत्माराम भाटी
अंतरराष्ट्रीय हॉकी फेडरेशन ने 2020 तोक्यो ओलंपिक में खेलने वाली पुरुष व महिला वर्ग की 12-12 टीमों का एलान कर दिया है। पुरुष वर्ग में भारत को पूल ‘ए’ में विश्व विजेता आस्ट्रेलिया और ओलंपिक चैंपियन अर्जेंटीना के साथ रखा गया है। वहीं इसी पूल में स्पेन, न्यूजीलैंड और जापान की टीमें भारत के विजयी रथ को आगे बढ़ने से रोकने में कोई कसर नहीं छोड़ने वाली है। फिर भी भारत के लिए सुखद पहलू यह है कि प्रत्येक पूल से चार टीमें क्वार्टर फाइनल खेलेगी। ऐसे में पूरी आशा है कि पिछली बार 2016 की तरह इस बार भी हम भारतीय टीम से सौ फीसद आशा रख सकते हैं कि वह क्वार्टर फाइनल खेलेगी ही।
अगर मान लें कि भारतीय टीम अपने पूल में तीसरे नंबर पर रहती है तो उसे पूल ‘बी’ की दूसरे नंबर की टीम जो कि संभवत: बेल्जियम, नीदरलैंड और जर्मनी जैसी मजबूत टीमों से भिड़ना होगा। ऐसे में भारतीय टीम की सेमी फाइनल खेलने की मंशा पर पानी फिर सकता है। अगर भारतीय टीम सेमी फाइनल की आशा को जिंदा रखना चाहती है तो उसे अपने दमदार प्रदर्शन के सहारे अपने पूल में नंबर दो पर खुद को लाना होगा। इसके बाद ही उसके लिए सेमी फाइनल की राह के रास्ते खुल सकते है।
कभी तूती बोलती थी भारतीय हॉकी की
एक समय था जब भारतीय हॉकी की तूती पूरी दुनिया में बोलती थी। लेकिन, पिछली सदी के आठवें दशक तक आते-आते उसके सुनहरे दिनों पर हार की काली छाया की परत चढ़ने लगी। इस काली छाया को अंधकार प्रदान किया यूरोपीय देशों द्वारा लाए गए कृत्रिम मैदान ‘एस्ट्रोटर्फ’ ने। इससे प्राकृतिक मिट्टी पर उगी हुई घास पर दौड़ने वाली भारतीय हॉकी कृत्रिम मैदान पर खिलाड़ियों में स्टेमिना की कमी के कारण हांफने लगी। रही सही कसर हॉकी में घुसी राजनीति ने पूरी कर दी।
आठ बार की ओलंपिक विजेता भारतीय हॉकी टीम की दशा यह हो जाएगी किसी ने सोचा भी नहीं था। 2008 बेजिंग ओलंपिक भारतीय हॉकी के लिए बुरे सपने जैसे रहा। पहली बार भारतीय टीम योग्यता भी नहीं प्राप्त कर पाई। हमारी हॉकी को वापस ऊंचाइयों की ओर बढ़ने का एक सुनहरा अवसर 2010 के विश्व कप के रूप में मिला क्योंकि उसके मेजबान हम ही थे। लेकिन मेजबानी के बावजूद विश्व कप में भारत का प्रदर्शन खराब रहा। यही हाल 2012 ओलंपिक में रहा। 2016 में क्वार्टर फाइनल की बाधा पार नहीं कर पाए।
आंकड़े में कमजोर पड़ा भारत
अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भारतीय हॉकी के प्रदर्शन पर नजर डालें तो भारत अभी तक एक बार 1975 में ही विश्व कप अपनी झोली में डाल पाया है। उसके बाद खिताब तो दूर की बात सेमी फाइनल खेलने के लाले पड़ रहे हैं। इसी तरह 1980 मॉस्को ओलंपिक में मिले स्वर्ण पदक के बाद ओलंपिक में सेमी फाइनल खेलने के लाले भी पड़ रहे हैं।
विश्व कप की तरह ओलंपिक में भी पांचवें से आठवें, नौवें, दसवें स्थान पर भारत का नाम विराजमान होता है। एशिया कप भी दो बार जीत पाए हैं। एशियाड में 1998 के बाद स्वर्ण पदक भारतीय टीम से दूर है। कुल मिलाकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अजलानशाह हॉकी में जरूर बीच-बीच में सफलता मिली है। इसके अलावा भारतीय हॉकी के पास खोते जाने के अलावा कुछ नहीं बचा।
अधिकारियों को भी करनी होगी मेहनत
बीते कुछ समय से भारतीय हॉकी आगे बढ़ रही है। इससे उनके प्रशंसकों के दिलों में राष्ट्रीय खेल की छवि में जगमगाती रोशनी की लौ दिखलाई दे रही है। हालांकि भारतीय हॉकी के सुनहरे दिन वापस आ सकें, इसके लिए केवल खिलाड़ियों ही नहीं उसके अधिकारियों को भी जमकर मेहनत करनी होगी। जितना ज्यादा हो सके खिलाड़ियों को जरूरी आधुनिकतम सुविधाएं उपलब्ध करानी होगी। इसके बाद ही बेपटरी हुई भारतीय हॉकी वापस पटरी पर आ पाएगी।